संजय कुमार विनीत : प्रयागराज में सनातनियों का एक महाकुंभ जब समापन की ओर था। उसी समय मध्यप्रदेश के बुदेंलखंड में भी एक महाकुंभ बागेश्वर धाम के बाबा बागेश्वर द्वारा आयोजित किया गया था। प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी है तो यहाँ शासन, सत्ता और संत की त्रिवेणी की मौजूदगी थी। खुद को हिंदू राष्ट्र योद्धा कहने वाले बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के इस सामाजिक आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू भी शामिल हुए। समय समय पर ऐसे कई संत हुए जिनके हिन्दू और हिन्दुत्व के लिए किये गए अविस्मरणीय कार्यों के कारण सम्मान दिया जाता है। बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री भी अब उसी श्रेणी में खड़े दिखाई दे रहे हैं।
बागेश्वर बाबा ने हिंदू राष्ट्र और घर वापसी विषय को लेकर अपना समर्थन जताया है। गरीबी में जीये, पले -बढे बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री एक कैंसर अस्पताल की शिलान्यास के साथ साथ 251 गरीब कन्याओं को एक पिता बनकर भव्य समारोह में विवाह करवाकर अश्रुभिनि आंखों से विदाई करते देखे गये। रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बागेश्वर धाम में कैंसर मेडिकल और साइंस रिसर्च इंस्टीट्यूट की नींव रखी, वहीं महाशिवरात्रि के अवसर पर महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू अविभावक बनकर 251 वंचित कन्याओं की विवाह सम्पन्न करवा कर वर -वधू को आशिर्वाद और शगुन दिये। इन आयोजनों के लिए बाबा बागेश्वर चढावे वाले खजानों को जैसे खोलकर रख दिया, ऐसा प्रतीत होता है।
आइये सबसे पहले सनातन धर्म को समझते हैं। ‘सनातन’ का शाब्दिक अर्थ है – शाश्वत या ‘सदा बना रहने वाला’, यानी जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म जिसे हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है। इसे दुनिया के सबसे प्राचीनतम धर्म के रूप में भी जाना जाता है। भारत की सिंधु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। यह धर्म, ज्ञात रूप से लगभग 12000 वर्ष पुराना है जबकि कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म 90 हजार वर्ष पुराना है।
गीता में भी सनातन धर्म का वर्णन मिलता है। गीता में श्री कृष्ण कहते हैं-
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च |
नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातन: ||
अर्थात- हे अर्जुन! जो छेदा नहीं जाता। जलाया नहीं जाता। जो सूखता नहीं। जो गीला नहीं होता। जो स्थान नहीं बदलता। ऐसे रहस्यमय व सात्विक गुण तो केवल परमात्मा में ही होते हैं। जो सत्ता इन दैवीय गुणों से परिपूर्ण हो। वही सनातन कहलाने के योग्य है। इस श्लोक के माध्यम से भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो न तो कभी नया रहा। न ही कभी पुराना होगा। न ही इसकी शुरुआत है। न ही इसका अंत है। अर्थात ईश्वर को ही सनातन कहा गया है।
अब हमलोग सनातनी को हिंदू क्यों कहा जाता है,ये समझने की कोशिश करें। असल में हिंदू नाम विदेशियों द्वारा दिया गया है। इसके भी मजेदार किस्से हैं। जब मध्य काल में तुर्क और ईरानी भारत आए तो सबसे पहले उन्होंने सिंधु घाटी से प्रवेश किया। सिंधु एक संस्कृत नाम है। उनकी भाषा में ‘स’ शब्द न होने के कारण वह सिंधू कहने में असमर्थ थे। इसलिए उन्होंने सिंधू शब्द के उच्चारण के स्थान पर हिंदू कहना शुरू किया। इस तरह से सिंधु का नाम हिंदू हो गया। उन्होंने यहां के निवासियों को हिंदू कहना शुरू किया और इसी तरह हिंदुओं के देश को हिंदुस्तान का नाम मिला।
सनातन धर्म में कई प्रसिद्ध संत हुए हैं, जिनमें से रविदास, संत नामदेव, संत कबीर, गुरु नानक देव, संत सूरदास, मीराबाई, संत तुलसीदास, संत तुकाराम, संत सनातन गोस्वामी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। संतों की परंपरा गैर-संप्रदायवादी रही है। हालांकि, कई संत कवियों ने अपने संप्रदाय स्थापित किए। उनके शिष्यों ने आगे चलकर कबीर पंथ, दादू पंथ, दरिया पंथ, अद्वैत मत, आध्यात्मिकता का विज्ञान, और राधास्वामी जैसे पंथ भी चलाए। समाज में इनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए इन्हें कभी भूला नहीं जा सकता है।
