पंजाब में बाढ़: प्राकृतिक आपदा या मानवीय भूल?

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Anjaan Jee :
Editor in Chief & Publisher

पंजाब, जिसे ‘अन्नदाता भूमि’ कहा जाता है, आज बाढ़ की विभीषिका से लगातार जूझ रहा है। हर साल खेतों के जलमग्न होने, गांवों के डूबने और सड़कों के ढहने की खबरें आती हैं। यह सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं है, बल्कि यह हमारी अपनी भूलों का परिणाम है। प्रकृति कभी ‘रुष्ट’ नहीं होती, वह केवल अपने बनाए नियमों पर चलती है, और जब इंसान उन नियमों को तोड़ता है, तो बाढ़ और सूखे जैसी आपदाएं सामने आती हैं।

नदियों का बदलता स्वरूप और जलवायु परिवर्तन

पंजाब की पहचान उसकी पांच नदियों से है। ये नदियाँ हिमालय से निकलती हैं, और मानसून व बर्फ के पिघलने से इनका जलस्तर तेजी से बढ़ जाता है। बड़े बांध जैसे भाखड़ा और पोंग, जो बाढ़ नियंत्रण के लिए बनाए गए थे, कभी-कभी पानी अचानक छोड़ने से समस्या को और बढ़ा देते हैं। यह प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ खराब प्रबंधन को भी दर्शाता है। इसके अलावा, हाल के वर्षों में मानसून का पैटर्न बदला है। अब कम समय में ही भारी बारिश होती है, जिससे फ्लैश फ्लड की स्थिति पैदा हो रही है। जलवायु वैज्ञानिक इसका कारण ग्रीनहाउस गैसों और ग्लोबल वार्मिंग को मानते हैं, जिससे हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।

मानवीय हस्तक्षेप और असंतुलित विकास

बाढ़ को विनाशकारी बनाने में सबसे बड़ी भूमिका मानवीय हस्तक्षेप की है। नदियों के किनारों और उनके तल पर अंधाधुंध निर्माण हुआ है। रेत और बजरी के अवैध खनन से नदियों की गहराई और बहाव का मार्ग बदल गया है। ड्रेनेज और नहरों की समय पर सफाई न होने से बारिश का पानी निकलने की बजाय शहरों और गांवों में भर जाता है। धान जैसी फसलों की अत्यधिक खेती ने भी भूजल का अत्यधिक दोहन किया है, जिससे मिट्टी की जलधारण क्षमता कम हो गई है और जलभराव की समस्या बढ़ गई है। वनों की कटाई ने भी प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ दिया है।

समाधान की राह: संतुलन और विवेकपूर्ण नीतियां

पंजाब में बाढ़ का संकट केवल प्राकृतिक नहीं, बल्कि एक सामाजिक-आर्थिक संकट भी है। इससे हजारों एकड़ फसलें बर्बाद होती हैं, किसान कर्ज में डूबते हैं, और ग्रामीण आबादी बेघर होती है। इस समस्या का समाधान तभी हो सकता है, जब हम प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर चलें। नदियों के बाढ़ क्षेत्र में निर्माण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाना चाहिए, ड्रेनेज की नियमित सफाई होनी चाहिए और अवैध खनन पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए। धान की जगह कम पानी वाली फसलें जैसे मक्का, दाल और सब्जियों की खेती को बढ़ावा देना चाहिए। राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजना बनानी होगी। यदि हमने अभी भी सबक नहीं सीखा, तो आने वाले वर्षों में बाढ़ और भी भयावह हो सकती है। पंजाब में बाढ़ केवल एक आपदा नहीं है, बल्कि यह हमारी नीतियों, आदतों और प्राथमिकताओं की एक परीक्षा है।