अंजान जी : महाकुंभ, जो 144 वर्षों में एक बार आयोजित होता है, भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का सबसे बड़ा और पवित्र आयोजन है। यह केवल भारत के हिंदू समाज के लिए नहीं, बल्कि दुनियाभर के श्रद्धालुओं के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर है। कुंभ का आयोजन चार प्रमुख नगरों—प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है, और हर 12 साल में यह महाकुंभ आयोजित किया जाता है। इस आयोजन का उद्देश्य श्रद्धालुओं को गंगा, यमुन और सरस्वती नदियों में स्नान कराना है ताकि वे अपने पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकें और उनका जीवन धन्य हो सके। यह एक अद्वितीय और विशिष्ट धार्मिक अवसर होता है, जो जीवन में केवल एक बार किसी व्यक्ति को अनुभव करने का अवसर मिलता है।
जब कुंभ हर 12 साल में आयोजित होता है, तब पूरे देश से लाखों लोग इस आयोजन में भाग लेने के लिए आते हैं। लेकिन जब यह महाकुंभ 144 वर्षों में एक बार आयोजित होता है, तो इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है। इस दुर्लभ अवसर पर लाखों श्रद्धालु एक साथ एकत्रित होते हैं, और यह आयोजन एक तरह से एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर बन जाता है। हालांकि, इन पवित्र अवसरों में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या और उनके उत्साह ने हाल के वर्षों में कुछ नकारात्मक घटनाएँ भी उत्पन्न की हैं। हाल ही में महाकुंभ के दौरान कुछ घटनाएँ सामने आई हैं, जिन्होंने आयोजनों की पवित्रता और उद्देश्य को लेकर सवाल खड़े किए हैं।
बढ़ती भीड़ और इसके परिणाम
महाकुंभ का आयोजन हर बार विशाल संख्या में श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, और इस कारण से वहां की भीड़ भी असाधारण रूप से बढ़ जाती है। 2019 के महाकुंभ में करीब 12 करोड़ लोग शामिल हुए थे, जो एक रिकॉर्ड है। इतनी बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं, तो स्वाभाविक है कि भीड़ नियंत्रण की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इससे न केवल सार्वजनिक सुविधाओं पर दबाव पड़ता है, बल्कि कुछ असामाजिक घटनाएँ भी घटित होने लगती हैं। यही नहीं, कई बार इस भीड़ में लोग अपनी सीमा से बाहर जाकर हिंसक या अराजक गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं।
महाकुंभ के दौरान हाल के वर्षों में कुछ ऐसी घटनाएँ सामने आई हैं, जिनमें श्रद्धालु ट्रेनों पर पथराव करते हैं, ट्रेनों के शीशे तोड़ते हैं और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुँचाते हैं। यह घटनाएँ महाकुंभ की पवित्रता को धूमिल करती हैं और इस आयोजन के वास्तविक उद्देश्य को सवालों के घेरे में डाल देती हैं। महाकुंभ जैसा आयोजन, जो धार्मिक आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है, उस पर इस प्रकार के आक्रमण और हिंसक घटनाएँ समाज में गलत संदेश भेजती हैं। इससे न केवल आयोजकों की मेहनत पर पानी फिरता है, बल्कि पूरे समाज में भी एक असुरक्षा का वातावरण बनता है।
क्या ये लोग सच में श्रद्धालु हैं?
