बीजेपी की ‘सौगात-ए-मोदी’ और विपक्षी पार्टियों की रणनीति पर एक नज़र

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बीजेपी की एक सोची-समझी रणनीति के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईद के मौके पर मुस्लिम समुदाय के लिए “सौगात-ए-मोदी” पेश की, और इसके बाद से देशभर में राजनीतिक हलचलों का दौर शुरू हो गया है। मोदी समर्थक जहां इस कदम को एक मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं, वहीं विपक्षी पार्टियां भी इस पर चौंक उठी हैं। इस कदम से विपक्षी दलों को यह डर सता रहा है कि वे मुस्लिम वोट बैंक को खो सकते हैं, और इसके परिणामस्वरूप उनकी हिंदू वोटों में भी कटौती हो सकती है। बीजेपी ने इस रणनीति के माध्यम से विपक्षी पार्टियों को एक ऐसा मोर्चा दिखाया है, जो उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। बीजेपी की योजना यह स्पष्ट रूप से नज़र आ रही है कि वह मुस्लिम हितैषी पार्टी के रूप में अपने विरोधियों को सामने ला कर सनातनी हिंदू वोटों पर एकाधिकार जमाना चाहती है।

प्रधानमंत्री मोदी ने मुस्लिम समुदाय के लिए कई योजनाओं का आगाज़ किया है, जिनमें उड़ान योजना, शादी शगुन योजना, उस्ताद योजना, सीखो और कमाओ योजना, और ईदी योजना जैसी योजनाएं शामिल हैं। इसके अलावा, मोदी सरकार की कई योजनाओं का सबसे ज्यादा लाभ मुसलमानों को ही मिला है, जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, जनधन योजना, उज्जवला योजना, और मुद्रा योजना। इन योजनाओं के तहत मुसलमानों को जो लाभ मिला है, वह किसी से छिपा नहीं है।

मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक पर कानून बनाना भी मोदी सरकार का एक बड़ा कदम था। साथ ही, सऊदी अरब से हज का कोटा बढ़वाने और उस पर जीएसटी घटवाने के प्रयासों ने भी मोदी की सरकार को मुस्लिम समुदाय में स्वीकार्यता दिलाई। मोदी का शासन मॉडल धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करता, और यही उनकी पहचान भी बन गई है। राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम मतदाताओं में बढ़ती हुई स्वीकार्यता इसका प्रमाण है।

बीजेपी यह जानती है कि मुस्लिम समाज में अभी भी उसके प्रति संकोच है, लेकिन पसमांदा समाज का धीरे-धीरे बीजेपी की ओर झुकाव दिख रहा है। सौगात-ए-मोदी जैसे कदम के माध्यम से बीजेपी अपने परंपरागत वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहती, बल्कि वह उन पार्टियों को सामने लाना चाहती है जो सिर्फ मुस्लिम हितों की बात करती हैं, ताकि हिंदू मतों को अपनी ओर आकर्षित किया जा सके।

बीजेपी की रणनीति विपक्षी दलों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रही है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में बीजेपी ने विपक्ष को ऐसी स्थिति में डाल दिया है, जहां उन्हें सनातनी होने का प्रमाणपत्र दिखाना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) के राणा सांगा के विरोध में राजपूतों की नाराजगी और संभल में सपा की विवादित टिप्पणियों ने उसे सनातनी विरोधी पार्टी के रूप में स्थापित किया है। इसी प्रकार, महाराष्ट्र में औरंगजेब मुद्दे ने शिवसेना और एनसीपी को बीजेपी के खिलाफ खड़ा किया है।

बिहार में, जहां मुस्लिम मतदाता महत्वपूर्ण संख्या में हैं, बीजेपी की रणनीति विपक्षी दलों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर आरजेडी और अन्य मुस्लिम संगठनों का विरोध बीजेपी के लिए एक नई चुनौती पेश करता है। हालांकि, बीजेपी का लक्ष्य अपने परंपरागत वोट बैंक को मजबूत करना और विपक्षी दलों को मुस्लिम वोट बैंक के ठेकेदार के रूप में सामने लाना है।

आखिरकार, बीजेपी के फेंके गए गेंद पर विपक्षी दलों की प्रतिक्रियाएं निश्चित ही चुनावी रणनीतियों में एक नया मोड़ ला सकती हैं। बीजेपी की यह रणनीति साफ तौर पर विपक्षी दलों को उनके ही जाल में फंसा रही है, और इस खेल को जीतने की पूरी तैयारी बीजेपी ने कर ली है। अब देखना यह होगा कि विपक्षी दल इस स्थिति में कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और क्या वे मोदी सरकार की इस रणनीति को मात दे सकते हैं।

संजय कुमार विनीत
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

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