
अंजान जी
मुख्य संपादक सह प्रकाशक
भारत की अर्थव्यवस्था को $5 ट्रिलियन (₹415 लाख करोड़) तक पहुँचाने का लक्ष्य एक महत्वाकांक्षी सपना है, जो देश के आर्थिक भविष्य को आकार देने की क्षमता रखता है। हालाँकि, यह लक्ष्य कई बाहरी और आंतरिक चुनौतियों से घिरा हुआ है, और हाल ही में अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाया गया अतिरिक्त 25% टैरिफ एक नई और महत्वपूर्ण बाधा के रूप में उभरा है। इस टैरिफ का सीधा असर न केवल हमारे निर्यात पर पड़ेगा, बल्कि यह हमारे आर्थिक लक्ष्यों की राह में भी एक बड़ी चुनौती पेश करेगा।
अमेरिकी टैरिफ: एक नई आर्थिक चुनौती
अमेरिका ने रूस से तेल खरीदने के कारण भारत पर दबाव बनाने के लिए यह 25% का अतिरिक्त टैरिफ लगाया है। इस कदम का सीधा प्रभाव भारत के उन क्षेत्रों पर पड़ेगा जो अमेरिका को बड़े पैमाने पर निर्यात करते हैं, जैसे कि वस्त्र, रत्न, आभूषण, जूते, चमड़ा, और हस्तशिल्प। इन क्षेत्रों में काम करने वाले छोटे और मझोले उद्यम (MSMEs) और श्रम-प्रधान उद्योगों पर सबसे अधिक दबाव आएगा। अमेरिकी बाज़ार में भारतीय उत्पादों की कीमतें बढ़ने से उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम होगी, और खरीदार अन्य देशों की ओर रुख कर सकते हैं। यह भारत के ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों के लिए भी एक झटका है, क्योंकि यह भारत को ‘चीन प्लस वन’ विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने के प्रयासों को प्रभावित कर सकता है।
हालांकि, कुछ अर्थशास्त्रियों और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों, जैसे कि एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने यह भी कहा है कि इस टैरिफ का भारत की समग्र आर्थिक वृद्धि पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा। उनका तर्क है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से घरेलू मांग पर निर्भर है और यह अन्य बड़ी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में व्यापार पर कम निर्भर है।
$5 ट्रिलियन के लक्ष्य की राह में बाधाएँ
अमेरिका का टैरिफ भले ही एक तात्कालिक झटका हो, लेकिन भारत के $5 ट्रिलियन के लक्ष्य की राह में कुछ पुरानी और संरचनात्मक बाधाएँ भी हैं, जिन्हें दूर करना आवश्यक है।
- कमजोर औद्योगिक विकास: भारत को विनिर्माण क्षेत्र में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की जरूरत है। देश में अभी भी नौकरशाही की जटिलताएँ और भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दे बने हुए हैं, जो विदेशी निवेश को हतोत्साहित करते हैं।
- बुनियादी ढाँचे की कमी: परिवहन, ऊर्जा और संचार के क्षेत्र में मजबूत बुनियादी ढाँचे का अभाव लागत को बढ़ाता है और आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करता है।
- कौशल की कमी: एक विशाल युवा आबादी होने के बावजूद, कौशल और शिक्षा का स्तर अक्सर उद्योगों की जरूरतों से मेल नहीं खाता है।
- कृषि क्षेत्र की समस्याएँ: भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है, लेकिन यह क्षेत्र अभी भी मौसमी और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं से जूझ रहा है।
आगे का रास्ता: दृढ़ संकल्प और नवाचार
अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ को एक चेतावनी के रूप में लिया जाना चाहिए। यह हमें याद दिलाता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितताएँ हमेशा मौजूद रहती हैं। इस चुनौती का सामना करने के लिए, भारत को न केवल अमेरिका के साथ कूटनीतिक बातचीत जारी रखनी चाहिए, बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था को भी और अधिक लचीला बनाना चाहिए।
भारत को अपने निर्यात बाज़ार में विविधता लानी होगी और नए व्यापारिक साझेदारों की तलाश करनी होगी। मुक्त व्यापार समझौतों पर तेजी से काम करना एक अच्छा कदम हो सकता है। इसके अलावा, हमें आंतरिक चुनौतियों पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए। बुनियादी ढाँचे में भारी निवेश, शिक्षा प्रणाली में सुधार और ‘ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस’ को और बेहतर बनाना आवश्यक है। डिजिटल नवाचारों और स्टार्टअप को बढ़ावा देना भी हमारी अर्थव्यवस्था को नई गति दे सकता है।
अंततः, $5 ट्रिलियन का लक्ष्य केवल एक संख्या नहीं है, बल्कि यह एक मजबूत, आत्मनिर्भर और समृद्ध भारत का प्रतीक है। अमेरिकी टैरिफ जैसी चुनौतियों का सामना करके ही हम अपने लक्ष्य की ओर अधिक मजबूती से बढ़ सकते हैं। यह हमारे लिए अपनी अर्थव्यवस्था की कमजोरियों को दूर करने और एक नई दिशा में आगे बढ़ने का अवसर है।