भारतीय संगीत जगत आज भी महान संगीतकार चित्रगुप्त श्रीवास्तव (16 नवंबर 1917 – 14 जनवरी 1991) को श्रद्धापूर्वक याद करता है। हिंदी और भोजपुरी सिनेमा के इस अद्वितीय संगीतकार का जन्म बिहार के सारण जिले (अब गोपालगंज) के सावरेजी गांव में हुआ था। दो विषयों में परास्नातक चित्रगुप्त ने अपने जीवन में संगीत के क्षेत्र में जो उपलब्धियां हासिल कीं, वे आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।
चित्रगुप्त ने 1946 से 1998 तक 150 से अधिक फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया। उनके संगीत ने भारतीय सिनेमा को अमूल्य धरोहर दी है। उनकी रचनाओं की खासियत थी शास्त्रीय संगीत और समकालीन धुनों का सुंदर संगम। ज़बक, भाभी, ऊंचे लोग, इंसाफ की मंज़िल और काली टोपी लाल रूमाल जैसी फिल्मों में उनका संगीत अमर हो गया। मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर द्वारा गाया गीत “लागी छूटे ना” आज भी लोगों के दिलों पर राज करता है।
1962 में रिलीज़ हुई फिल्म मैं चुप रहूंगी ने चित्रगुप्त को घर-घर में लोकप्रिय बना दिया। इस फिल्म के गाने “चांद जाने कहां खो गया” और “कोई बता दे दिल है कहां” ने दर्शकों का दिल जीत लिया। इसके अलावा, फिल्म गंगा की लहरें का गीत “मचलती हुई हवा ये” भी आज तक लोगों के दिलों में बसा हुआ है।
किशोर कुमार को शास्त्रीय गीत “पायलवाली देख ना” और लोकप्रिय गीत “अगर सुन ले कोई नगमा” गाने का मौका देकर उन्होंने उनकी प्रतिभा का नया पक्ष उजागर किया।
चित्रगुप्त न केवल एक महान संगीतकार थे, बल्कि एक विद्वान भी थे। उनकी यह विद्वता उनके संगीत में भी झलकती थी। उनके बेटे आनंद-मिलिंद ने भी उनके संगीत के नक्शे-कदम पर चलते हुए बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई।
चित्रगुप्त का योगदान न केवल हिंदी सिनेमा बल्कि भोजपुरी सिनेमा के लिए भी अद्वितीय रहा। उनकी धुनें और रचनाएं भारतीय संगीत जगत की धरोहर हैं। हम सभी को गर्व है कि उन्होंने भारतीय सिनेमा को इतना समृद्ध बनाया।