पटना, 8 अप्रैल, 2025: “हर घर नल का जल” निश्चय योजना के अंतर्गत राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में आर्सेनिक, फ्लोराइड एवं आयरन जैसे गुणवत्ता प्रभावित तत्वों से युक्त जलापूर्ति वाले वार्डों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए योजनाओं का निर्माण कार्य तेजी से जारी है।
लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के माननीय मंत्री श्री नीरज कुमार सिंह ने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों में स्वीकृत योजनाओं में जल गुणवत्ता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट (WTP) की स्थापना का प्रावधान किया गया है। हालांकि, यह पाया गया है कि स्थल विशेष और नलकूपों की गहराई के अनुसार जल में इन तत्वों की मात्रा में भिन्नता देखी गई है।
सेंट्रल ग्राउंडवाटर बोर्ड के अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है कि 90 मीटर या उससे अधिक गहराई वाले एक्विफर से प्राप्त जल में आर्सेनिक की मात्रा मानकों के अनुरूप कम होती है। इसी आधार पर विभाग ने आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में नलकूपों की न्यूनतम गहराई 125 मीटर सुनिश्चित करने का निर्देश जारी किया है, ताकि केवल सुरक्षित स्तर से ही जल प्राप्त किया जा सके।
इसके अतिरिक्त, अब ड्रिलिंग के दौरान प्राप्त चार्ट के आधार पर ऊपरी एक्विफर को क्ले पैकिंग द्वारा सील कर दिया जाएगा और गहरे, शुद्ध एक्विफर से ही जल लिया जाएगा। यह नई तकनीक ऊपरी प्रदूषित जलस्तर से नीचे के स्वच्छ जलस्तर में संक्रमण की संभावना को पूरी तरह समाप्त कर देगी।
नलकूप निर्माण के बाद जल नमूना संग्रह कार्यपालक अभियंता और सहायक अभियंता की उपस्थिति में अनिवार्य रूप से किया जाएगा। नमूना लेने से पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि नलकूप निर्धारित गहराई तक निर्मित हुआ है। दो जल नमूने लिए जाएंगे, जिनमें से एक की जांच जिला स्तरीय प्रयोगशाला में और दूसरे की जांच राज्य स्तरीय प्रयोगशाला, छज्जूबाग, पटना में की जाएगी। जल नमूने का संग्रह निर्धारित प्रोटोकॉल के अनुसार नलकूप के निर्माण और विकास की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही किया जाएगा।
इसी प्रकार, आर्सेनिक एवं फ्लोराइड प्रभावित क्षेत्रों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना अधीक्षण अभियंता द्वारा जल नमूना रिपोर्ट की समीक्षा और स्थल निरीक्षण के बाद ही अनुमोदित की जाएगी। यदि जल की गुणवत्ता संतोषजनक पाई जाती है, तो प्लांट की स्थापना नहीं की जाएगी। आयरन प्रभावित क्षेत्रों में यह निर्णय संबंधित कार्यपालक अभियंता द्वारा लिया जाएगा। यदि निर्मित नलकूप से प्राप्त जल गुणवत्ता मानकों के अनुरूप पाया जाता है, तो वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की आवश्यकता नहीं होगी।
इस संबंध में माननीय मंत्री श्री नीरज कुमार सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा कि विभाग का यह दृढ़ प्रयास है कि किसी भी योजना का क्रियान्वयन जल गुणवत्ता की वैज्ञानिक जांच के बाद ही किया जाए। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार का संकल्प हर घर तक शुद्ध पेयजल पहुंचाना है और इसके लिए जल स्रोतों की गुणवत्ता की वैज्ञानिक जांच उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है।
Santosh Srivastava “Anjaan Jee”
Editor in Chief and Publisher