यह महत्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या जो लोग सार्वजनिक संपत्तियों पर हमला करते हैं और महाकुंभ के आयोजन में अराजकता फैलाते हैं, वे वास्तव में श्रद्धालु हैं? क्या उनका उद्देश्य केवल धार्मिक आस्था और आस्था के उद्देश्य से इस आयोजन में भाग लेना है, या वे ऐसे लोग हैं जो केवल इस आयोजन का दुरुपयोग करते हुए अपने स्वार्थ साधने की कोशिश करते हैं? यह स्थिति काफी चिंताजनक है क्योंकि जब हम महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजन में शामिल होते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि हमारा उद्देश्य केवल शांति, सद्भाव और धार्मिक कर्तव्यों का पालन करना होना चाहिए, न कि किसी प्रकार की हिंसा या अव्यवस्था फैलाना।
किसी धार्मिक आयोजन में भाग लेना केवल शारीरिक रूप से उपस्थित होने का मामला नहीं होता, बल्कि इसका उद्देश्य हमारी आस्था, श्रद्धा और अनुशासन को दिखाना होता है। अगर हम धार्मिक आयोजनों में भाग लेकर हिंसा और अव्यवस्था फैलाते हैं, तो यह केवल हमारे समाज को ही नहीं, बल्कि समग्र धर्म और उसकी पवित्रता को भी ठेस पहुँचाता है। ऐसे तत्वों को अगर हम श्रद्धालु मानते हैं, तो यह गलत होगा। इसके बजाय, यह असामाजिक और अनुशासनहीन व्यवहार करने वाले लोग हैं जो इस आयोजन का दुरुपयोग कर रहे हैं।
आयोजकों और सरकार की जिम्मेदारी
महाकुंभ जैसे बड़े आयोजन में लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं, और इसमें सुरक्षा व्यवस्था, सार्वजनिक सुविधाओं और भीड़ नियंत्रण के उपायों की विशेष जिम्मेदारी आयोजकों और सरकार की होती है। अगर सुरक्षा और व्यवस्था सही तरीके से लागू नहीं होती है, तो ऐसी घटनाएँ सामान्य हो सकती हैं। इसका सीधा असर आयोजन की पवित्रता और आयोजन में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं के अनुभव पर पड़ता है।
सरकार और आयोजकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि महाकुंभ के आयोजन के दौरान कोई भी असामाजिक तत्व सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान न पहुँचाए और न ही अराजकता फैलाए। इसके लिए भीड़ नियंत्रण के उपायों को कड़ा किया जाना चाहिए और सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रत्येक श्रद्धालु को शांति और संयम के साथ अपनी आस्था व्यक्त करने का मौका मिले।
इसके अलावा, सरकार को महाकुंभ के आयोजनों में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं के लिए एक उचित कोड ऑफ कंडक्ट (आचार संहिता) की घोषणा करनी चाहिए, ताकि सभी श्रद्धालु बिना किसी अव्यवस्था के अपनी धार्मिक यात्रा को संपन्न कर सकें। यह आचार संहिता श्रद्धालुओं को यह समझने में मदद करेगी कि उनका उद्देश्य केवल शांति, आस्था और श्रद्धा से जुड़ा हुआ है, न कि किसी भी प्रकार की हिंसा या सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुँचाना।
महाकुंभ एक पवित्र और ऐतिहासिक आयोजन है, जो हमें हमारे धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को याद दिलाता है। यह आयोजन श्रद्धा, भाईचारे और शांति का प्रतीक है। लेकिन जब इस आयोजन में असामाजिक तत्व घुसकर हिंसा और अराजकता फैलाते हैं, तो यह केवल आयोजन की पवित्रता को ही नुकसान नहीं पहुँचाता, बल्कि समाज में अव्यवस्था और असुरक्षा का माहौल भी पैदा करता है।
महाकुंभ का वास्तविक उद्देश्य श्रद्धालुओं को शांति और अनुशासन के साथ अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करने का अवसर देना है। इसलिए यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि हम इस महान आयोजन की पवित्रता बनाए रखें और इसका लाभ सभी को शांति और सद्भाव से मिल सके। सरकार और आयोजकों को चाहिए कि वे पवित्र आयोजन की सुरक्षा सुनिश्चित करें और श्रद्धालुओं को सही दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करें। महाकुंभ को हमें केवल आस्था, विश्वास और शांति का अनुभव मानना चाहिए, न कि हिंसा और अराजकता का।
संतोष श्रीवास्तव “अंजान जी”
एडिटर इन चीफ एवं प्रकाशक