दिल्ली विधानसभा चुनाव:2025
संजय बिनीत : दिल्ली विधानसभा चुनाव में स्वींग मतदाता ही हमेशा किंगमेकर सावित होते रहें हैं, और हर राजनैतिक दल इसे साधने के लिए भरपूर कोशिश करते रहें हैं। स्वींग मतदाता वैसे मतदाता होते हैं जो किसी राजनीतिक दलों से जुड़े नहीं होतें हैं और हर चुनाव में अपने फायदे नुकसान को देखकर मतदान करते हैं।दिल्ली में इनकी संख्या औसतन 18 फीसदी माना जाता रहा है। भाजपा ने जहाँ लोकलुभावन घोषणाओं से और राष्ट्रीय बजट से साधने की कोशिश कर रही है, वही आप पार्टी ने भी पुरी कोशिश कर रखी है, पर भ्रष्टाचार, यमुना नदी और सत्ता विरोधी लहर से उभर नहीं पा रही है। वही कांग्रेस ने भी शीर्ष नेतृत्व और लोकलुभावन घोषणाओं से मतदाताओं को साधने का प्रयास कर कयी विधानसभा सीटों पर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाते हुए दिख रही है।
दिल्ली में हरबार लोकसभा चुनाव के लगभग नौ महीने बाद विधानसभा चुनाव होता है। अगर पिछले दो लोकसभा चुनाव और दिल्ली विधानसभा चुनाव की स्थिति को देखें तो 2014 में भाजपा लोकसभा की सभी 7 सीटें जीती और कुल 70 में से 60 विधानसभा सीटों पर आगे रही, लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में AAP 67 और भाजपा ने 3 सीट जीतीं। 2019 में भाजपा फिर सभी लोकसभा सीटें जीती और 65 विधानसभा में आगे रही। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में AAP 62 सीटें जीत गई।
अगर 2013,2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति को देखें तो जहाँ दिसंबर, 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन बहुमत से 5 सीट पीछे रह गई। भाजपा ने 33.07% वोट हासिल करके 31 सीटें जीतीं। AAP ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन 2 महीने भी न चली और करीब साल भर राष्ट्रपति शासन रहा।
2015 में चुनाव हुए तो भाजपा का वोट शेयर 0.88% घटकर 32.19% रह गया। सिर्फ इतने से ही पार्टी ने 28 सीटें गवां दीं। 2013 की तुलना में 2020 के चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 5.44% बढ़कर 38.51% हो गया फिर भी पार्टी सिर्फ 5 सीटें ही बढ़ाकर 8 सीटें ही जीत सकी। इन 7 साल में भाजपा का 5% वोट बढ़ा, लेकिन सीटें 31 से घटकर 8 रह गईं। इस तरह से अगर देखा जाये तो भाजपा का एक अपना वोट बैंक दिल्ली में है, ये 38℅ मतदाता विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव दोनों में भाजपा के साथ रहती है। और यही लोकसभा चुनावों में स्वींग मतदाता भाजपा के साथ आकर मत प्रतिशत को 54 ℅ से भी आगे कर देतें हैं।
आम आदमी पार्टी पिछले एक दशक से सत्ता में है। आप की शिक्षा और स्वास्थ्य योजनाओं के साथ-साथ मुफ़्त बिजली और पानी ने पिछले दो चुनावों में अपार बहुमत से जीत दिलायी है। महिलाओं के लिए मुफ़्त बस यात्रा ने भी पार्टी को दिल्ली के मतदाताओं के बीच महत्वपूर्ण समर्थन बनाए रखने में मदद की है। इस बार, आप पार्टी ने सत्ता में वापस आने पर सभी पात्र महिला मतदाताओं को 2,100 रुपये प्रति माह देने सहित कई वायदा किया है।
पंजाब में कयी वायदों को पुरा नहीं करने,भ्रष्टाचार, यमुना की सफाई , शीषमहल और दस बर्षो के शासन के असंतोष से उभरी सत्ता विरोधी लहर से आप पार्टी अब तक की अपनी सबसे कठिन लड़ाई का सामना कर रही है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही इसी तरह के वादे किए हैं,जिससे मुफ़्त चीज़ों के मामले में आप अपनी विशिष्टता खो रही है।
अब देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा अपने धुंआधार प्रचार और घोषणाओं से इन स्वींग मतदाताओं को लुभाने में कितनी कामयाब हो सकती है। कांग्रेस के भी चुनावी मैदान में पुरे दमखम से डटे रहने का भी फायदा भाजपा को मिलना राजनैतिक विद्वानों और स्वयं आप सुप्रीमो द्वारा तय माना जा रहा है। फिलहाल तो दिल्ली के 1.55 करोड़ मतदाताओं के हाथों में इन राजनैतिक पार्टियों का भविष्य है, पर इतना तो कहा जा सकता है कि स्वींग मतदाता ही इसबार भी दिल वालों की दिल्ली को किस पार्टी की सरकार चाहिए-तय करने जा रहे हैं।