Anjaan Jee :
Editor in Chief & Publisher
माँ जगदंबा के आगमन पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ!
जीवन की इस आपाधापी में, जब चारों ओर आलोचना और नकारात्मकता का शोर है, आत्म-निर्माण का पथ एक शांत और सुखद यात्रा के समान है। यह यात्रा हमें सिखाती है कि दूसरों पर उंगली उठाने या उनकी आलोचना करने के बजाय, हमें अपनी ऊर्जा को स्वयं को बेहतर बनाने में लगाना चाहिए। यह स्वीकार करना अत्यंत आवश्यक है कि हम अपने जीवन के शिल्पकार स्वयं हैं। दूसरों की आलोचना करने में व्यर्थ की गई शक्ति, हमें अपनी कमियों को देखने और उन्हें दूर करने से रोकती है।
यह एक अकाट्य सत्य है कि विपत्तियां हमें तोड़ने के लिए नहीं, बल्कि हमें और अधिक मजबूत बनाने के लिए आती हैं। जब जीवन में कठिनाइयां आएं, तो धैर्य और समझदारी से काम लेना ही सबसे उत्तम मार्ग है। हमें यह समझना चाहिए कि हर समस्या में एक अवसर छिपा होता है। यदि हम शांत मन से उसका सामना करें और अपनी गलतियों से सीखें, तो हम पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली होकर उभर सकते हैं।
आत्म-सुधार एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। संसार की बातें और नकारात्मकता अक्सर हमें हमारे मार्ग से भटकाने का प्रयास करती हैं। ऐसे में, हमें कभी-कभी इन बातों को नजरअंदाज करना भी सीखना चाहिए। जब हमारा ध्यान हमारे लक्ष्य पर केंद्रित होता है, तो बाहरी शोर हमें विचलित नहीं कर पाता। यह ठीक उसी तरह है जैसे एक माली अपने पौधों की देखभाल करते समय आसपास के व्यर्थ के खरपतवारों को हटा देता है, ताकि पौधा अच्छे से विकसित हो सके।
यह मानना कि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’, यानी सभी सुखी हों, हमारे आत्म-निर्माण का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। जब हम स्वयं को सकारात्मकता और शक्ति से भर लेते हैं, तो हम दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं। माँ जगदंबा, जो कि शक्ति, धैर्य और निर्माण की प्रतीक हैं, हम सभी को इस यात्रा में मार्गदर्शन और शक्ति प्रदान करें।
यह संपादकीय हमें याद दिलाता है कि आत्म-निर्माण एक व्यक्तिगत और गहन यात्रा है। यह हमें सिखाती है कि सच्ची शक्ति दूसरों को बदलने में नहीं, बल्कि स्वयं को बदलने में है।