उलेमाओं के फतवे को रोजेदार मुसलमानों द्वारा अवज्ञा के मायने

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पटना : बिहार के सीएम नीतीश कुमार के इफ्तार पार्टी में भारी संख्या में रोजेदार मुसलमानों की उपस्थिति से मुस्लिम समाज के बड़े-बड़े रहनुमा, उलेमाओं पर ही प्रश्न उठने की बात सामने आ रही है। प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद और इमारत ए शरिया ने वक्फ (संशोधन) विधेयक पर एनडीए के सहयोगी नीतीश कुमार, एन चंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान के रुख को देखते हुए बड़ा फैसला लिया था और इन नेताओं के इफ्तार, ईद मिलन और दूसरे कार्यक्रमों का बहिष्कार करने का फैसला लिया था। बाबजूद भारी संख्या में रोजेदार मुसलमानों की उपस्थिति से कयी प्रश्न उठने शुरू हो गये हैं।

दरअसल, कल शाम बिहार के सीएम नीतीश कुमार के आवास पर इफ्तार की दावत का आयोजन किया गया था, जिसका मकसद सद्भावना और भरोसा को बढ़ावा देना था। इफ्तार पार्टी में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान सहित बड़ी संख्या में रोजेदारों एवं गणमान्य व्यक्तियों ने शिरकत की। रोजा इफ्तार के पहले मित्तन घाट के सज्जादानशीं हजरत सैयद शाह शमीमउद्दीन अहमद मुनअमी ने रमजान एवं रोजे की महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला और सामूहिक दुआ की।

जबकि, प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद और इमारत ए शरिया ने वक्फ (संशोधन) विधेयक पर एनडीए के सहयोगी नीतीश कुमार, एन चंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान के रुख को देखते हुए बड़ा फैसला लिया था और इफ्तार, ईद मिलन और दूसरे कार्यक्रमों का बहिष्कार करने का फैसला किया था। उनका तर्क था कि यह विधेयक मुस्लिम-प्रबंधित संपत्तियों की अखंडता को ख़तरे में डालता है। एक तरफ वक्फ बिल को समर्थन और दूसरी तरफ इफ्तार की दावत, दोनों नहीं चलेंगे। इमारत-ए-शरिया की ओर से जारी पत्र में मुख्यमंत्री के बीजेपी के साथ गठबंधन की आलोचना की गई है और उन पर धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के अपने वादों से विश्वासघात करने का आरोप लगाया गया है।

इधर, केंद्र की मोदी सरकार वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 बिल लाने की तैयारी कर ली है।फरवरी 2025 में मोदी कैबिनेट ने संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) द्वारा प्रस्तावित 14 संशोधनों को मंजूरी भी दे दी है।ये संशोधन वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण, विवाद निपटान प्रक्रियाओं और वक्फ बोर्डों की संरचना से संबंधित हैं।बिहार में जेडीयू के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है। इस सरकार में बीजेपी, एलजेपी (आर)और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा भी हिस्सा है, और एनडीए के केंद्र सरकार में भी साथ होने के कारण वक्फ संशोधन विधेयक के समर्थन में हैं। जबकि, विपक्षी दलों ने विधेयक के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई है, और इसके विरोध में है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने भी इस विधेयक का विरोध किया है। इसी बहिष्कार वाले खेल से एक ओर तेजस्वी यादव खुश हो रहें हैं कि इससे उनके एमवाई (मुस्लिम यादव) समीकरण में मजबूती मिलेगी।दूसरी ओर एनडीए खासकर एनडीए के घटक दल मुस्लिमों के इस चक्रव्यूह में घिरा नजर आ रहा था। जदयू ने आरोप लगाया है कि यह बहिष्कार वाली पत्र आरजेडी ने कुछ लोगों को बैठाकर लिखवाई और शेयर किया। जदयू के राज्यसभा सांसद और जदयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा ने तो इबादत में राजनीति ना करने की सलाह तक आरजेडी को दे दी।

तेजस्वी यादव जहां पिता लालू यादव के परंपरागत वोट बैंक एमवाई के अलावा नीतीश कुमार के परंपरागत वोट बैंक ईबीसी (अति पिछड़ी जातियों) में सेंधमारी कर नए सामाजिक समीकरण गढ़ने की फिराक में लगे रहते हैं, वहीं नीतीश कुमार अपने परंपरागत वोट बैंक ईबीसी के साथ एमवाई पर इनदिनों अपना जोरदार वर्चस्व बनाने में कामयाबी हासिल की है। वक्फ संशोधन बिल का समर्थन तो ताजा मामला है, नीतीश कुमार ने तीन तलाक और सीएए पर भी बीजेपी का समर्थन किया था। बाबजूद इसके दस सीटों पर विधानसभा उपचुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का साथ मिला था। और मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद आरजेडी को पीछे छोड़ जदयू ही बनी थी। प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज तीसरे नंबर पर रही थी।

