अपर मुख्य सचिव ने किया ‘बिहार की भूमि विधियाँ’ पुस्तक का विमोचन

Subscribe & Share

पटना – 15 अप्रैल, 2025: आज अपर मुख्य सचिव ने अपने कार्यालय कक्ष में महत्वपूर्ण पुस्तक ‘बिहार की भूमि विधियाँ’ का विमोचन किया। इस अवसर पर सचिव जय सिंह, पुस्तक के लेखक राधा मोहन प्रसाद, विभाग के विशेष सचिव अरुण कुमार सिंह, संयुक्त सचिव अनिल कुमार पांडेय और आजीव वत्सराज भी उपस्थित थे।

पुस्तक के विषय में जानकारी देते हुए अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने बताया कि यह पुस्तक भूमि कानूनों से संबंधित सभी अधिनियमों और नियमावलियों की जानकारी बिहार के रैयतों (किसानों) को एक ही स्थान पर उपलब्ध कराएगी। हिंदी में प्रकाशित यह पुस्तक सभी के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी। उन्होंने बताया कि पुस्तक में विभाग द्वारा समय-समय पर जारी की जाने वाली भूमि सुधार संबंधी नीतियों को भी शामिल किया गया है। विशेष रूप से, बेतिया राज की संपत्तियों को निहित करने वाले अधिनियम, 2024 को भी इस पुस्तक में जगह दी गई है।

अपर मुख्य सचिव ने कहा कि स्वतंत्रता से पूर्व के सभी अधिनियम अंग्रेजी भाषा में थे, जिन्हें समझने में आम लोगों को कठिनाई होती थी। इस पुस्तक में बिहार काश्तकारी अधिनियम, 1885, बंगाल एलुवियन एवं डिल्यूवियन विनियम, 1825, बंगाल एलुवियन एवं डिल्यूवियन एक्ट, 1847, बंगाल गंगबरार भूमि बंदोबस्ती अधिनियम, 1858, बंगाल गंगबरार संशोधन अधिनियम, 1868, बिहार बकाश्त विवाद निपटारा अधिनियम, 1947 जैसे महत्वपूर्ण अधिनियमों का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है।

विभाग के सचिव जय सिंह ने कहा कि भूमि विधियों को विभिन्न राजस्व न्यायालयों, प्राधिकारियों, अधिवक्ताओं और आम काश्तकारों के लिए सुलभ बनाने के उद्देश्य से उन्हें समेकित रूप से एक साथ जिल्दबद्ध रूप में प्रकाशित किया गया है। ‘बिहार की भूमि विधियाँ’ शीर्षक के अंतर्गत जमींदारी उन्मूलन से पूर्व के अधिनियमों और वर्ष 1950 के बाद विभिन्न भूमि विषयों से संबंधित अधिनियमों, नियमावलियों, खास महाल नीति और रैयती भूमि लीज नीति को एक साथ संकलित कर हिंदी भाषा में प्रस्तुत किया गया है।

यह उल्लेखनीय है कि भूमि विधियों का निर्माण ब्रिटिश शासन काल में भूमि को भू-संपदा स्वीकार करने के बाद शुरू हुआ। प्रारंभिक काल में भूमि विधियों का मुख्य उद्देश्य भू-राजस्व का निर्धारण और संग्रहण करना था। बाद में, भूमि विधियों के माध्यम से काश्तकारों को उनके अधिकार प्रदान करना और उनकी स्पष्ट व्याख्या करना भी इसका उद्देश्य बन गया। 1950 में बिहार भूमि सुधार अधिनियम, 1950 और नियमावली, 1951 के लागू होने के बाद जमींदारी का उन्मूलन हुआ। राज्य सरकार द्वारा भूमि सुधार की नीतियों को लागू करने के लिए समय-समय पर कानून बनाए जाते रहे हैं।

इस पुस्तक में बिहार विशेष सर्वेक्षण एवं बंदोबस्त अधिनियम, 2011, बिहार विशेष सर्वेक्षण एवं बंदोबस्त नियमावली, 2012 (संशोधन नियमावली, 2024 द्वारा यथासंशोधित), बिहार भूमि दाखिल खारिज अधिनियम, 2011, बिहार भूमि दाखिल-खारिज नियमावली, 2012 (संशोधन नियमावली, 2017), बिहार भूमि विवाद निराकरण अधिनियम, 2009, बिहार भूमि विवाद निराकरण नियमावली, 2010, बिहार भूमि न्यायाधिकरण नियमावली, 2010, बिहार कृषि भूमि (गैर-कृषि प्रयोजनों के लिए सम्परिवर्तन) अधिनियम, 2010 और बिहार कृषि भूमि (गैर कृषि प्रयोजनों के लिए सम्परिवर्तन) नियमावली, 2011 सहित कुल 47 भूमि सुधार संबंधित कानूनों को शामिल किया गया है।

उल्लिखित अधिनियमों के प्रावधानों से जहां बिहार के काश्तकारों और भू-धारकों को लाभ मिला है, वहीं विभिन्न राजस्व प्राधिकारियों को भूमि से संबंधित विभिन्न राजस्व वादों के निष्पादन में मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है।

पुस्तक के लेखक राधा मोहन प्रसाद ने कहा कि इन अधिनियमों और नियमावलियों के प्रावधानों को अधिनियम से संबंधित वाद राजस्व न्यायालयों में दायर होने पर विद्वान अधिवक्ताओं द्वारा सुसंगत धाराओं की विवेचना कर तथ्यों को स्पष्ट किया जाता रहा है। हिंदी में इस पुस्तक के प्रकाशन से सभी वर्ग के लोग जमीन संबंधी समस्याओं का समाधान आसानी से कर सकेंगे।

बिहार की भूमि विधियों से संबंधित इस महत्वपूर्ण पुस्तक का प्रकाशन प्रीतम लॉ हाउस प्राइवेट लिमिटेड, सालिमपुर अहरा, पटना द्वारा किया गया है। लेखक ने इस कार्य के लिए प्रीतम लॉ हाउस के प्रोपराइटर प्रीतम कुमार और उत्तम कुमार को धन्यवाद दिया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस पुस्तक से बिहार के आमजनों, राजस्व प्राधिकारियों और विद्वान अधिवक्ताओं को लाभ मिलेगा।


Santosh Srivastava “Anjaan Jee”

× Subscribe