संजय कुमार विनीत : पंजाब में शंभू बार्डर और खनौरी बार्डर पर एक साल से डटे आंदोलनकारी किसानों को एक रणनीति के तहत बुलडोजर कारवाई कर हटाने को लेकर अब जहाँ किसान संगठन आक्रोशित हो आंदोलनरत बने हुए हैं, वही अब राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गयी है। अब सवाल उठने लगे हैं कि दिल्लीवालों के कष्ट के वक्त में यही आंदोलनकारी किसानों को हर सुविधा प्रदान कर रहें थे और आज महज एक राजनीतिक स्वार्थ के चलते आंदोलन को बुलडोजर से ध्वस्त क्यों कर दिया।
किसानों के साथ हर वक्त खड़े होने का दावा करने वाले आप पार्टी के दावे सिर्फ दिल्ली में किसानों के आंदोलन के वक्त था। इंटरनेट, बिजली, साफ पानी, दैनिक जरूरतों के तमाम सुविधाएं उपलब्ध करवाकर आंदोलनकारी किसानों के साथ आंसू बहाते खड़े होने वाले आप पार्टी को आखिरकार किसानों के ऐसी ही आंदोलन पर बेरहमी से बुलडोजर कारवाई करनी पडी। आंसू बहाते साथ खड़े होने वाले आखिरकार महिलाओं,वुजुर्गो तक पर लाठियां बरसाते बुलडोजर कारवाई तक पर उतर जाये तो,अब ये सवाल उठने शुरू होना स्वाभाविक ही है कि किस राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए ये कदम उठाने की जरूरत आन पड़ी।
यही अन्नदाता जब दिल्ली के सिंधु बार्डर सहित अन्य बार्डर पर आंदोलनरत थे, 9 महीने आंदोलन के दरम्यान तो कम से कम कोई लाठियां नहीं चली। जब आंदोलनकारी किसान अराजकता का शिकार हो दिल्ली में उपद्रव मचाया तब भी दिल्ली पुलिस ने बहुत बड़ा सहनशीलता का परिचय दिया था। केंद्र सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया कि अन्नदाता नाराज हो। कुछ किसानों के मृत्यु के आंकड़े लिए भले ही कुछ राजनीतिक दलों के नेता घूम रहे हैं, वो सिर्फ वैचारिक ही हो सकते हैं,क्योंकि ये अधिकारिक नहीं है। तो सबसे पहले आंखों में आंसू लेकर खड़े होने वाले जब बुलडोजर कारवाई कर बेरहमी से कुचले तो कुछ ना कुछ इसके पीछे बातें तो जरूर होगी।
राजनीतिक गलियारे में इस बात कि चर्चा है कि लुधियाना पश्चिमी विधानसभा उपचुनाव को लेकर यह सारी कारवाई की गयी है।अरविंद केजरीवाल का पंजाब दौरा, लुधियाना के उद्योगपतियों की ओर से आप के शीर्ष नेतृत्व को दिया गया फीडबैक और आने वाला अहम लुधियाना उपचुनाव- ऐसा लगता है कि भागवंत मान सरकार की ओर से पंजाब में एक साल से भी ज्यादा समय से चले आ रहे किसानों के धरना स्थलों को खाली कराने के लिए की गई कड़ी कार्रवाई के पीछे यही सब कारण रहे हैं।
अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर विपश्यना असर तो दिखाई पड़ रहा है, लेकिन लेकिन दिल्ली की हार का दर्द खत्म हुआ नहीं लग रहा है। अपने लिए भी एक संवैधानिक पद पाना पार्टी में अपनी नेतृत्व को सर्वमान्य बनाने के लिए जरूरी सा दिखता है। इसके लिए केजरीवाल राज्यसभा में जाने की जुगत में हैं। इसके लिए आप ने उपचुनाव में अपने राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को उम्मीदवार बनाया है।बीजेपी और कांग्रेस का आरोप है कि आप संजीव अरोड़ा को विधानसभा चुनाव लड़ाकर अरविंद केजरीवाल को राज्यसभा भेजने का इंतजाम कर रही है। हलांकि लुधियाना पश्चिमी की विधानसभा सीट जीतना आप के लिए इतना आसान नहीं है।
लुधियाना के हालिया चुनाव नतीजों को देखें तो आम आदमी पार्टी के लिए आने वाला उपचुनाव काफी मुश्किल होने वाला है – और सबसे बड़ी वजह यही है कि अरविंद केजरीवाल बहुत पहले ही पंजाब में डेरा डाल दिये हैं। लुधियाना पश्चिम विधानसभा सीट आप विधायक रहे गुरप्रीत गोगी की मौत हो जाने के कारण ही खाली हुई है। और उपचुनाव होना है, पर तिथि की घोषणा अबतक नहीं हुई है।
