“सुरक्षा का भरोसा: थानों से निकलकर जनता के बीच आनी चाहिए पुलिस”

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राँची, झारखण्ड – शिक्षक और युवा विचारक सह कवि अमित गुप्ता ने पुलिस और आम नागरिकों के बीच विश्वास की कमी पर गहरी चिंता व्यक्त की है, और पुलिस व्यवस्था में तत्काल सुधारों का आह्वान किया है। इन्होने कहा कि लाखों पुलिसकर्मी होने के बावजूद, अपराध होने के बाद ही उनकी सक्रियता दिखाई देती है, और पुलिस थानों तक ही सीमित होकर रह गई है।

यदि पुलिसकर्मी थानों में बैठकर केवल कागजी कार्रवाई करने के बजाय गांवों और कस्बों में लगातार दौरा करें, और नागरिकों के साथ संवाद करें, तो अपराधों को रोका जा सकता है और जनता के मन से पुलिस का डर भी कम किया जा सकता है। एक आम नागरिक आज भी थाने जाने से डरता है, क्योंकि उसके मन में यह धारणा है कि न्याय पाने के लिए उसे एक कठिन संघर्ष करना पड़ेगा। यह मानसिकता बदलने की जरूरत है और पुलिस का चेहरा दंडात्मक नहीं, बल्कि सहायक और सहयोगी होना चाहिए।

हाल ही में पहलगाम में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना का जिक्र करते हुए, यह सवाल उठाया कि भीड़भाड़ वाले, पर्यटन स्थलों और विविध सांस्कृतिक क्षेत्रों में पर्याप्त और सतर्क पुलिस बल क्यों नहीं था। यह समस्या किसी एक सरकार की नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक परंपरा का परिणाम है, और अब इस व्यवस्था में बदलाव जरूरी है।

अमित गुप्ता ने सरकार से कई ठोस कदम उठाने का आग्रह किया है, जिनमें शामिल हैं:

  • हर थाना क्षेत्र में नियमित जनसंपर्क कार्यक्रम अनिवार्य हों।
  • भीड़भाड़ वाले इलाकों में पुलिस की स्थायी और सघन तैनाती सुनिश्चित हो।
  • पुलिसकर्मियों को संवाद-कला, संवेदनशीलता और त्वरित कार्रवाई का विशेष प्रशिक्षण दिया जाए।
  • जनता में पुलिस के प्रति भरोसे का वातावरण बनाया जाए, न कि भय का।

“जिस समाज में पुलिस और जनता के बीच विश्वास की मजबूत पुल बनी होती है, वहाँ अपराधों की दीवारें स्वतः गिरने लगती हैं।” उन्होंने सरकार से इस दिशा में ठोस और दूरगामी कदम उठाने का आग्रह किया ताकि देश का हर नागरिक भयमुक्त और सुरक्षित वातावरण में अपने सपनों को पूरा कर सके।


Rajesh Mohan Sahay, Ranchi

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