संजय कुमार विनीत : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आगामी 30 मार्च को नागपुर दौरा बीजेपी और आरएसएस दोनों के लिए राजनीतिक और वैचारिक दृष्टिकोण से विशेष महत्त्व होने के साथ साथ राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका रखेगा। भारत की महान परंपराओं और संस्कृति को जीवित रखने का श्रेय आरएसएस को देने वाले पीएम मोदी के इस दौरे से बीजेपी और आरएसएस के बीच कुछ दिनों से व्याप्त खटास को दूर होने के साथ साथ भाजपा को नया अध्यक्ष भी मिल जाने की उम्मीदें है। मोदी नागपुर का दौरा करने वाले पहले पीएम होंगे जो आरएसएस के कार्यक्रम में पहली बार नागपुर में सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ मंच साझा करेंगे, इससे ना सिर्फ आपसी तल्खियां मिटेगी, बल्कि राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में कयी रणनीतियां तय होगी।
दरअसल, पीएम मोदी मोदी 30 मार्च को गुड़ी पड़वा पर्व के अवसर पर नागपुर जायेंगे और इस दौरान वह संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवरकर के नाम पर बनने वाले नेत्र अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र की आधारशिला रखेंगे। इसी समारोह में पीएम मोदी पहली बार नागपुर में सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ मंच साझा कर सकते हैं। पीएम के संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार को श्रद्धांजलि देने दीक्षाभूमि भी जाने की भी खबर है। पीएम जब नागपुर में होगें तब संघ की 21 से 23 मार्च के बीच होने वाली प्रतिनिधि सभा की बैठक संपन्न हो चुकी होगी और इस साल विजयादशमी के दिन अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरा करने वाला संघ शताब्दी वर्ष की कार्ययोजना तैयार कर रहा होगा। वहीं बीजेपी के पास राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर चयन के साथ, केन्द्र सरकार के लिए धर्मांतरण, जनसंख्या नीति जैसे अहम मुद्दों पर अपनी कार्ययोजना तैयारी करने की भी जिम्मेदारी होगी। दोनों प्रमुख आपस में मिलकर इसपर चर्चा करेंगे।
उल्लेखनीय है कि विविध वक्तव्यों को लेकर सरसंघचालक भागवत व बीजेपी में मतभेद नजर आए हैं। मस्जिद, शिवालय व हिंदू-मुस्लिम को लेकर सरसंघचालक के वक्तव्य विशेष चर्चा में रहे। प्रयागराज में महाकुंभ में सरसंघचालक को लेकर संतों में मतभेद के अलावा अन्य विषय भी चर्चा में रहे हैं। 2024 की लोकसभा चुनाव के पहले से ही बीजेपी और संघ के रिस्ते में थोड़ी करवाहट और तलिख्यां देखने को मिल रही थी, इसका परिणाम चुनाव परिणाम में भी देखने को मिला था। कहा जाता है कि इसकी वजह ये रही कि दोनों संगठनों में एक दूरी बन गई थी। लेकिन, हरियाणा , महाराष्ट्र और दिल्ली चुनाव में दोनों के गिले-शिकवे दूर हुए तो परिणाम बहुत अच्छे देखने को मिले।हलांकि, बीजेपी और मोहन भागवत सार्वजनिक रूप से कभी एक दूसरे को सीधे बोलते भले ही नहीं देखें गयें हों, पर सबों के समझ उनके बयान आ जाते रहें हैं।
दूरी बढाने की रही सही कसर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक इंटरव्यू से पुरी कर दी थी। 17 मई को इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए एक इंटरव्यू में , वर्तमान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने और मोदी के कार्यकाल के दौरान पार्टी के साथ आरएसएस के संबंधों में आए बदलाव के बारे में पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था, “शुरू में हम अक्षम थे, थोड़ा कम रहे होंगे, आरएसएस की जरूरत पड़ती थी। आज हम बड़े हो गए हैं और हम सक्षम हैं इसलिए भाजपा खुद चलती है, यही अंतर है।” इसके बाद ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी के परिणाम आशानुरूप नहीं आ पाये थे।