केजरीवाल के लिए लुधियाना उपचुनाव का महत्व इसलिए है कि लुधियाना उपचुनाव की जीत अरविंद केजरीवाल के लिए दिल्ली की हार पर मरहम की तरह होगा। लेकिन अगर संजीव अरोड़ा चुनाव हार गये तो सारा खेल बिगड़ जाएगा। केजरीवाल के राजनीतिक विरोधियों का आरोप है कि संजीव अरोड़ा को पंजाब सरकार में मंत्री बनाने का वादा किया गया है, और इसी बात पर वो राज्यसभा की सीट छोड़ने पर राजी हुए हैं।और अगर लुधियाना में आप की हार हुई तो केजरीवाल का ये प्लान भी फेल हो जाएगा, और राज्यसभा जाने का सपना कुछ समय के लिए धरा रह जायेगा।
लुधियाना में आप के हालिया चुनावी प्रदर्शनों की बात करें तो आगे की राह काफी मुश्किल लगती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में आप उम्मीदवार अशोक पराशर तीसरे पायदान पर पहुंच पाये थे। लुधियाना की 9 विधानसभा सीटों में से किसी पर भी आप नंबर 1 की पोजीशन पर नहीं देखी गई थी। लुधियाना पश्चिमी सहित 5 शहरी विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी आगे रही थी, जबकि कांग्रेस चार इलाकों मे। दिसंबर, 2024 में हुए लुधियाना नगर निगम चुनाव में भी आप को 95 में से 41 सीटों पर ही जीत मिली थी, और बहुमत से 7 नंबर पीछे रहना पड़ा था। मुश्किल ये रही कि दो आप विधायकों की पत्नियों को भी हार का मुंह देखना पड़ा था। 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में आप ने 117 में 92 सीटें जीत बहुत ही अच्छा प्रदर्शन की थी। लेकिन उसके बाद हुए संगरूर लोकसभा उपचुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था। ध्यान देने वाली बात ये है कि वो सीट पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के इस्तीफे से खाली हुई थी। दिसंबर, 2024 में भी आप को बरनाला विधानसभा उपचुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था।
लोकसभा और नगर निगम चुनावों में मिली शिकस्त के बाद आप को मालूम है कि लुधियाना पश्चिमी में बुद्धिजीवी वोटर हैं, बड़े कारोबारियों से लेकर डॉक्टर और बड़े बड़े विद्वान तक हैं। यहां के लोग मूर्ख नहीं हैं कि केजरीवाल की एक और नौटंगी चल जाएगी। यही वजह है कि केजरीवाल अभी से इस सीट पर जीत के लिए लगे हुए है। बताया जाता है कि लुधियाना के उद्योगपतियों, व्यवसायियों ने आप नेतृत्व को बताया कि किसानों के प्रदर्शन की वजह से व्यापार को भारी नुकसान हो रहा है। पंजाब के दोनों बॉर्डर पर एक साल से भी ज्यादा समय से किसान धरने पर बैठे हैं। इससे व्यापार और ट्रकों की आवाजाही प्रभावित हो रही है। और अगर ऐसा ही रहा तो हम सभी आप पार्टी को वोट नहीं देंगे। बस इसलिए बुलडोजर कारवाई कर किसानों के हटाये जाने की बात सामने आ रही है।
चुंकि, अब आप पार्टी को भी पता चल गया है कि और ज्यादा दिनों तक किसानों का यूस करना संभव नहीं। ये किसान आंदोलन पंजाब के ही आर्थिक स्थिति को खराब करेंगे और लोगों में नाराजगी से वोट बैंक घिसकने का अलग डर था। एक समय में दिल्ली बार्डर पर दिल्ली की प्रतिदिन 500 करोड़ की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने पर इस आंदोलन को अधिकार बताने वाले किसानों पर पुलिस के एक्शन को सही करार देते हुए कहा है कि हाईवे बंद करने से पंजाब को भारी नुकसान हुआ। व्यापार और रोजगार के लिए हाईवे का खुला रहना जरूरी है। खैर, एक आंदोलन से जन्म लिए पार्टी को देर से ही सही समझ तो आयी।
फिलहाल तो पंजाब सरकार ने बुधवार देर शाम शंभू और खनौरी बॉर्डर से प्रदर्शनकारी किसानों को जबरन हटा दिया, जिसके बाद सड़क को दोबारा खोलने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण प्रगति करते हुये एकतरफा सड़क पर लगे सीमेंट ब्लॉक और भारी कंक्रीट को पूरी तरह से हटा दिया गया है, जिससे मार्ग लगभग साफ हो चुका है। प्रशासन ने पंजाब से हरियाणा की तरफ आने वाली एक तरफ की रोड आम लोगों के लिए खोल दी है। और हिरासत में लिए गये अन्नदाता किसान अनशन पर बैठ गयें हैं। इस कारवाई का चौतरफा आलोचना हो रही है। अब आगे क्या होता है, किसानों की क्या रणनीति होती है, यह तो वक्त ही बतायेगा।