दुख-दारिद्र मोचन के लिए करें अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ

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सनातनी शास्त्र में दारिद्र रूपक अभिशाप जनित दुख-दुर्दशा से मुक्ति लाभ के लिए अष्टलक्ष्मी स्तोत्र-पाठ का निर्देश है. किन्तु समुचित कर्मयोग आधारित कठिन मेहनत के बिना सिर्फ स्तोत्र पाठ से किसी को भी दुख- दुर्दशा से निवृत्ति नहीं मिलेगी. पहले इस निच्छक वास्तवता को दृष्टि में रखकर ही सही तरीके अपनाकर मेहनती कर्म से निविष्ट रहना जरूरी है.

“बुभुक्षित: किं करोति पापम्, क्षीणा: नरा: निष्करुणा भवन्ति..”

अर्थात- “भूखा व्यक्ति (जिसको लक्ष्मी की कृपा नहीं है) कौन सा पाप नहीं करता !!” – इस छोटे से वाक्य में ही धन की महत्ता और माता लक्ष्मी की अनन्त महात्म्य परिस्फुटित होता है.

अष्ट लक्ष्मी

अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम

“सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि,
चन्द्र सहोदरि हेममये,
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनि,
मंजुल भाषिणी वेदनुते।
पंकजवासिनी देव सुपूजित,
सद्गुण वर्षिणी शान्तियुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
आद्य लक्ष्मी परिपालय माम्।।”

धान्यलक्ष्मी स्तोत्रम

“अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनी,
वैदिक रूपिणि वेदमये,
क्षीर समुद्भव मंगल रूपणि,
मन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते।
मंगलदायिनि अम्बुजवासिनि,
देवगणाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धान्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।”

धैर्यलक्ष्मी स्तोत्रम

“जयवरवर्षिणी वैष्णवी भार्गवि,
मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये,
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद,
ज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते।
भवभयहारिणी पापविमोचिनी,
साधु जनाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।”

गजलक्ष्मी स्तोत्रम

“जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि,
सर्वफलप्रद शास्त्रमये,
रथगज तुरगपदाति समावृत,
परिजन मण्डित लोकनुते।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित,
ताप निवारिणी पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
गजरूपेणलक्ष्मी परिपालय माम्।।”

संतानलक्ष्मी स्तोत्रम

“अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणि,
राग विवर्धिनि ज्ञानमये,
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि,
सप्तस्वर भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर,
मानव वन्दित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम्।।”

विजयलक्ष्मी स्तोत्रम

“जय कमलासिनि सद्गति दायिनि,
ज्ञान विकासिनी ज्ञानमये,
अनुदिनमर्चित कुन्कुम धूसर,
भूषित वसित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित,
शंकरदेशिक मान्यपदे,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
विजयलक्ष्मी परिपालय माम्।।”

विद्यालक्ष्मी स्तोत्रम

“प्रणत सुरेश्वर भारति भार्गवि,
शोकविनाशिनि रत्नमये,
मणिमय भूषित कर्णविभूषण,
शान्ति समावृत हास्यमुखे।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि,
कामित फलप्रद हस्तयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम्।।”

धनलक्ष्मी स्तोत्रम

“धिमिधिमि धिन्दिमि धिन्दिमि,
दिन्धिमि दुन्धुभि सुसम्पूर्णमये,
घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंम,
शंख निनाद सुवाद्यनुते।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित,
वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम्।।”

अष्टलक्ष्मी बन्दन

“अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी,
विष्णु वक्ष:स्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी।
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जय:,
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्।।”

-इति श्रीअष्टलक्ष्मी स्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

ज्योतिषी संतोषाचार्य
ज्योतिष विशारद एवं वास्तु आचार्य
+91 9934324365; @astrosantosha

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