हलांकि, पीएम मोदी का संघ के प्रति लगाव, झुकाव और रिश्ता कोई नहीं बात नहीं लेकिन कुछ महीनों के अंदर ही लगातार तीन बार आरएसएस की तारीफ करना और कहना कि संघ को केवल एक संगठन के रूप में नहीं, बल्कि अपने जीवन का आधार मानते हैं।और फिर नागपुर संघ मुख्यालय जाने को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा गरम है। इस दौरे से यह संदेश मजबूती से निकल सकेगा कि दोनों संगठनों में अब किसी भी तरह का संघर्ष नहीं है और यह राजनीतिक दृष्टिकोण से बीजेपी के कार्यकर्ताओं के लिए मनोबल बढ़ाने वाला रहेगा।
पूर्व पीएम बाजपेयी जी के साथ भी संघ के गिले शिकवे रहें थे। हलांकि, पीएम मोदी ने अपने तरफ से ऐसा कभी कोई वयान नहीं दिया है जो संघ से दूरियां बढाने वाली हो, पर बीजेपी अध्यक्ष नड्डा के इंटरव्यू वाले वयान मोदी जी से जोडकर देखें जा रहे थे। इतना तो निश्चित है कि नड्डा ने यूँ ही ऐसे वयान नहीं दिये होगें। अब ये वयान किसके कहने पर दिये गये थे, ये तो नड्डा ही बता सकते हैं या फिर जिसके आदेश पर ये वयान दिये गये वे बता सकते हैं। खैर, अब इसपर गहराई से जाने की कोई जरूरत नही रही। अब आरएसएस मुख्यालय में संघ के शीर्ष नेताओं के साथ पीएम मोदी की बैठक किसी भी तरह की उलझन को सुलझाने की दिशा में एक और कदम हो सकती है। इसी तरह की एक पिछली बैठक सितंबर 2015 में हुई थी, जब मोदी और भागवत राष्ट्रीय राजधानी में 93 शीर्ष आरएसएस-भाजपा नेताओं की समन्वय समिति की बैठक में शामिल हुए थे।
यह दौरा गुड़ी पड़वा के पवित्र अवसर पर हो रहा है, जो मराठी नववर्ष है। साथ ही, हेडगेवार की जयंती भी इसी दिन (हिंदी-मराठी पंचांग के अनुसार) पड़ती है, जो इस आयोजन को और भी अधिक महत्वपूर्ण बना देती है। इससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि भाजपा और संघ हिंदू नववर्ष के अवसर को एक बड़े वैचारिक अवसर में बदलना चाहते हैं। पीएम मोदी के साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद संघ मुख्यालय में उनका यह पहला दौरा होगा। संघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच की नजदीकी किसी से छिपी नहीं है, और प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संघ के शताब्दी वर्ष के दौरान हो रहा है। पीएम मोदी के इस दौरे से संघ के इतिहास में यह पल एक ऐतिहासिक क्षण बनेगा।
इससे पहले पीएम मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत की आखिरी मुलाकात पिछले साल 22 जनवरी को राम मंदिर के उद्घाटन समारोह के दौरान हुई थी।नागपुर में समारोह में संघ प्रमुख और पीएम मोदी नागपुर में सार्वजनिक रूप से पहली बार मंच साझा करेंगे। इससे पहले दोनों शख्सियतों ने राम मंदिर के भूमि पूजन और प्राण प्रतिष्ठा के दौरान साल 2023 और 2024 में सार्वजनिक रूप से मंच साझा किया था। दोनों प्रमुखों के अलग से बैठक बातचीत के लिए भी प्रस्तावित बतायी जा रही है। इसी बैठक में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए नामों पर मुहर लगा दी जायेगी और संभवतः अप्रैल के प्रथम सप्ताह में बीजेपी को नया अध्यक्ष भी मिल जायेगा।
प्रधानमंत्री मोदी का नागपुर दौरा केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह भाजपा और संघ की आगामी रणनीतियों की दिशा तय करने वाला एक महत्वपूर्ण अवसर साबित हो सकता है। संघ के 100 साल पूरे होने के अवसर पर यह दौरा भाजपा के दीर्घकालिक विजन को स्पष्ट करने और संगठनात्मक मजबूती को पेश करने का एक मंच बनेगा। इसके माध्यम से इसकी हिंदुत्व की विचारधारा को मजबूती मिलेगी, और साथ ही सामाजिक विकास की योजनाओं पर भी जोर दिया जाएगा।
संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक