लखनऊ : संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एसजीपीजीआई) के विशेषज्ञों ने पित्ताशय कैंसर के इलाज के लिए एक नई और प्रभावी तकनीक विकसित की है, जो महंगी इम्यूनोथेरेपी का सस्ता विकल्प प्रदान कर रही है और मरीजों की जीवन प्रत्याशा को भी बढ़ा रही है।
यह नई उपचार विधि, जिसमें कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी का संयोजन किया गया है, छह सप्ताह की चिकित्सा के लिए लगभग 30,000 से 40,000 रुपये की लागत आती है, जबकि इम्यूनोथेरेपी की लागत 18 से 20 लाख रुपये तक हो सकती है। यह न केवल मरीजों के लिए एक किफायती विकल्प है, बल्कि इससे जीवन में भी महत्वपूर्ण सुधार देखने को मिल रहा है।
कांबिनेशन थेरेपी से पित्ताशय कैंसर के मरीजों की जीवन प्रत्याशा में दो गुना वृद्धि
एसजीपीजीआई के रेडियोथेरेपी विभाग की प्रमुख प्रो. सुषमा अग्रवाल ने 140 पित्ताशय कैंसर के रोगियों पर अध्ययन किया, जिनमें कैंसर का फैलाव कम था। इन रोगियों को कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के संयोजन (कांबिनेशन थेरेपी) से इलाज किया गया, जिसके परिणामस्वरूप 80 प्रतिशत मरीजों में सुधार देखा गया। पारंपरिक कीमोथेरेपी औसतन 8 से 9 महीने का जीवन देती है, जबकि कांबिनेशन थेरेपी से जीवन में दोगुना इजाफा हुआ।
प्रो. अग्रवाल ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में इम्यूनोथेरेपी का खर्च 18 से 20 लाख रुपये तक हो सकता है, जबकि एसजीपीजीआई में 6 सप्ताह की कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी की लागत केवल 30,000 रुपये है। इस तकनीक से न केवल मरीजों की उम्र बढ़ रही है, बल्कि उनकी जीवन गुणवत्ता भी सुधर रही है।
अंतरराष्ट्रीय जर्नल में शोध की स्वीकृति
एसजीपीजीआई द्वारा किए गए इस शोध को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रेडिएशन ऑनकोलॉजी, बायोलॉजी और फिजिक्स ने स्वीकृति दी है, जो इस तकनीक के प्रभावी और सकारात्मक परिणामों को मान्यता देता है।
पित्ताशय कैंसर एक खतरनाक रोग है, जिसका पता अक्सर देर से चलता है, जिससे इलाज की संभावना कम हो जाती है। उत्तर प्रदेश में हर साल लगभग 50,000 लोग पित्ताशय कैंसर से प्रभावित होते हैं।
पित्ताशय कैंसर के प्रमुख लक्षणों में दाहिने ऊपरी पेट में दर्द, भूख में कमी, तेजी से वजन घटना, अपच, उल्टी, त्वचा और आंखों का पीला पड़ना और पेट में सूजन शामिल हैं। इसके प्रमुख कारणों में अनुवांशिकता, पित्ताशय में कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर, पित्त की पथरी, धूम्रपान, मोटापा और दूषित जल या तेल का सेवन शामिल हैं।