संजय कुमार विनीत :आप सुप्रिमो अरविंद केजरीवाल का दिल्ली में चुनाव हारते ही सत्ता की कवच अब उनके पास नहीं रही और अब पार्टी बचाने के साथ साथ भ्रष्टाचार के कयी आरोपों और चुनाव के दरम्यान लगाये गये आरोपों से बच निकलने की चुनौतियां सामने आ गयी है। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से चर्चा में आये अरविंद केजरीवाल 2011 से अबतक शुरूआती एक साल तक ही सत्ता से अलग रहें हैं, इसलिए उनके लिए अब अपने उपर लगे भ्रष्टाचार से निपटने की चुनौतियां आसान नहीं दिख रही है।
अरविंद केजरीवाल ने राजनीति की शुरुआत 2 अक्टूबर 2012 से आम आदमी पार्टी बनाकर की। हलांकि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के प्रणेता रहे अन्ना हजारे ने उन्हें राजनीति में आने से काफी रोका था। अरविंद केजरीवाल की पहचान भी इसी आंदोलन से निकलकर सामने आयी थी। कल भी अन्ना हजारे ने केजरीवाल को कहा कि हम आपको बहुत प्यार करते थे, लेकिन आपने समाजसेवा का मार्ग छोड़ दिया। सत्ता हासिल कर आप उसमें बह गये। हमने समझाने की बहुत कोशिश की, पर आप पर सत्ता का नशा चढ़ गया था।
अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी ने 2013 का दिल्ली विधानसभा चुनाव लडा और विधानसभा की 28 सीट जीतकर कांग्रेस के साथ मिलकर दिल्ली में सरकार बनायी। जबकि अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस का ही विरोध कर चुनाव जीता था और कांग्रेस का समर्थन ना लेने को लेकर बच्चों की कसम तक खायी थी। हलांकि, उसके बाद कयी बार कांग्रेस का समर्थन लिया और कांग्रेस के साथ इंडी गठबंधन में भी शामिल रहे। 2013 से अबतक सिर्फ शुरुआती एक साल छोड़ कर हमेशा सत्ता में रहे केजरीवाल की असली परीक्षा अब चुनाव हारने से शुरू होने वाली है।
दिल्ली में अपनी पार्टी की हार और स्वयं अपनी विधानसभा सीट नहीं बचा पाने के कारण अब वो किसी संवैधानिक पद पर नहीं रहें। हलांकि अपनी पार्टी की सुप्रिमो वो आज भी है। पंजाब में उनके पार्टी की सरकार भी है। आवकारी घोटाला में केजरीवाल समेत उनके कयी मंत्रियों को जेल पर जाना पडा और आज भी वो सभी जमानत पर बाहर हैं।सरकार में रहते जेल जाने वाले केजरीवाल पहले मुख्यमंत्री बने। चुनाव के कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के कडे़ निर्देशों को लेकर केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जनता की अदालत में जाकर न्याय लेने की बात कही और जनता ने अपना निर्णय दे नकार दिया।
आप सुप्रिमो अरविंद केजरीवाल जहाँ दिल्ली की जनता को केजरीवाल की कवच बांट रहे थे, वहीं अब खुद कवच से दूर हो गये। अब ना उनके लिए राजकीय कोष से बडे़ बडे़ वकील कोर्ट में खड़े रहेंगे और ना ही वैसी सुविधाएं उपलब्ध रहेगी। अभी फिलहाल केजरीवाल के लिए अपनी पार्टी को टूट से बचाने और आगे की रणनीति तय करने की होगी और फिर उनपर लगे आरोपों पर।
आवकारी घोटाला, शीशमहल और जलबोर्ड मामले की जांच जारी है ही। यमुना में जहर और विधायकों की 15 करोड़ में खरीद फरोख्त जैसे ताजा आरोपों की भी जांच चल ही रही है। इसके अलावे मुख्यमंत्री, या उनके साथियों के मंत्री रहते कार्यों की जांच भी संभव दिख रही है, क्योंकि इसका संकेत कल प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा कार्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए दिया था।
अरविंद केजरीवाल की असली परीक्षा अब शुरू होगी। दिल्ली की जनता को केजरीवाल कवच बांट रहे केजरीवाल अपने लिए कैसे कवच ढूढ़ पाते हैं। वैसे, राज्यसभा में जाने की चर्चा भी हो रही है।
पर पार्टी को टूट से बचाकर पार्टी को दिशा देने और अपने उपर लगे आरोपों से निपटने की बहुत बड़ी चुनौतियां सामने होगी