दिल्ली की राजनीति: आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच की जटिल राह

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दिल्ली की राजनीति में पिछले एक दशक में कई महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख आम आदमी पार्टी का उभार और कांग्रेस का धीरे-धीरे राजनीतिक धरातल से हटना शामिल है। इन दोनों दलों के बीच का रिश्ता एक जटिल परिपेक्ष्य में बदला है, जिसमें कभी सहयोग तो कभी प्रतिद्वंद्विता देखने को मिली है। 

आम आदमी पार्टी का उदय और दिल्ली में कांग्रेस का पतन

आम आदमी पार्टी (AAP) ने 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपने अभियान की शुरुआत की। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में यह पार्टी जनता के बीच भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत संदेश देने में सफल रही। 2013 के चुनाव में AAP ने कांग्रेस और भाजपा को चुनौती दी और 28 सीटें जीतकर दिल्ली विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज की। हालांकि, पूर्ण बहुमत पाने में AAP असफल रही और कांग्रेस ने समर्थन देकर AAP को सरकार बनाने का अवसर दिया। लेकिन केवल 49 दिन में ही अरविंद केजरीवाल ने सरकार से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि उनकी प्रमुख मांग—लोकपाल बिल—को पारित नहीं किया गया। इस घटना ने दिल्ली की राजनीति में एक नया मोड़ लिया और कांग्रेस-AAP गठबंधन के अंत का संकेत दिया।

2015 के विधानसभा चुनावों में AAP ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 70 में से 67 सीटें जीत लीं। कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए यह एक बड़ा झटका था। कांग्रेस, जो पहले दिल्ली में सत्तारूढ़ पार्टी थी, एक भी सीट नहीं जीत पाई। इस परिणाम ने यह स्पष्ट कर दिया कि दिल्ली में कांग्रेस का जनाधार गिर चुका है, और AAP के लिए दिल्ली का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह से बदल चुका था।

कांग्रेस और AAP का आपसी संबंध

दिल्ली में कांग्रेस का पतन केवल विधानसभा चुनावों तक सीमित नहीं रहा। कांग्रेस ने 2004 से 2014 तक दिल्ली में लगातार सत्ता का संचालन किया था, लेकिन 2013 के बाद से यह पार्टी अपनी राजनीतिक स्थिति को फिर से स्थापित करने में नाकाम रही। AAP के उभार ने कांग्रेस के लिए नई चुनौतियां पैदा कीं। AAP ने अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से दिल्ली के लोगों को एक नया विकल्प दिया, जबकि कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई थी और भाजपा की बढ़ती ताकत से जूझ रही थी।

AAP और कांग्रेस के बीच का रिश्ता कभी दोस्ताना तो कभी प्रतिद्वंद्वी रहा है। जब कांग्रेस ने 2013 में AAP को सरकार बनाने में मदद की, तो यह दोनों दलों के बीच एक अस्थायी गठबंधन था, जो लंबे समय तक चल नहीं सका। AAP के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करना एक तरह से अपनी वैधता को साबित करने का अवसर था, लेकिन यह गठबंधन केवल असहमति के कारण टूट गया। इसके बाद से दोनों पार्टियों के बीच कोई गहरे गठबंधन का कोई प्रयास नहीं हुआ, और दोनों ही दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी युद्ध छेड़ा।

कांग्रेस और AAP के भविष्य के समीकरण

दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस और AAP के बीच रिश्ते की स्थिति लगातार बदल रही है। दोनों दलों के बीच समझौते की संभावना या फिर से गठबंधन के प्रयास की स्थिति पर कई सवाल खड़े होते हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और AAP ने एक-दूसरे से कोई गठबंधन नहीं किया, जबकि दोनों ही भाजपा को चुनौती देने का दावा करते रहे। यह संकेत था कि दोनों दलों के बीच राजनीतिक मतभेदों की गहराई अब तक कम नहीं हुई है।

दिल्ली में AAP की सत्ता में आना और अपनी प्रभावी शासन व्यवस्था को साबित करना, कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। AAP ने अपनी सरकार के दौरान शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली के मुद्दों पर कई योजनाएं लागू की हैं, जिससे दिल्लीवासियों के बीच उसकी लोकप्रियता बढ़ी है। इसके विपरीत, कांग्रेस इन मुद्दों पर प्रभावी नहीं दिखी, और उसके पास ऐसा कोई ठोस नेतृत्व भी नहीं है जो AAP को चुनौती दे सके।

2024 के चुनावों में संभावनाएं

दिल्ली में आगामी लोकसभा चुनावों में दोनों दलों के लिए अपनी राजनीतिक दिशा तय करना अहम होगा। जबकि कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनाने की दिशा में प्रयास जारी है, AAP ने भी दिल्ली के मुद्दों पर केंद्र सरकार को चुनौती देने का प्रयास किया है। ऐसे में 2024 में दिल्ली में इन दोनों दलों के बीच गठबंधन की संभावना बढ़ सकती है, खासकर अगर दोनों की रणनीति भाजपा के खिलाफ एकजुट हो जाती है। हालांकि, कांग्रेस और AAP के बीच मतभेद इतने गहरे हैं कि गठबंधन की संभावना कम ही नजर आती है।

दिल्ली में AAP का प्रभुत्व बढ़ने के साथ ही कांग्रेस के लिए एक नई चुनौती खड़ी हो गई है। कांग्रेस के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह अपनी पुरानी पहचान को फिर से हासिल करने के लिए नए तरीकों से दिल्ली की राजनीति में अपनी जगह बनाए। इसके लिए कांग्रेस को अपनी रणनीतियों को बदलने, और AAP से मुकाबला करने के लिए युवा नेतृत्व और मुद्दों पर अधिक फोकस करने की आवश्यकता होगी।

दिल्ली की राजनीति में AAP और कांग्रेस दोनों के लिए चुनौतियां हैं। जहां AAP अपने शासन को स्थापित कर रही है, वहीं कांग्रेस को फिर से अपनी राजनीतिक जमीन तलाशनी होगी। AAP और कांग्रेस के बीच का रिश्ता, चाहे वह गठबंधन हो या संघर्ष, दिल्ली की राजनीति के भविष्य को निर्धारित करेगा। आने वाले समय में इन दोनों दलों के बीच के समीकरण और उनकी रणनीतियों के आधार पर दिल्ली की राजनीति में नए बदलाव हो सकते हैं।

– अंजान जी
मुख्य संपादक सह प्रकाशक

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