भारतीय परंपरा में संतों ने सदियों अपने कर्म और वाणी से जन मानस को राह दिखाई है। सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाई है। अंधविश्वास के बारे में लोगों को जागरूक किया है।छतरपुर के बुंदेलखंड में स्थित बागेश्वर धाम पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के नेतृत्व में एक विशाल धार्मिक केंद्र बन गया है, जहां लाखों श्रद्धालु आते हैं। शास्त्री मन की बात जानने और बिना बताए समस्याओं का समाधान करने जैसी क्षमताओं का दावा करते हैं। शुरुआत में तो धीरेंद्र शास्त्री के ध्यान प्रवचन, हनुमान भक्ति और व्यक्तिगत समस्याओं पर केंद्रित थे, लेकिन पिछले दो वर्षों में उन्हें कट्टर हिंदुत्व का रुख अपनाते देखा गया। खुद को हिंदू राष्ट्र योद्धा बताते रहे है। उन्होंने भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने, धर्मांतरण के खिलाफ हिंदुओं को एकजुट होने का आह्वान किया है।
बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री (बागेश्वर धाम प्रमुख) एक बड़े धार्मिक और राजनीतिक चेहरे के रूप में उभरे हैं। उनका प्रभाव मध्य प्रदेश से प्रारंभ होकर पुरे देश और देश के बाहर भी फैला हुआ है। रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बागेश्वर धाम में कैंसर मेडिकल और साइंस रिसर्च इंस्टीट्यूट की नींव रखी। और महाशिवरात्रि के कार्यक्रम में महामहिम राष्ट्रपति का धाम पर आना। यह धीरेंद्र शास्त्री के बढ़ते प्रभाव का प्रमाण है। पीएम मोदी ने बागेश्वर बाबा को अपना छोटा भाई भी कहा। देश के सभी धार्मिक कार्यों में इनकी उपस्थिति और संतों का आदर सम्मान देने में कभी पीछे नहीं दिखे। इस कारण संतों के बीच भी इनकी एक अलग पहचान बनी है।
ऐसा नहीं है कि बाबा बागेश्वर धाम में पहले काफी चढावा आता था। ये भी बाबा धीरेंद्र शास्त्री के परिश्रम का ही परिणाम है कि अब धाम में भक्तों की अपार जनसमूह उमरती है। शास्त्री जी भी खूब जगह जगह जाकर प्रवचन करते हैं। हाँ, इससे जरूर धाम को मिलने वाला चढावा बढ़ा है। पर उससे भी बड़ी बात है कि दान पेटी के चढावा को समाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लगाया जाना। गरीबों के लिए बन रहे कैंसर अस्पताल में 200 करोड़ रूपये खर्च होने का अनुमान है। इस अस्पताल का देखरेख भी दान और प्रवचन से आने वाले पैसे से किया जाना है।
धीरेंद्र शास्त्री ने गरीब और वंचित बेटियों के विवाह का समारोह किया ये अनुकरणीय है। सामूहिक विवाह समारोहों से भावी पीढ़ियों को अच्छे संस्कारों की सीख मिलती है। बागेश्वर धाम में एक अलग नजारा देखने को मिला। जब एक साथ 251 घोड़ों पर दूल्हों की सवारी निकाली गई और फिर वह शहनाई की आवाज पर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। जहां उन्होंने जयमाला की रश्म निभाई। बाबा बागेश्वर ने अपनी बेटियों की शादी में उन्हें गृहस्थी का ढाई लाख के करीब सौ से ज्यादा उपहार दिए। इस सामूहिक विवाह में 108 आदिवासी कन्याओं की भी शादी हुई।आयोजन के लिए 20 लाख लोगों के भंडारे की व्यवस्था थी। मेन्यू में बूंदी, रायता, जलेबी, मालपुआ, पुलाव समेत 13 व्यंजन परोसे गये। इसके लिए 800 लोग पिछले छह दिन से खाना बनाने में जुटे थे। इसकी भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है।
गरीबी में जीये, पले -बढे धीरेंद्र शास्त्री गरीबी को अच्छे से समझते हैं। खुद को हिंदू राष्ट्र योद्धा बताते रहे है। भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने, धर्मांतरण के खिलाफ हिंदुओं को एकजुट होने का आह्वान भी करते रहे हैं। समाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अच्छी दिलचस्पी है। जाति से उपर उठकर एक होने के संदेश देते रहे हैं। और सबसे बड़ी बात वर्तमान स्थिति की वे अच्छी समझ रखते हैं। शासन, सत्ता और संत की त्रिवेणी पर पकड़ है। यही सब कारण है कि वे सच्चे संत के श्रेणी में खड़े दिखाई दे रहे हैं और हिंदुत्व के उगते हुए सितारे कहे जा सकते हैं।