संजय कुमार विनीत : पंजाब में लगभग 13 महीनों से अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे किसान आंदोलन को पंजाब सरकार ने एक रणनीति के तहत बेरहमी से बुलडोज कर देने के बाद किसानों के तथाकथित हितैषी सेवादारों के टस्वे भी बुलडोज होकर जमिंदोज हो गया ऐसा प्रतीत होता है। दिल्ली में किसान आंदोलन के दरम्यान कथित किसान हितैषी सेवादारों के पंजाब में किसानों पर बेरहमी से कारवाई पर आज एक नकली आंसू बहाना तो छोडिये, घटना की निंदा तक ढंग से नहीं कर पा रहे। कुछ तो अबतक बिल में ही पडे उहापोह की स्थिति में पडे हैं कि आखिर अब क्या किया जाये, कैसे अपनी इज्जत बचायी जाये।
भारत में किसानों को अन्नदाता कह सम्मान दिया जाता रहा है। किसानों को ही क्या हरेक भारतीय नागरिकों को जीवनोपयोगी सुविधाओं को देना सरकार का कर्तव्य होता है। समय समय पर इसके लिए सभी वर्गों द्वारा प्रदर्शन भी किये जाते रहें हैं, सरकार अपनी क्षमताओं के अनुसार मांगों को मानती भी रही है। अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन करना संवैधानिक अधिकार है। पर जब यही धरना प्रदर्शन लम्बे समय तक हो और आम नागरिक को तकलीफ देने लगे, स्थानीय अर्थव्यवस्था – रोजीरोटी को नुकसान पहुंचाने लगे तो आम नागरिक का समर्थन ऐसे आंदोलनों से दूर होता चला जाता है। और यही हस्र दिल्ली में किसान आंदोलन का हुआ था। दिल्ली को बंधक बनाकर और बाद में तो लालकिला पर तांडव मचाने के बाद तो कोई इतना मानने तक को तैयार नहीं था कि यह अन्नदाताओं का आंदोलन है। तब से सभी इसे तथाकथित किसान आंदोलन की संज्ञा देने लगे।
पर उस वक्त किसानों के लिए आंखों में टेस्वे लिए हमदर्दी जताने वाले बहुत सारे विपक्षी पार्टियां और आंदोलनजीवी खड़े थे। अरविंद केजरीवाल का तो आप भूला नहीं पाये होगें। अपने को तथाकथित किसानों का सेवादार बताते हुए हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध का ना सिर्फ वचन दिया था, बल्कि इंटरनेट सेवा, विधुत आपुर्ती, ट्वालेट और हर सुख सुविधा का ख्याल रखा। अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को प्रतिदिन इसके लिए धरना प्रदर्शन स्थल पर डिप्युट भी कर रखा था। विभिन्न सदनों में आप, कांग्रेस सहित अन्य पार्टियां हमदर्दी वाली नकली आंसुओं के साथ ऐसे गरज रही थी, जैसे किसानों के लिए सबसे बडे़ हमदर्द सिर्फ वही हो। कम्युनिस्ट पार्टियों का समर्थन भी आंदोलन को उग्र करने के लिए काफी था। आंदोलन के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने योगेन्द्र यादव और किसानों के मसीहा बने राकेश टिकैत के बडबोलेपन आज भी आप भूल नहीं पाये होंगे।
आपने इन में से किसी को पंजाब शंभू बार्डर और खनौरी बार्डर पर आप पार्टी की बेरहमी से किये गये बुलडोजर कारवाई के बाद कुछ कहते हुए सुना है क्या❓। राहुल और प्रियंका, भाई बहन को कुछ तकलीफ हुई हो सुना क्या❓। देश विदेश पर तमाम कुछ लिखने वाले योगेन्द्र यादव का कोई आलेख आपने पढा है क्या❓। केजरीवाल, जो किसानों के प्रमुख सेवादार बने फिरते थे। क्या केजरीवाल किसानों के लिए आंसू बहाने गये क्या❓। राकेश टिकैत ने पंजाब सरकार की वक्कल उतारने की बात की है क्या❓यूपी पुलिस जबसे उसे दौडाया है,तब से शायद वे अपनी वक्कल बचाने में ही लगे हुए हैं। इंडी गठबंधन वाली पार्टियां पंजाब काग्रेस को छोड़कर दुख व्यक्त किया क्या❓। पंजाब काग्रेस को तो चुनाव एक दूसरे के विरोध में लडना है, इसलिए वे विरोध करेंगे ही। पंजाब काग्रेस तो इसमें बीजेपी के मिले होने की बात भी कर रही है। क्या आप और बीजेपी एक दूसरे के घोर विरोधी होते हुए एक साथ ऐसा काम कर सकती है।
दिल्ली के विभिन्न बार्डर को घेरकर दिल्ली को बंधक बना लेने के बाबजूद, गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में तांडव मचाते हुए लाल किला पर असम्मान जनक कारवाई पर आपका खून जरूर खौला होगा। पुरे दिल्ली में उसदिन दहशत भरे थे। दिल्ली पुलिस की सब्र और सहनशीलता पर तरह तरह के सवाल उठे, मोदी सरकार पर भी तमाम सवालात उठे। पर आज समझ में आता है कि उस वक्त मोदी ने इतने शांति से ये सब क्यों झेला। गुरु पर्व के अवसर पर आखिरकार क्यों किसानों से माफी मांगते हुए तीनों किसान बिल क्यों वापस लिया। जबकि पंजाब, हरियाणा के कुछ किसानों और उत्तर पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों को छोड़कर पुरे देश के किसानों को यह तीनों किसान कानून लाभप्रद लग रहा था और मोदी पर उनका पुरा भरोसा था।
