सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को करें आत्मसात

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पति के दीर्घ जीवन के लिए यूं तो महिलाएं कई व्रत अनुष्ठान करती हैं. वट सावित्री व्रत हिंदू महिलाओं के लिए इस व्रत अनुष्ठान का खास महत्व है. भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट सावित्री व्रत है. इस व्रत का संबंध सीधे तौर पर सती सावित्री से है. भारतीय धर्म में वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष का बहुत खास महत्व होता है.

स्कन्दपुराण में कहा गया है – अश्वत्थरूपी विष्णु: स्याद्वरूपी शिवो यत: अर्थात पीपलरूपी विष्णु व जटारूपी शिव हैं. वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा जी, तने में विष्णु जी और डालियों एवं पत्तों में शिव जी का वास है. इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा कहने और सुनने से मनोकामना पूरी होती है. ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था. इस व्रत के महत्व और महिमा का उल्लेख कई धर्मग्रंथों और पुराणों जैसे स्कंद पुराण, भविष्योत्तर पुराण, महाभारत आदि में भी मिलता है. सौभाग्यवती स्त्रियों का यह व्रत अखंड सौभाग्य और संतान प्राप्ति की कामना के लिए होता है. सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना इस व्रत का मुख्य उद्देश्य है.

मुहुर्त

अमावस्या तिथि 05 जून को अपराह्न 07 :57 बजे से शुरू होगी और 06 जून को शाम 06 बजकर 09 मिनट तक रहेगी. सूर्योदय-सूर्यास्त की गणना के अनुसार इस वर्ष वट सावित्री व्रत 06 जून को रखा जाएगा तथा व्रत का पारण 07 जून को किया जाएगा.

पूजन विधि

महिलाएं सूर्योदय से पहले आंवले और तिल के साथ पवित्र स्नान कर नए व साफ कपड़े पहने। सिंदूर लगाने के साथ-साथ नई चूड़ियाँ पहने जोकि किसी महिला का विवाहित होना दर्शाता है। सोलह श्रृंगार करने के पश्चात सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई साथ रखें. वट वृक्ष का पत्ता बालों में लगाएं. वट वृक्ष के समीप बैठकर बांस के एक पात्र में सप्तधान्य भर कर उसे दो वस्त्रों से ढंक दे और दूसरे पात्र में ब्रह्मसावित्री तथा सत्य सावित्री की मूर्ति स्थापित करके गन्धाक्षतादि से पूजन करें. तत्पश्चात, वट वृक्ष में लाल या पीले रंग का पवित्र धागा (कच्चा सूत) लपेट कर उसका यथाविधि पूजन करके 7,11,21,51 या 101 आदि अपनी श्रद्धानुसार परिक्रमा करें.

प्रातः स्नान के पश्चात् इस मंत्र से संकल्प कर उपवास रखें

मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं च वट सावित्री व्रतमहं करिष्ये।

इस मंत्र से सावित्री को अर्घ्य दें और समस्त मनोकामना की पूर्ति हेतु प्रार्थना करें।

अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते। पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोस्तु ते।।

इस श्लोक से वट वृक्ष सेसमस्त मनोकामना की पूर्ति हेतु प्रार्थना करें।

वट सिञ्चामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः। यथा शाखा प्रशाखाभिर्वृद्धोसि त्वं महीतले।।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से पति की आयु लंबी होती है. इसके बाद सती सावित्री और सत्यवान की कथा सुने और फिर पूजा संपन्न होने के बादचने गुड़ का प्रसाद बांटे. महिलाएं अपने घर के बुजुर्गों का आशीर्वाद लें. इस दिन जरूरतमंदों को दान, कपड़े, भोजन, धन और अन्य आवश्यक वस्तुओं का उपहार देने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है.

 वट सावित्री व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा का राज था. वह और उनकी पत्नी निःसंतान थे और एक ऋषि के कहने पर उन्होंने संतान हेतु यज्ञ करवाया. भगवान इस दंपत्ति की तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें एक कन्या प्राप्ति का आर्शीवाद दिया. जिसका नाम सावित्री रखा गया. काफी लंबे समय से राजा अपनी बेटी के लिए एक उपयुक्त वर खोजने में असमर्थ था, उसने सावित्री को अपना जीवनसाथी स्वयं खोजने के लिए कहा. अपनी यात्रा के दौरान, उसने राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पाया. राजा अंधे थे और वह अपना सारा धन और राज्य खो चूका था. अब वह बहुत ही द्ररिद्रता का जीवन जी रहे थे. सत्यवान जंगल से लकड़ियां काटकर लाते और उन्हें बेचकर जैसे-तैसे अपना गुजारा कर रहे थे. सावित्री ने सत्यवान को अपने उपयुक्त साथी के रूप में पायाऔर फिर अपने राज्य लौट आई. जब वह घर आई, तो नारद मुनि भी वहां मौजूद थे, उन्होंने राजा को अपनी पसंद के बारे में बताया. उसकी बात सुनकर, नारद मुनि ने राजा अश्वपति से कहा कि इस विवाह को मना कर दें क्योंकि सत्यवान का जीवन बहुत कम बचा है और वह एक वर्ष में ही मृत्यु को प्राप्त जाएगा.

हालांकि राजा अश्वपति सत्यवान की गरीबी को देखकर पहले ही चिंतित थे और सावित्री को समझाने की कोशिश में लगे थे। नारद की बात ने उन्हें और चिंता में डाल दिया था. लेकिन स्त्री गुणों के एक तपस्वी और आदर्श होने के नाते उसने इनकार कर दिया और कहा कि वह केवल सत्यवान से ही शादी करेगी, भले ही वह अल्पायु हो. सावित्री के पिता सहमत हो गए और सावित्री और सत्यवान विवाह बंधन में बंध गए. सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लगी रही।

सावित्री तपस्वी जीवन जीती थी. एक साल बाद जब सत्यवान की मृत्यु का समय आने वाला था, तब सावित्री ने उपवास शुरू कर दिया और सत्यवान की मृत्यु के निश्चित दिन परवह सत्यवान साथ जंगल में चली गई. वन में सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगे, उनके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गए. जब यमराज सत्यवान के जीवात्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे, पतिव्रता सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी. आगे जाकर यमराज ने सावित्री से कहा, ‘हे पतिव्रता नारी! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया. अब तुम लौट जाओ. इस पर सावित्री ने कहा, ‘जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए। यही सनातन सत्य है।’

उसके संकल्प और तपस्या को देखकर, यमराज ने उसे तीन इच्छाएं मांगने का वरदान दिया. अपनी पहली इच्छा में सावित्री ने अपने ससुर की आंखों की रोशनी मांगी. दूसरे वरदान में सावित्री ने ससुर का खोया हुआ राज्य माँगा और अंतिम और तीसरे वरदान में सावित्री ने ‘सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं का वरदान माँगा. यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे लौट जाने को कहा और आगे बढ़ने लगे। इस तरह उन्हें सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न हो इस अंतिम वरदान को देते हुए यमराज ने सत्यवान की जीवात्मा को पाश से मुक्त कर दिया और अदृश्य हो गए.

उस दिन के बाद से, वट सावित्री व्रत सैकड़ों हिंदू विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पतियों की दीर्घायु के लिए मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष के नीचे सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करने से सौभाग्य एवं स्थायी धन और सुख-शांति की प्राप्ति होती है. पति की आयु लंबी होती है और संतान सुख प्राप्त होता है।

ज्योतिषी संतोषाचार्य
कुंडली, हस्तरेखा एवं वास्तु विज्ञान विशेषज्ञ
Phone +91 9934324365

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