अंजान जी : जब राजा रघुवंशी और उनकी पत्नी सोनम बाइक पर घूमने निकले, तब शायद किसी ने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि यह यात्रा एक भयावह अंत की शुरुआत थी। मोबाइल पर सोनम की संदिग्ध चैट, राजा का अचानक लापता होना, और फिर 2 जून को उनके शव का मिलना – ये सभी घटनाक्रम एक ऐसे अपराध की ओर इशारा करते हैं जिसने न केवल एक व्यक्ति की जान ली, बल्कि रिश्तों की पवित्रता और समाज के ताने-बाने को भी तार-तार कर दिया। पुलिस द्वारा गाजीपुर के एक ढाबे से सोनम की गिरफ्तारी और यह आशंका कि उसने ही अपने पति की हत्या की सुपारी दी थी, इस त्रासदी को और भी हृदयविदारक बना देती है। सोनम का हनीमून पर जाना और लापता होने का ढोंग करना, यह दर्शाता है कि यह एक सोची-समझी साजिश थी, जिसमें भावनात्मक संवेदनशीलता का नामोनिशान नहीं था।
यह घटना ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे उन अभियानों के ठीक विपरीत है, जहां पति की हत्या के बाद पत्नी के उजड़े सुहाग का बदला लेने और उसे न्याय दिलाने का संकल्प लिया जाता है। सोनम के इस कृत्य ने तो ‘पत्नीव्रता’ या ‘जीवनसंगिनी’ जैसी अवधारणाओं पर ही एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है। क्या विवाह जैसे पवित्र बंधन का अर्थ अब केवल सुविधा और स्वार्थ तक सिमट कर रह गया है? यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर कैसे एक रिश्ता इतनी कड़वाहट और क्रूरता का रूप ले सकता है, जहां जीवनसाथी ही अपने साथी की जान का दुश्मन बन जाए। यह सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज के भीतर पनप रही नैतिक और भावनात्मक गिरावट का एक दर्पण है।
इस मामले के कई आयाम हैं जो गंभीर विश्लेषण की मांग करते हैं। पहला और सबसे महत्वपूर्ण पहलू रिश्तों का पतन है। विवाह, जो दो व्यक्तियों और दो परिवारों का मिलन होता है, विश्वास, प्रेम और समर्पण की नींव पर टिका होता है। जब इस नींव में ही दरार आ जाती है, तो ऐसे जघन्य अपराध सामने आते हैं। सोनम के मामले में, यदि आरोप सही साबित होते हैं, तो यह दर्शाता है कि रिश्ते में इतनी कड़वाहट आ चुकी थी कि तलाक या अलगाव जैसे विकल्पों के बजाय, हत्या जैसा चरम कदम उठाया गया। यह हमें आत्मनिरीक्षण के लिए मजबूर करता है कि आखिर हमारे समाज में रिश्तों की यह दुर्दशा क्यों हो रही है? क्या संचार की कमी है? क्या अपेक्षाएं इतनी बढ़ गई हैं कि पूरी न होने पर हिंसक प्रतिक्रियाएं जन्म लेती हैं?
