ज्योतिषीय ग्रंथों में वर्णित नक्षत्रों के अनुसार 27 नक्षत्र बताएं गए हैं, उन सभी में से 6 नक्षत्र अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल एवं रेवती नक्षत्र को सताईस (गंडमूल) नक्षत्र कहा जाता है. इन नक्षत्रों में जन्मे जातक /जातिका सताईस होना कहा जाता है. इन नक्षत्रों के समय जन्म लेने वाले जातक स्वयं तथा अपने माता-पिता, मामा आदि के लिए कष्टदायक बताएं गए हैं. इसी कारण घर के लोगों को जैसे ही यह पता चलता है कि बालक सताईस में है, वैसे ही वे चिंतिंत हो जाते हैं और नकारात्मक विचारों में चले जाते हैं, परिणाम यह भी होता है कि इसका प्रभाव बच्चे के ऊपर पड़ना आरम्भ हो जाता है, बच्चा अपने जन्म के समय से बारह वर्ष तक अपने माता-पिता के कर्मो के प्रभाव से प्रभावित होता है, एवं परिवार कष्टमय जीवन व्यतीत करने लगता है.
इसलिए आपके परिवार में कोई बच्चा गंडमूल सताईसा नक्षत्रों में जन्म ले तो घबराने की आवश्यकता नहीं है और न ही नकारात्मक विचार भी लायें. ऐसा बात नहीं है की गण्डमूल नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक / जातिका का नकारात्मक प्रभाव रहता है, कुछ लोगों को अपनी एक अलग पहचान भी बनाते हुए भी देखा गया, ऐसे बालक तेजस्वी, यशस्वी और कला अन्वेषी भी हो सकते हैं.
सतईसा गण्डमूल नक्षत्र का चरण के अनुसार फल
- मूल, मघा और अश्विनी के प्रथम चरण – जातक पिता पर प्रभाव
- रेवती के चौथे चरण और रात्रि में जन्मा जातक – माता के लिए,
- ज्येष्ठ के चतुर्थ चरण और दिन का जन्म जातक – पिता
- अश्लेषा के चौथे चरण संधिकाल (दिन से रात, व रात से दिन की संधि) में जन्म हो जातक – स्वयं के लिए जातक का अरिष्ट कारक हो जाता है.
अश्विनी नक्षत्र का प्रभाव
- प्रथम चरण – पिता को शारीरिक कष्ट एवं हानि.
- दूसरा चरण -परिवार में सुख शांति.
- तीसरा चरण – सरकार से लाभ तथा मंत्री पद का लाभ.
- चतुर्थ चरण – परिवार एवं जातक को राज सम्मान तथा ख्याति.
आश्लेषा नक्षत्र का प्रभाव
- प्रथम चरण – शांति और सुख मिलेगा.
- दूसरा चरण – धन नाश, बहन-भाईयों को कष्ट.
- तृतीय चरण – माता को कष्ट.
- चतुर्थ चरण – पिता को कष्ट, आर्थिक हानि.
मघा नक्षत्र का प्रभाव
- प्रथम चरण – माता को कष्ट होता है.
- दूसरा चरण – पिता को कोई कष्ट या हानि होता है.
- तीसरा चरण – जातक सुखी जीवन व्यतीत करता है.
- चौथा चरण – जातक को धन विद्या का लाभ, कार्य क्षेत्र में स्थायित्व प्राप्त होता है.
ज्येष्ठा नक्षत्र का प्रभाव
- प्रथम चरण – बड़े भाई-बहनों को कष्ट.
- दूसरा चरण – छोटे भाई – बहनों के लिए अशुभ.
- तीसरा चरण – माता को कष्ट.
- चतुर्थ चरण – स्वयं का नाश.
मूल नक्षत्र
- प्रथम चरण – पिता के जीवन के लिए घातक.
- दूसरा चरण – माता के लिए अशुभ, को कष्ट.
- तीसरा चरण – धन नाश.
- चतुर्थ चरण – जातक सुखी तथा समृद्ध जीवन व्यतीत करता है.
रेवती नक्षत्र का प्रभाव
- प्रथम चरण – जीवन सुख और आराम में व्यतीत होगा.
