मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बड़ा कदम: भाजपा और राजद के मंसूबों को नाकाम करेंगे बेटे निशांत कुमार

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में अपनी राजनीतिक विरासत को लेकर एक अहम कदम उठाने की योजना बनाई है, जिसे लेकर भाजपा और राजद दोनों दलों के नेताओं के बीच खलबली मच गई है। दोनों दलों को इस बात की आशा थी कि नीतीश कुमार के राजनीति से संन्यास लेने के बाद अति पिछड़ा वर्ग का वोट बैंक बंट जाएगा, जिससे उन्हें लाभ होगा। लेकिन अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की राजनीति में एंट्री की चर्चाओं ने इन दलों के इस मंसूबे को खारिज कर दिया है।

सीतामढ़ी में आयोजित एक कार्यक्रम में जेडीयू नेता आनंद मोहन ने कहा, “अगर निशांत राजनीति में कदम रखते हैं तो यह स्वागत योग्य कदम होगा।” पिछले कुछ समय से नीतीश कुमार की बढ़ती उम्र और उनके बयानों से पार्टी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस बीच, तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को मानसिक रूप से अस्वस्थ भी करार दिया था। ऐसे में, जेडीयू में नेतृत्व का संकट गहरा सकता था, लेकिन अगर निशांत राजनीति में आते हैं, तो यह संकट टल सकता है।

पार्टी के भीतर पीढ़ीगत परिवर्तन का दौर आता है, जैसा कि समाजवादी पार्टी में देखा गया था, जहां पुराने नेता नए नेताओं के लिए रास्ता छोड़ने को मजबूर हुए थे। अखिलेश यादव ने इस चुनौती का सामना करते हुए मुलायम सिंह यादव की विरासत को संभाला और पार्टी की कमान संभाली। अगर निशांत कुमार राजनीति में आते हैं, तो यह जेडीयू के लिए भी एक सकारात्मक बदलाव हो सकता है।

राजनीति में परिवारिक नेतृत्व की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। यदि हम भारतीय राजनीति के बड़े दलों पर नजर डालें तो परिवारों के नेतृत्व में ही वो दल चल रहे हैं, जैसे कि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और तृणमूल कांग्रेस। इन दलों में परिवारिक विरासत के बिना पार्टी का भविष्य संकट में होता। जैसे कि राहुल गांधी ने कांग्रेस को बचाए रखा है, उसी तरह अगर निशांत कुमार जेडीयू में शामिल होते हैं, तो पार्टी के अस्तित्व को मजबूत बनाए रखा जा सकता है।

नीतीश कुमार को यह अच्छी तरह से समझ में आता है कि उनकी पार्टी के भीतर सत्ता संघर्ष और वोट बैंक का बंटवारा होने से भाजपा और राजद को फायदा हो सकता है। इसलिए अगर निशांत कुमार को राजनीति में उतारा जाता है, तो इससे पार्टी की एकजुटता बनी रहेगी और नीतीश कुमार की विरासत भी सुरक्षित रहेगी।

यह कदम न केवल जेडीयू के लिए, बल्कि बिहार की राजनीति के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।

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