दूसरा पहलू, बढ़ती आपराधिक मानसिकता और नैतिक मूल्यों का क्षरण है। जिस तरह से यह अपराध कथित तौर पर योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया, और उसके बाद पुलिस से बचने के लिए लापता होने का नाटक किया गया, वह दिखाता है कि अपराधियों में कानून का भय और नैतिक संवेदनशीलता का अभाव है। ‘हनीमून’ पर जाने का ढोंग करना, जबकि पति की हत्या की जा चुकी हो, यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। यह दर्शाता है कि व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है, और उसके मन में पछतावा या आत्मग्लानि का कोई भाव नहीं होता। ऐसे मामले समाज में असुरक्षा की भावना पैदा करते हैं और विश्वास को कमजोर करते हैं।
तीसरा महत्वपूर्ण पहलू, माता-पिता की भूमिका और बच्चों से संवाद की आवश्यकता है। यह घटना उन माता-पिता के लिए एक गंभीर चेतावनी है जो अपने बच्चों के वैवाहिक जीवन के निर्णयों में पूरी तरह से शामिल नहीं हो पाते या उन्हें पर्याप्त भावनात्मक समर्थन नहीं दे पाते। अक्सर, सामाजिक दबाव या परिवार की प्रतिष्ठा के कारण, बच्चे अपनी पसंद या नापसंद को खुलकर व्यक्त नहीं कर पाते। इस घटना से यह सीख मिलती है कि माता-पिता को शादी से पहले अपने बच्चों से, विशेषकर अपनी बेटियों से, खुलकर बात करनी चाहिए। उन्हें यह पूछने का साहस करना चाहिए कि क्या वे किसी और को पसंद करती हैं। यदि ऐसा है, तो उन्हें अपनी पसंद के अनुसार जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता देनी चाहिए, भले ही वह अंतर्जातीय या अंतरधार्मिक विवाह ही क्यों न हो। जैसा कि कहा गया है, “कुछ भी हो चलेगा, कम से कम जीवन तो रहेगा।” किसी और का घर तबाह करने या एक जघन्य अपराध करने से बेहतर है कि व्यक्ति अपनी मर्जी से और खुशी से अपना जीवन जिए। प्रेम विवाह या अपनी पसंद के विवाह को सामाजिक स्वीकार्यता मिलने से ऐसे दुखद परिणामों को रोका जा सकता है।
कानून प्रवर्तन और न्यायपालिका की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। पुलिस ने सोनम को गिरफ्तार करके त्वरित कार्रवाई की है, जो सराहनीय है। ऐसे मामलों में त्वरित जांच और न्याय सुनिश्चित करना आवश्यक है ताकि अपराधियों को यह संदेश मिले कि कानून अपना काम करेगा और उन्हें उनके कृत्य की सजा मिलेगी। न्याय में देरी, अपराधियों को प्रोत्साहित करती है और पीड़ितों के परिवार को मानसिक पीड़ा देती है।
यह मामला हमें समाज के बदलते स्वरूप पर भी विचार करने के लिए मजबूर करता है। आधुनिकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की आड़ में क्या हम नैतिक और सामाजिक मूल्यों को खोते जा रहे हैं? क्या रिश्तों में सहनशीलता और समायोजन की भावना कम हो रही है? सोशल मीडिया और डिजिटल संचार ने रिश्तों में पारदर्शिता को बढ़ाया है, लेकिन साथ ही बेवफाई और धोखे की संभावनाओं को भी जन्म दिया है। सोनम का मोबाइल पर चैट करना, और आशंका है कि वह सुपारी किलर्स को लोकेशन शेयर कर रही थी, यह आधुनिक तकनीक के दुरुपयोग का भी एक उदाहरण है।
अंततः, राजा रघुवंशी हत्याकांड सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज के नैतिक ताने-बाने पर एक गहरा घाव है। यह घटना हमें आत्मचिंतन के लिए मजबूर करती है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। हमें रिश्तों के महत्व को फिर से स्थापित करना होगा, नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देना होगा, और युवाओं को जिम्मेदारी और संवेदनशीलता सिखाने की आवश्यकता है। माता-पिता को अपने बच्चों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ना होगा और उन्हें सही निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। जब तक हम समाज के रूप में इन गंभीर सवालों का सामना नहीं करेंगे और उनके समाधान के लिए सामूहिक प्रयास नहीं करेंगे, तब तक ‘सोनम बेवफा ही नहीं कातिल निकली’ जैसी त्रासदियां दोहराई जाती रहेंगी, और रिश्तों पर से हमारा विश्वास डिगता रहेगा।
Santosh Srivastava “Anjaan Jee”
Editor in Chief & Publisher