- दूसरा चरण – मेहनत एवं बुद्धि से नौकरी में उच्च पद प्राप्त.
- तीसरा चरण – धन-संपत्ति का सुख के साथ धन हानि भी.
- चतुर्थ चरण — स्वयं के लिए कष्टकारी होता है.
सफल जीवन के लिए सताईसा (गण्डमूल) नक्षत्र से बचाव
- पिता को चाहिए कि अपने बच्चे का चेहरा न देखे और तुरंत पिता कि जेब में फिटकड़ी का टुकड़ा रखवा देना चाहिए.
- जिस नक्षत्र में जन्म हुआ है, उससे सम्बन्धित देव / ग्रह पूजा /शांति करा देना श्रेयस्कर होता है इससे नक्षत्रों के नकारात्मक प्रभाव में कमी आती है.
- अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्में जातकों को गणेशजी की पूजा अर्चना करने से लाभ मिलता है.
- आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में जन्में जातकों के लिए बुध ग्रह की अराधना करना चाहिए. तथा बुधवार के दिन हरी वस्तुओं जैसे हरा धनिया, हरी सब्जी, हरा घास इत्यादि का दान करना चाहिए. मूल में जन्में बच्चे के जन्म के ठीक 27वें दिन गंडमूल शांति पूजा करवा दें. इसके अलावा ब्राह्मणों को दान, दक्षिणा देने और उन्हें भोजन करवा देना इस ग्रह की शांति मिलती है.
गंडमूल नक्षत्र अश्विनी – केतु के पहले गण्डमूल नक्षत्र को अश्विनी नक्षत्र कहा जाता है, अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर जातक को जीवन में अनेक कठिन परिस्थितियों एवं परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, पूर्व जन्म के कर्मों का फल इस नक्षत्र चरण में जन्म लेने के रूप में तुरंत सामने आता है, इस नक्षत्र में जन्म होने पर वह बच्चा पिता के लिए थोड़ा कष्टकारी हो सकता है, लेकिन इस कष्ट को किसी भी नकारात्मकता के साथ नहीं जोड़ा जा सकता, इसके लिए जन्मकुंडली के बहुत से योगों को भी देख चाहिए. अश्विनी नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्म लेने वाले बच्चे को जीवन में सुख व आराम प्राप्त होते हैं, अश्विनी नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म होने पर जातक को जीवन के किसी भी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त होने के अवसर प्राप्त होते हैं, जातक मित्रों से लाभ प्राप्त करता है, घूमने-फिरने में उसकी रूचि अधिक होती है, किसी एक स्थान पर टिके रहना उसे अच्छा नहीं लगता. अश्विनी नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म लेने पर जातक को राज सम्मान की प्राप्ति अथवा सरकार की ओर उपहार आदि की प्राप्ति होती है, इसके साथ ही कभी कभी जातक को स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों का सामना करना होता है.
गंडमूल नक्षत्र आश्लेषा – आश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर किसी तरह का कोई विशेष अशुभ नहीं होता, परंतु धन की हानि उठानी पड़ती है, यदि इसकी शांति पूजा हो तो, यह शुभ फल प्रदान करता है. आश्लेषा नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्म होने पर बच्चा अपने बहन-भाईयों के लिए कष्टकारी होता है, या जातक अपनी संपत्ति को नष्ट कर लेता है. आश्लेषा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म हुआ है तो, माता तथा पिता दोनों को ही कष्ट सहना पड़ता है. आश्लेषा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म हुआ है तो, पिता को आर्थिक हानि तथा शारीरिक कष्ट सहना पड़ता है.
गंडमूल नक्षत्र मघा – मघा नक्षत्र के प्रथम चरण में यदि किसी बच्चे का जन्म होता है तो, माता को कष्ट होने की संभावना बनी रहती है. इस नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्म लेने से पिता को कोई कष्ट या हानि का सामना करना पड़ सकता है. मघा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म लेने पर बच्चे को जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है. यदि बच्चे का जन्म मघा नक्षत्र के चौथे चरण में होता है, तब उसे कार्य क्षेत्र में स्थायित्व प्राप्त होता है, इस नक्षत्र में जन्म होने के कारण बच्चा उच्च शिक्षा भी ग्रहण करने से पीछे नहीं रहता.
