झारखंड पुलिस पर जातिवाद और रिश्वतखोरी का आरोप: व्यवस्था पर गंभीर सवाल

Live ख़बर

Rajesh Mohan Sahay : News Editor (Ranchi)

23 सितंबर 2025 – झारखंड पुलिस का तंत्र आज जातिवाद और भ्रष्टाचार की गंभीर बीमारी से ग्रस्त है, जिसने इसे भीतर से खोखला कर दिया है। यह बीमारी सबसे खतरनाक रूप से पुलिस अधिकारियों की पोस्टिंग में सामने आती है। राज्य में संवेदनशील थानों और महत्वपूर्ण जिलों में अधिकारियों की नियुक्ति योग्यता या कार्यकुशलता के बजाय जातीय समीकरणों और रिश्वतखोरी के आधार पर की जाती है।

यह एक खुला रहस्य है कि किस जिले के पुलिस अधीक्षक, किस थाने के एसएचओ, या किस सर्किल इंस्पेक्टर पर किस जाति का वर्चस्व रहेगा। यहाँ अधिकारियों का मकसद अपराध को नियंत्रित करना नहीं, बल्कि अपने जातीय गुट की पकड़ बनाए रखना होता है।

पोस्टिंग में जातीय भेदभाव और रिश्वतखोरी

यह जातीय और रिश्वतखोरी का मकड़जाल पुलिस की निष्पक्षता को पूरी तरह खत्म कर चुका है। एक जाति विशेष के अधिकारियों को अक्सर “मलाईदार” पोस्टिंग मिलती है—ऐसे जिले या थाने जहाँ अवैध वसूली, खनन, शराब और जमीन से जुड़े कारोबार चलते हैं। इसके विपरीत, दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के अधिकारियों को अक्सर “सजा-स्वरूप” दूर-दराज के और कम प्रभावी पदों पर तैनात किया जाता है।

वरिष्ठ अधिकारी अपने जातीय गुट को थानों में बनाए रखते हैं, जिससे एक ऐसा नेटवर्क तैयार हो जाता है जो शिकायत दर्ज करने से लेकर जाँच और आरोपपत्र दाखिल करने तक हर स्तर पर जाति देखकर काम करता है। इसका सीधा असर जनता पर पड़ता है, जिन्हें न्याय से वंचित कर दिया जाता है।

बढ़ते अपराध और कम सजा दर: एक चिंताजनक स्थिति

झारखंड में लगातार बढ़ रहे अपराध के पीछे यह जातीय भेदभाव एक बड़ा कारण है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ‘भारत में अपराध 2022’ रिपोर्ट, जो 2023 के अंत में प्रकाशित हुई थी, झारखंड में कई गंभीर मुद्दों को उजागर करती है।

  • हत्या दर: झारखंड में देश में सबसे अधिक हत्या दर है, जहाँ प्रति एक लाख जनसंख्या पर चार हत्याएँ होती हैं।
  • दहेज के मामले: राज्य में दहेज से संबंधित अपराधों की दर भी सबसे अधिक है, जहाँ 2022 में 1,844 मामले दर्ज किए गए थे।
  • महिलाओं के विरुद्ध अपराध: घरेलू हिंसा और फिरौती के लिए महिलाओं के अपहरण के मामलों में भी झारखंड देश में दूसरे स्थान पर रहा।
  • राजनीतिक हत्याएं: राजनीतिक कारणों से होने वाली हत्याओं में झारखंड पहले स्थान पर है।

यह रिपोर्ट बताती है कि 2022 में दर्ज हुए मामलों में से केवल आधे में ही आरोपपत्र दाखिल हो पाया, और सजा की दर घटकर 7-8% तक आ गई। ये आँकड़े सिर्फ पुलिस की विफलता नहीं, बल्कि एक विशेष जाति के अधिकारियों की मिलीभगत और संरक्षण की राजनीति का खुला सबूत हैं।

जब तक इस जातीय वर्चस्व को तोड़ा नहीं जाएगा, झारखंड पुलिस जनता की नहीं, बल्कि “जाति विशेष की मिल्कियत” बनी रहेगी। पुलिस में पोस्टिंग और तबादलों की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने और इसकी निगरानी एक स्वतंत्र आयोग को सौंपना अनिवार्य है। वरिष्ठ अधिकारियों की जातीय पैरवी और गुटबाजी पर तुरंत रोक लगानी होगी।

एक दिवंगत नेता के उदाहरण से सबक लिया जा सकता है, जो अपने कार्यकाल में किसी भी जाति-बहुल क्षेत्र में उसी जाति के अधिकारियों को तैनात नहीं करते थे, जिससे प्रशासन में निष्पक्षता स्वतः ही आ जाती थी।

यदि झारखंड सरकार इस समस्या पर ध्यान नहीं देती है, तो पुलिस पर से जनता का भरोसा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा, और यह लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा साबित होगा।

JOIN US