बहुत गर्व की बात है कि मंदार पर्वत का संबंध हमारे संस्कृति और धर्म से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। मंदार पर्वत, जो कि भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीन और पवित्र पर्वतों में से एक माना जाता है, का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्वत प्रयागराज के कुंभ मेले के आयोजन स्थल का मूल स्थान है, जहां हर बार विशेष अमृत की बूंदें गिरने से कुंभ मेला आयोजित होता है।
मंदार पर्वत का वर्णन प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलता है, जहां इसे समुद्र मंथन के महान घटना के केंद्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है। देवताओं और दैत्यों द्वारा समुद्र मंथन के लिए मंदार पर्वत को मथनी और बासुकी नाग को रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया था। इस महान मंथन के परिणामस्वरूप कई दिव्य और रहस्यमयी वस्तुएं उत्पन्न हुईं, जैसे हलाहल विष, चंद्रमा, लक्ष्मी देवी, रत्न और अमृत। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर पड़ीं, जो कि कुंभ मेले के आयोजन की वजह बनीं। यह अमृत, जो संजीवनी शक्ति का प्रतीक माना जाता है, हर किसी के जीवन में सुख और समृद्धि लाने वाला माना जाता है।
कुंभ मेला एक ऐतिहासिक और धार्मिक पर्व है, जो हर 12 वर्ष में चार प्रमुख स्थलों पर – हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। इस आयोजन का महत्व बहुत गहरा है, क्योंकि यह न केवल आध्यात्मिक शुद्धि और साधना का अवसर प्रदान करता है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का भी एक जीवित प्रतीक है। यहां लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं, ताकि वे पवित्र नदी में स्नान कर सकें और आत्मा की शुद्धि के साथ अपने जीवन को सुखमय बना सकें।
बिहार राज्य के बांका जिला के बौंसी में यह पर्वत स्थित है। भागलपुर से बौंसी पहुँचने से पूर्व स्टेट हाइवे – 19 और मंदार विद्यापीठ हॉल्ट के करीब यह पर्वत है। यहाँ से भागलपुर 50 किलोमीटर है। यह पर्वत अक्षांश 24 0 50’ उत्तर तथा देशांतर 87 0 4’ पूरब में अवस्थित है। बांका जिले के लोगों के लिए मंदार पर्वत और इसके साथ जुड़ी धार्मिक परंपराएं गर्व का विषय हैं, क्योंकि यह स्थल उनके सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। यहां की भूमि और पर्वत को देखकर यह एहसास होता है कि हमारे इतिहास में कितनी गहरी और अद्भुत धार्मिक मान्यताएं समाहित हैं। यही कारण है कि मंदार पर्वत न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह लोगों के दिलों में श्रद्धा और विश्वास का एक मजबूत प्रतीक भी है।
बांका के इस मंदार पर्वत की पूजा और उसकी धार्मिक महत्वता हमारे भारतीय समाज की एक अमूल्य धरोहर है, जिसे हमें संजो कर रखना चाहिए।
प्रस्तुति – रितेश कुमार सिन्हा