गंडमूल नक्षत्र ज्येष्ठा – ज्येष्ठा नक्षत्र को अशुभ नक्षत्रों की श्रेणी में रखा गया है, ज्येष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने से बच्चे के बड़े भाई-बहनों को कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है. ज्येष्ठा के द्वितीय चरण में जन्म होने पर छोटे भाई-बहनों के लिए अशुभ देखा गया है. उन्हें शारीरिक अथवा अन्य कई प्रकार के कष्ट होते हैं. ज्येष्ठा के तीसरे चरण में जन्म होने पर जातक की माता को स्वास्थ्य की दृष्टि से कष्ट बना रहता है. इस नक्षत्र चरण में जन्म लेने से जातक स्वयं के भाग्य के लिए अच्छा नहीं रहता, उसे जीवन में कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है. ज्येष्ठा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को जीवन में कठिन परिस्थितियों व जटिलताओं का सामना करना पडता है. मैंने देखा है इस चरण में जन्म होने के कारण जातक को जीवनभर दु:ख और पीड़ा का सामना ही करना पड़ता है.
गंडमूल नक्षत्र मूल – मूल नक्षत्र के द्वितीय चरण में बच्चे का जन्म ज्योतिष में माता के लिए अशुभ माना गया है, इस चरण में बच्चे का जन्म होने से माता का जीवन कष्टपूर्ण रहने की संभावना बनती है. मूल नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ हो, तब उसकी संपत्ति के नष्ट होने की संभावना बनती है, इस चरण में जन्म लेने वाले जातक का संपत्ति से वंचित रहना देखा जा सकता है. मूल नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म लेने पर जातक सुखी तथा समृद्ध रहता है, परंतु यदि शांति कराई जाये तब ही शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इस चरण में जन्म लेने पर बच्चे को अपने जीवन में एक बार भारी हानि उठानी पड़ती है.
गंडमूल नक्षत्र रेवती – जन्म रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण में हुआ है तो, जीवन सुख और आराम से व्यतीत होता है. जातक आर्थिक रूप से सम्पन्न और सुखी रहता है. रेवती नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्म लेने वाले जातक अपनी मेहनत, बुद्धि एवं लगन से नौकरी में उच्च पद प्राप्त करते हैं, या व्यवसायिक रूप से कामयाब हो जाते हैं, परंतु फिर भी जातक को बड़े होकर कुछ भूमि की हानि होती है. रेवती नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म होने पर जातक को धन-संपत्ति का सुख तो प्राप्त होता है, परंतु साथ- साथ धन हानि की भी संभावना बनी रहती है. रेवती नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म लेने वाला जातक स्वयं के लिए कष्टकारी साबित होता है. परंतु मतातन्तर से इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने माता-पिता दोनों के लिए ही कष्टकारी सिद्ध होते हैं. उनका जीवन काफी संघर्ष से गुजरता है.
सताईसा (गंडमूल) नक्षत्रों से निराकरण शांति एवं उपाय
इस दोष के निवारण का सबसे उत्तम उपाय गंडमूल शांति करवा देना चाहिए. यह पूजा सामान्य पूजा की तरह न होकर एक तकनीकी पूजा होती है.
जातक अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्मा है तो, आपको गणेश जी का पूजन करना चाहिए. इस नक्षत्र में जन्मे जातक को माह के किसी भी एक गुरुवार या बुधवार को हरे रंग के वस्त्र, लहसुनियां आदि में से किसी भी एक वस्तु का दान करना विशेष फलदायी होता है. जातक अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में जन्मा है तो, उसके लिये बुध ग्रह का पूजन करना फलदायी रहता है. इस नक्षत्र में जन्में जातक को माह के किसी भी एक बुधवार को हरी सब्जी, हरा धनिया, पन्ना, कांसे के बर्तन, आंवला आदि वस्तुओं में से किसी भी एक वस्तु का दान करना विशेष सफलदायी हो.
ज्योतिषी संतोषाचार्य
ज्योतिष विशारद एवं वास्तु आचार्य
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