आज के वैश्वीकरण के युग में, जब दुनिया एक-दूसरे से जुड़ी हुई है, आर्थिक आत्मनिर्भरता की बात करना कुछ लोगों को पुरानी सोच लग सकती है। लेकिन, जब एक देश दूसरे पर आर्थिक दबाव डालने का प्रयास करता है, तो स्वदेशी आंदोलन का महत्व एक बार फिर से उभरकर सामने आता है। हाल ही में, जब अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर आयात शुल्क को 50% तक बढ़ा दिया है, तो लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के संस्थापक-चांसलर डॉ. अशोक कुमार मित्तल का ‘स्वदेशी 2.0’ अभियान एक समय-संवेदनशील और रणनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है। यह केवल एक आर्थिक कदम नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गौरव, आत्मसम्मान और आर्थिक संप्रभुता (economic sovereignty) की दिशा में एक बड़ा बयान है।
अमेरिकी टैरिफ और भारतीय अर्थव्यवस्था पर उसका असर
अमेरिका का भारतीय उत्पादों पर 50% का आयात शुल्क लगाना निश्चित रूप से एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है। यह सीधे तौर पर उन भारतीय निर्यातकों को प्रभावित करेगा जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं। इससे उनके उत्पादों की कीमत बढ़ेगी, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाएगी। हालांकि, यह भी सच है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा, लगभग 60%, घरेलू खपत पर आधारित है। इसलिए, विशेषज्ञ मानते हैं कि इस टैरिफ का कुल जीडीपी पर असर सीमित होगा। लेकिन, इसका यह मतलब नहीं है कि हम इस चुनौती को अनदेखा कर दें। यह कदम भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता को और अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता को उजागर करता है।
‘स्वदेशी 2.0’ अभियान की प्रासंगिकता
डॉ. मित्तल का ‘स्वदेशी 2.0’ अभियान 1905 के मूल स्वदेशी आंदोलन से प्रेरणा लेता है, जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मजबूत आर्थिक और राजनीतिक हथियार का काम किया था। उस समय, भारतीयों ने ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार करके अपनी एकता और शक्ति का प्रदर्शन किया था। आज, ‘स्वदेशी 2.0’ हमें याद दिलाता है कि हम अपने देश की आर्थिक चुनौतियों का सामना खुद कर सकते हैं। यह अभियान सिर्फ अमेरिकी सामानों के बहिष्कार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक मानसिकता को बदलने का आह्वान है—एक ऐसी मानसिकता जो हमें अपने देश में बने उत्पादों, सेवाओं और प्रतिभाओं पर गर्व करना सिखाती है।
यह अभियान विशेष रूप से LPU जैसे शैक्षिक संस्थान से शुरू हुआ है, जहां 40,000 से अधिक छात्र हैं। यह दर्शाता है कि युवा पीढ़ी इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए तैयार है। जब छात्र और युवा भारत में बने उत्पादों को अपनाने का संकल्प लेते हैं, तो इसका सीधा असर भारतीय कंपनियों के विकास पर होता है। इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं, नवाचार को बढ़ावा मिलता है और अंततः, देश की आर्थिक वृद्धि में तेजी आती है।
आत्मनिर्भरता: एक दीर्घकालिक रणनीति
‘स्वदेशी 2.0’ केवल एक तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। एक ऐसी रणनीति जो हमें वैश्विक दबाव से मुक्त होकर अपनी शर्तों पर आगे बढ़ने की शक्ति देती है। जब हम स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करते हैं, तो हम न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश करते हैं, बल्कि हम देश के भीतर एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) और विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र (manufacturing ecosystem) का निर्माण भी करते हैं। यह हमें बाहरी झटकों के प्रति अधिक लचीला (resilient) बनाता है।
यह अभियान हमें यह भी सिखाता है कि आर्थिक ताकत केवल निर्यात पर निर्भर नहीं करती, बल्कि यह देश के अंदर मजबूत खपत और उत्पादन पर भी आधारित होती है। ‘स्वदेशी 2.0’ का लक्ष्य भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाना है, जो अपनी आत्मनिर्भरता के बल पर आगे बढ़े।
एक नए भारत का निर्माण
डॉ. अशोक कुमार मित्तल का ‘स्वदेशी 2.0’ अभियान अमेरिका के टैरिफ के खिलाफ सिर्फ एक प्रतीकात्मक विरोध नहीं है, बल्कि यह एक नए भारत के निर्माण का आह्वान है। यह हमें याद दिलाता है कि जब हम सब मिलकर अपने देश के उत्पादों और प्रतिभाओं को समर्थन देते हैं, तो हम एक मजबूत और आत्मनिर्भर राष्ट्र का निर्माण करते हैं। यह समय है कि हम सब इस अभियान का हिस्सा बनें और अपनी छोटी-छोटी कोशिशों से एक बड़ा बदलाव लाएं। स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करके हम न केवल अपनी अर्थव्यवस्था को सशक्त करेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उज्ज्वल और आत्मनिर्भर भविष्य की नींव भी रखेंगे।
क्या आपको लगता है कि इस तरह के अभियान भारत को आर्थिक रूप से और अधिक मजबूत बना सकते हैं? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें…..nationlivekhabar@gmail.com
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Anjaan Jee
Editor in Chief & Publisher