2020 के विधानसभा चुनाव में भले ही आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आयी, पर इसके बाद के 10 विधानसभा उपचुनाव में आरजेडी को नौ सीटों पर हार का मुंह देखना पडा और अपने दो गढ़ को भी खोना पड़ा। अब बिहार में आरजेडी दूसरी नंबर की पार्टी बनकर रह गयी है। और उपचुनाव में अप्रत्याशित रूप से मुस्लिम वोट जदयू के खेमे में स्थानांतरित हुए। दरअसल आरजेडी से अब यादव मतदाताओं का भी झुकाव कमे हैं, क्योंकि यादवों के विकास के नाम पर सिर्फ पारिवारिक लोगों को आगे बढाने से नाराजगी बढी है।

बिहार में मुस्लिम मतदाताओं का हिस्सा 16 फीसदी के करीब है और हिन्दू मतदाताओं का हिस्सा 82 फीसदी है। बिहार में अति पिछड़ी जाति के मतदाताओं का हिस्सा 26 फीसदी के करीब है। इसमें लोहार, कहार, सुनार, कुम्हार, ततवा, बढ़ई, केवट, मलाह, धानुक, माली, नोनी आदि जातियां आती है। राज्य में दलितों का वोट परसेंट 16 फीसदी के करीब है. इनमें पांच फीसदी के करीब पासवान हैं बाकी महादलित जातियां (पासी, रविदास, धोबी, चमार, राजवंशी, मुसहर, डोम आदि) आती हैं, जिनका करीब 11 फीसदी वोट बैंक है। राज्य में 15 फीसदी वोट बैंक उच्च जातियों (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ) का है।

आइये,अब जान लेना कि फतवा आखिरकार होता क्या है?।”फतवा” शब्द अरबी मूल शब्द fty से आया है, जिसका अर्थ है “निर्णय लेना” या “राय देना”। “फतवा” एक धार्मिक निर्णय या राय है जो इस्लामी विद्वान या मुफ़्ती द्वारा जारी की जाती है। यह आमतौर पर इस्लामी कानून या सिद्धांत के बारे में किसी मुस्लिम द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में होता है और कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होता है। मौलानाओं के फतवे का अवज्ञा या पालन करना एक व्यक्तिगत निर्णय है जो व्यक्तिगत विश्वास, धार्मिक मान्यताओं और सामाजिक संदर्भ पर निर्भर करता है। कुछ लोग मानते हैं कि किसी भी व्यक्ति को धार्मिक मान्यताओं के आधार पर दूसरों के निर्देशों का पालन करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए, और वे मौलानाओं के फतवे का पालन न करने का अधिकार रखते हैं। दूसरी ओर, कुछ लोग मानते हैं कि मौलानाओं के फतवे समुदाय के लिए महत्वपूर्ण होते हैं और उनका पालन करना चाहिए, क्योंकि वे धार्मिक मूल्यों और सिद्धांतों को बनाए रखने में मदद करते हैं। शायद इसलिए कुछ रोजेदार मुसलमानों ने शिरकत की।

फिलहाल तो पाक रमजान का महीना है। राजनीतिक इफ्तार पार्टी का दौर देश के कोने कोने में आयोजित हो रहा है। बड़े बड़े राजनेता इसमें शामिल हो रहे हैं। इसपर राजनीति भी जमकर किया जा रहा है। नीतीश कुमार के इफ्तार पार्टी को लेकर भी राजनीति की ही बात सामने आ रही है। नीतीश कुमार के सेक्यूलर क्रिडेंशियल को टारगेट एक रणनीति के ही तहत किया जा रहा है। लेकिन बिहार के मुसलमान उनके बहकाबे में आते हैं या नहीं। अब मुस्लिम रहनुमा और मुस्लिम समाज इसपर बंटा दिख रहा है, इसलिए मुस्लिम मतदाताओं के मतो का जदयू को आगामी चुनाव में नुकसान उठाना पडेगा कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी। अभी चुनाव में वक्त है, काफी उठापटक होना बाकी है।

संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

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