नोबेल से वंचित ट्रंप पर भड़का व्हाइट हाउस

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Anjaan Jee : Editor in Chief & Publisher

नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा के बाद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एक बड़ा सपना टूट गया। ट्रंप वर्षों से खुद को शांति का दूत बताकर इस सम्मान की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन जब 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को दिया गया, तो व्हाइट हाउस ने इसे “राजनीतिक फैसला” करार दिया।

व्हाइट हाउस के संचार निदेशक स्टीवन चेउंग ने सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए लिखा, “नोबेल समिति ने यह साबित कर दिया है कि उनके लिए अब राजनीति, शांति से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है।” चेउंग ने यह बयान मचाडो को विजेता घोषित किए जाने के कुछ घंटों बाद दिया। उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप “शांति समझौते कराते रहेंगे, युद्धों को समाप्त करेंगे और लोगों की जान बचाते रहेंगे — क्योंकि उनका हृदय मानवीय है।”

गौरतलब है कि ट्रंप खुद को कई अंतरराष्ट्रीय संकटों का समाधानकर्ता बताने से नहीं चूकते। वे बार-बार दावा करते रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्षविराम में उनकी भूमिका रही, जबकि विशेषज्ञ इसे अतिशयोक्तिपूर्ण बताते हैं। ट्रंप ने यहां तक कहा था कि उन्होंने आठ युद्धों को समाप्त कराया, जिनमें से कुछ तो हुए ही नहीं।

नोबेल पुरस्कार की घोषणा के बाद हालांकि ट्रंप ने समिति पर सीधे तौर पर हमला नहीं किया, लेकिन उनके करीबी स्टीवन चेउंग का बयान व्हाइट हाउस की नाराजगी को साफ जाहिर करता है। इसी बीच ट्रंप ने सोशल मीडिया पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को धन्यवाद दिया। उन्होंने लिखा, “राष्ट्रपति पुतिन को धन्यवाद!” दरअसल, पुतिन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप की “शांति के प्रयासों” की तारीफ की थी और कहा था कि “वे वर्षों से दुनिया के कठिन संकटों को हल करने के लिए प्रयासरत हैं।”

ट्रंप खुद को अब्राहम समझौते का सूत्रधार बताते हैं, जिसके तहत इजराइल और कई अरब देशों के बीच संबंध सामान्य हुए। उनका दावा है कि यही कदम उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार का हकदार बनाता है। लेकिन इस बार यह सम्मान उन्हें नहीं मिला और पुरस्कार मचाडो के नाम हो गया, जिन्होंने वेनेजुएला में लोकतंत्र और मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ी है।

नोबेल समिति के फैसले से जहां ट्रंप समर्थक नाराज हैं, वहीं कई अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक मानते हैं कि समिति ने राजनीतिक प्रभाव से ऊपर उठकर उस व्यक्ति को सम्मानित किया, जिसने वास्तविक जोखिम उठाकर जनता के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। बावजूद इसके, ट्रंप और उनका खेमा़ इस निर्णय को “राजनीतिक पूर्वाग्रह” बताने से नहीं चूक रहा है — और एक बार फिर “शांति” की जगह “सियासत” चर्चा के केंद्र में आ गई है।

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