एनडीए में संतुलन की राजनीति या असंतोष का बीज?

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Anjaan Jee : Editor in Chief & Publisher

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एनडीए में सीटों का बहुप्रतीक्षित बंटवारा आखिरकार तय हो गया है, लेकिन इसके साथ ही असंतोष के स्वर भी उठने लगे हैं। जहां भाजपा और जेडीयू पहली बार समान 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही हैं, वहीं सहयोगी दलों में असंतोष की खाई गहराती दिख रही है। सबसे पहले नाराजगी के सुर हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के नेता जीतनराम मांझी की ओर से सामने आए हैं। दिल्ली से पटना लौटने के बाद एयरपोर्ट पर मांझी ने मीडिया से बातचीत में पहले तो छह सीटें मिलने पर संतोष जताया, लेकिन थोड़ी ही देर बाद उन्होंने अपने बयान से पलटते हुए कहा कि उनकी पार्टी को कम आंका गया है और इसका खामियाजा एनडीए को भुगतना पड़ सकता है।

दरअसल, एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर मांझी ने अपनी पार्टी के लिए कम से कम 15 सीटों की मांग की थी और इस बाबत उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को एक सूची भी सौंपी थी। उस समय उन्होंने यह भी कहा था कि यदि सम्मानजनक सीटें नहीं मिलतीं, तो उनकी पार्टी 100 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत के बाद मांझी शांत हुए और सोशल मीडिया पर लिखा कि वे “अंतिम सांस तक” पीएम मोदी के साथ रहेंगे। इसके बावजूद, उनका नवीनतम बयान गठबंधन की आंतरिक असहमति की झलक दिखा रहा है।

सीट बंटवारे की प्रक्रिया में एक और बड़ा राजनीतिक संदेश छिपा है — इस बार जेडीयू का “बड़ा भाई” वाला दर्जा खत्म हो गया है। अब तक हर विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी भाजपा से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ती थी, लेकिन इस बार दोनों दल बराबर सीटों पर उतरेंगे। यह समीकरण न केवल राजनीतिक संतुलन का संकेत देता है, बल्कि जेडीयू की घटती राजनीतिक पकड़ की ओर भी इशारा करता है।

उधर, लोजपा (रामविलास) के चिराग पासवान इस बंटवारे के सबसे बड़े विजेता माने जा रहे हैं। उन्होंने शुरुआत में 40 सीटों की मांग रखी थी और अंततः 29 सीटें हासिल कर लीं। भाजपा नेतृत्व ने पहले उन्हें 26 सीटों का प्रस्ताव दिया था, पर चिराग ने किसी भी हाल में 30 से कम पर सहमति नहीं जताई। नतीजतन भाजपा और जेडीयू दोनों को अपनी-अपनी तीन सीटें कम करनी पड़ीं। चिराग की यह सख्ती भाजपा की उस रणनीतिक चिंता को भी दर्शाती है, जिसमें वे 2020 के चुनाव जैसे नुकसान से बचना चाहते हैं, जब लोजपा ने अलग होकर एनडीए को कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया था।

उपेंद्र कुशवाहा की रालोमो और जीतनराम मांझी की हम — दोनों को छह-छह सीटें दी गई हैं। मांझी भले गठबंधन में बने हुए हैं, लेकिन उनका ताजा बयान आने वाले दिनों में एनडीए के भीतर नई हलचल पैदा कर सकता है।

एनडीए का यह “संतुलित फार्मूला” सतह पर तो एकजुटता दिखा रहा है, पर भीतर से यह कई स्तरों पर असंतोष और असमंजस की कहानी कहता है। एक ओर भाजपा गठबंधन को एकजुट रखकर “मोदी फैक्टर” पर दांव लगा रही है, वहीं जेडीयू की भूमिका सीमित होती दिख रही है। दूसरी ओर, मांझी और चिराग पासवान जैसे छोटे दल अब अपनी राजनीतिक हैसियत साबित करने के लिए खुलकर मोलभाव की स्थिति में आ गए हैं।

बिहार की राजनीति में इस सीट बंटवारे ने सत्ता समीकरणों को नया आकार दिया है। अब देखना यह होगा कि यह “बराबरी का बंटवारा” एनडीए के लिए मजबूती का सूत्र बनेगा या फिर असंतोष की चिंगारी चुनावी माहौल को अस्थिर कर देगी।

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