दरअसल, दिल्ली में किसान आंदोलन अराजकता का शिकार हो गया था। चंद थोक विक्रेता, आढतियों और दलालों के चुंगल में फंस चुका था। गैर राजनैतिक कम राजनैतिक ज्यादा हो गया था। खलिस्तानियों की घुसपैठ हो चुकी थी। विदेशी फंडिंग की खबर थी। शायद उस वक्त मोदी ने इसलिए इस दर्द को सहा होगा कि अभी कोई भी कारवाई से देश में अस्थिरता बन जायेगी और पंजाब तो पुरा अस्थिर हो जायेगा। उनके पास तो खुफिया एजेंसियों के इनपुट रहें होगें, हम सभी से ज्यादा जानकारियां रही ही होगी। बाबजूद इसके हाय हाय मोदी, मर जा मोदी तक के अपमान को सहा। फिर भी अन्नदाताओं पर ऐसी कोई कारवाई नहीं कि क्योंकि वे शायद देश के अन्नदाताओं के लिए सचमुच दुखी हो। किसानों के लिए किसान सम्मान निधि, खाद- बीज वितरण, एमएसपी सहित कयी ऐसी कार्य मोदी सरकार की रही है, जिसका बडाई की ही जानी चाहिए। हाँ, अन्नदाताओं के लिए और भी बहुत कुछ होना बाकी है और होना भी चाहिए।
दिल्ली का किसान आंदोलन पुर्णतः राजनीतिक इसलिए भी हो गया था कि 2022 में पहले उत्तर प्रदेश चुनाव में बीजेपी को नुकसान पहुंचाने का था और फिर केंद्र सरकार को गिराने की। ये आंदोलन स्वत समय पर अपनी मुखौटा उतार देगा, ये मोदी जी अच्छे से समझ रहे थे। दरअसल लोहा को जबतक गर्म ना किया जाये, तबतक लोहे को अपने इच्छानुरूप आकार आप नहीं दे सकते हैं। मोदी को बस इंतजार था लोहे के गर्म होने का। अब जब कनाडा में जस्टिन टूडो की सरकार नहीं रही, और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बन गये। खालिस्तानी समर्थकों को अब वह सांस नहीं मिलेगी और देश को अस्थिर करने के लिए अब विदेशी फंडिंग भी नहीं।
हलांकि, मोदी ने कभी भी अन्नदाताओं के लिए कोई ऐसे शब्द नहीं कहें और ना कोई कारवाई की, जिससेे अन्नदाताओं का सम्मान आहत हुई हो। पर आज किसानों के सेवादारों ने ही आंदोलन को बुलडोजर तले दबा दिया। पंजाब पुलिस द्वारा किसान आंदोलन पर बुलडोजर चलाया गया, नेताओं को धोखे से हिरासत में लिए गये, महिलाओं- बुजुर्गों तक पर भी लाठियां चलाई गयी। पहले बिजली, इंटरनेट सेवा बाधित कर सभी टेंट ढहाये गये। किसी को अपने समान लेने तक का समय नहीं दिया गया। आज 400 अन्नदाताओं को हिरासत में लेकर पुरे पंजाब में कहीं भी आंदोलन पर रोक लगा दिया गया है। पर किसानों के तथाकथित हमदर्द के मुंह से ना कोई निंदा के शब्द निकल रहे और ना ही आंखों से ट्स्बे।
राजनीतिक गलियारे में इस बात कि चर्चा है कि लुधियाना पश्चिमी विधानसभा उपचुनाव को लेकर यह सारी कारवाई की गयी है।
अरविंद केजरीवाल का पंजाब दौरा, लुधियाना के उद्योगपतियों की ओर से आप के शीर्ष नेतृत्व को दिया गया फीडबैक और आने वाला अहम लुधियाना उपचुनाव- ऐसा लगता है कि भागवंत मान सरकार की ओर से पंजाब में एक साल से भी ज्यादा समय से चले आ रहे किसानों के धरना स्थलों को खाली कराने के लिए की गई कड़ी कार्रवाई के पीछे यही सब कारण रहे हैं। और पंजाब के मंत्री आर्थिक स्थिति के लिए इस कारवाई को सही ठहरा रहे हैं। यही जब दिल्ली में किसान आंदोलन के वक्त ये लोग समझ पातें तो दिल्ली और आसपास के लोगों को इतना कष्ट नहीं उठाना पड़ता।
वैसे भी, किसान आंदोलन विपक्ष के किसी काम नहीं आ पाया। दिल्ली आंदोलन से केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश की सरकार को नुकसान पहुंचानी थी, जो संभव नहीं हो पाया। अब पंजाब- हरियाणा बार्डर पर किसान आंदोलन से हरियाणा में बीजेपी को नुकसान पहुंचाने की मंशा सफल नहीं हो पायी, इससे उलट आप को दिल्ली में हार मिली। अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर विपश्यना असर तो दिखाई पड़ रहा है, लेकिन दिल्ली की हार का दर्द खत्म हुआ नहीं लग रहा है। अब देखना होगा कि किसान आंदोलन पर इस दमनकारी कारवाई कर केजरीवाल राज्यसभा सदस्य संजीव अरोड़ा को लुधियाना पश्चिमी सीट पर विधानसभा उपचुनाव जीताकर अपने लिए राज्यसभा के लिए जुगत में सफल हो पातें हैं या नहीं।