महालया अमावस्या: पितृपक्ष की समाप्ति और नवरात्रि का आरंभ

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आचार्य संतोष :
ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ

हिंदू धर्म में महालया अमावस्या का विशेष महत्व है। इस दिन पितृपक्ष समाप्त होता है और शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है। इस साल महालया अमावस्या 21 सितंबर 2025 को पड़ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन माँ दुर्गा कैलाश पर्वत से धरती पर अपने परिवार के साथ आती हैं, इसलिए इसे दुर्गा पूजा की शुरुआत भी माना जाता है।

महालया अमावस्या का महत्व

  • पितरों को श्रद्धांजलि: यह दिन पितरों को श्रद्धांजलि देने के लिए बहुत खास माना जाता है। इस दिन श्राद्ध और तर्पण जैसे कर्मकांड किए जाते हैं ताकि पितरों की आत्मा को शांति मिले।
  • बंगाल में उत्सव: बंगाल में इस दिन से ही दुर्गा पूजा की तैयारियों का माहौल शुरू हो जाता है। घरों को सजाया जाता है और परिवार के लोग एक साथ मिलकर इस आध्यात्मिक वातावरण का अनुभव करते हैं।
  • पुण्य की प्राप्ति: मान्यता है कि इस दिन गरीबों को भोजन कराने और दान देने से पुण्य मिलता है। रात में दीपदान करना भी शुभ माना जाता है।

तिथि और शुभ मुहूर्त

  • तिथि: महालया अमावस्या की तिथि 21 सितंबर 2025 को सुबह 12:18 बजे से शुरू होकर 22 सितंबर 2025 को सुबह 1:25 बजे तक रहेगी।
  • कुतुप मुहूर्त: सुबह 11:52 बजे से दोपहर 12:40 बजे तक।
  • रौहिण मुहूर्त: दोपहर 12:40 बजे से दोपहर 1:29 बजे तक।
  • अपराह्न काल: दोपहर 1:29 बजे से दोपहर 3:55 बजे तक।

पूजा विधि और पितरों को विदा करने का तरीका

  • क्षमा याचना: इस दिन पितरों से हुई किसी भी भूल-चूक के लिए क्षमा मांगी जाती है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है।
  • श्राद्ध कर्म: इस दिन परिवार के सदस्य अपने दिवंगत पूर्वजों का सम्मान करने के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं। ब्राह्मण को घर बुलाकर आदर-सत्कार किया जाता है और उन्हें विशेष भोजन और दान दिया जाता है।
  • तर्पण: पितरों की आत्मा की शांति के लिए किसी नदी या जलाशय के किनारे जाकर तिल और जौ वाले जल को दक्षिण दिशा में अर्पित किया जाता है।
  • भोजन का अर्पण: केले के पत्ते पर गाय, देवी-देवता, कौए, कुत्ते और चींटियों के लिए भी पंचभोग रखा जाता है।
  • दीपदान: रात में नदी या तालाब के किनारे दीपक जलाया जाता है, और घर में भी पानी के पास या पीपल के पेड़ के पास तेल का दीपक रखा जाता है।