विवाह संपन्न कराने के शालीन तरीके और अनुचित परंपराएं

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आचार्य संतोष : आजकल विवाह समारोहों में कई ऐसी आधुनिक परंपराएं जुड़ गई हैं जो न केवल अनावश्यक खर्च बढ़ाती हैं, बल्कि विवाह की मूल भावना और पवित्रता को भी कहीं न कहीं कम करती हैं। यहां कुछ ऐसे सुझाव दिए गए हैं जो विवाह को शालीन और मर्यादापूर्ण तरीके से संपन्न कराने में सहायक हो सकते हैं, और कुछ अनुचित परंपराओं से बचने का आह्वान करते हैं:

शालीन विवाह के तरीके:

  1. प्री-वेडिंग शूट से परहेज: विवाह एक गंभीर और पारिवारिक अवसर है। प्री-वेडिंग शूट, जो अक्सर पश्चिमी संस्कृति से प्रेरित होते हैं, कई बार दिखावटी और अनावश्यक लगते हैं। इनकी जगह परिवार के साथ बिताए गए सहज पलों की यादें अधिक मूल्यवान होती हैं।
  2. साड़ी को प्राथमिकता: दुल्हन का शादी में लहंगा पहनना आजकल एक आम चलन हो गया है, लेकिन भारतीय संस्कृति में साड़ी का अपना विशेष महत्व है। यह न केवल पारंपरिक परिधान है, बल्कि शालीनता और सुंदरता का प्रतीक भी है।
  3. शांतिपूर्ण संगीत: मैरिज लॉन में तेज और अश्लील संगीत की जगह हल्का इंस्ट्रूमेंटल संगीत बजाना अधिक उचित है। यह वातावरण को शांत और खुशनुमा बनाए रखेगा, जिससे मेहमान आपस में आसानी से बातचीत कर सकेंगे और शोरगुल से भी बचाव होगा।
  4. वरमाला में सादगी: वरमाला एक महत्वपूर्ण रस्म है जिसमें दूल्हा और दुल्हन एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं। इस समय मंच पर केवल उन्हीं का रहना उचित है, ताकि यह पल उनकी एकाग्रता और गरिमा बनाए रखे।
  5. वरमाला में मर्यादा: वरमाला के समय दूल्हे या दुल्हन को उठाकर उचकना एक अनावश्यक और कई बार असहज स्थिति पैदा करता है। इस प्रकार की हरकतें विवाह की गंभीरता को कम करती हैं और इनसे बचना चाहिए।
  6. पंडितजी का सम्मान: पंडितजी विवाह की धार्मिक प्रक्रिया को विधिपूर्वक संपन्न कराते हैं। जब वे मंत्रोच्चारण और रस्में कर रहे हों, तो उन्हें रोकना या टोकना अनुचित है। यदि कोई आवश्यक प्रश्न हो, तो प्रक्रिया समाप्त होने के बाद पूछा जा सकता है।
  7. फोटोग्राफी में गरिमा: कैमरामैन को फेरों और अन्य महत्वपूर्ण रस्मों के चित्र दूर से लेने चाहिए, न कि बार-बार पंडितजी को टोककर या दूल्हा-दुल्हन को असहज स्थिति में आने के लिए कहकर। यह देवताओं के आह्वान का पवित्र अवसर है, न कि किसी फिल्म की शूटिंग।
  8. अस्वाभाविक पोज से बचाव: दूल्हा और दुल्हन को कैमरामैन के कहने पर उल्टे-सीधे या अस्वाभाविक पोज बनाने से बचना चाहिए। स्वाभाविक और पारंपरिक तस्वीरें ही इस अवसर की सुंदरता को दर्शाती हैं।
  9. दिन में विवाह और समय पर विदाई: विवाह समारोह दिन में संपन्न होना चाहिए और शाम तक विदाई हो जानी चाहिए। इससे मेहमानों को देर रात तक जागने और असुविधा से बचाया जा सकेगा, खासकर बुजुर्गों और बच्चों को। देर रात भोजन करने से होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं भी टल जाएंगी।
  10. सार्वजनिक आलिंगन से परहेज: नवविवाहित जोड़े को सबके सामने आलिंगन के लिए कहना व्यक्तिगत पल का अनादर है। यह उनकी निजता का उल्लंघन है और असहज स्थिति पैदा कर सकता है।
  11. मांस-मदिरा का निषेध: विवाह समारोह एक पवित्र अवसर है जिसमें देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है। ऐसे में मांस और मदिरा का सेवन वर्जित होना चाहिए। यह न केवल धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध है, बल्कि वातावरण की पवित्रता को भी भंग करता है।

यह सच है कि शादी एक पवित्र बंधन है और इसे मर्यादाओं में ही रहना चाहिए। अपनी पुरानी परंपराएं ही अधिक सार्थक और शालीन थीं। हमें दिखावे और अनावश्यक आधुनिकता से बचना चाहिए और विवाह की मूल भावना को बनाए रखना चाहिए। यह समाज सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, जो सभी के लिए अनुकरणीय है।


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