संतोष श्रीवास्तव “अंजान जी”
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुई 9वीं कक्षा की छात्रा रिया प्रजापति की आत्महत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। एक साधारण परिवार की यह छोटी सी लड़की, जिसने अपने सपनों को उड़ान दी थी, आखिरकार अपने जीवन की चुप्पी तोड़ने के लिए मौत को गले लगा लिया। लेकिन सवाल उठता है: क्या रिया की मौत सिर्फ एक हादसा थी या यह हमारे समाज और शिक्षा व्यवस्था की विफलता का परावर्तन है?
रिया ने अपनी जान इसलिए दी क्योंकि उसके स्कूल ने फीस बकाया होने पर उसे परीक्षा से बाहर कर दिया और अपमानित किया। क्या यह सच में वह शिक्षा है जो हमें चाहिए थी? क्या यही है हमारी “नई शिक्षा नीति”? क्या यही है वह समावेशी भारत, जहाँ हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए?
शिक्षा के नाम पर व्यवसायीकरण
आज के दौर में शिक्षा एक व्यापार बन गई है। प्राइवेट स्कूलों ने इसे लाभ का साधन बना दिया है। मनमानी फीस, उच्च बिल्डिंग चार्ज, यूनिफॉर्म और किताबों के नाम पर आर्थिक शोषण, और सबसे दर्दनाक — गरीब बच्चों के आत्मसम्मान को रौंदना।
रचना, एक गरीब परिवार की बच्ची, स्कूल में अपनी किताबें लाने के लिए भी हिम्मत नहीं जुटा पाती क्योंकि उसकी फीस बकाया है। उसके सपने भी अब फीस के बकाया के कर्ज में दब गए हैं। रिया भी इन हजारों बच्चों में से एक थी, जिसकी मासूमियत को पैसा और सत्ता ने कुचल दिया।
शिक्षा का असली उद्देश्य क्या है?
शिक्षा का मूल उद्देश्य है — ज्ञान, जागरूकता, और समान अवसर प्रदान करना। लेकिन जब हम इसे व्यवसाय बना देते हैं, तो शिक्षा का उद्देश्य भटक जाता है। क्या हमें अपने बच्चों को सिर्फ प्रतियोगिता में जीतने के लिए तैयार करना है, या उन्हें इंसानियत, संवेदनशीलता और समानता का पाठ पढ़ाना है?
रिया की मौत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है:
- क्या हम शिक्षा को एक अधिकार के रूप में देख रहे हैं या एक विलासिता के रूप में?
- क्या स्कूलों को फीस के नाम पर बच्चों के सपनों का दमन करने का अधिकार है?
- क्या हमारी संवेदनाएं मर गई हैं, या हम सिर्फ तकनीकी प्रगति के नारे लगा रहे हैं?
डिजिटल इंडिया और मानव संवेदनाएं
हम चाँद पर जा रहे हैं, AI में तरक्की कर रहे हैं, डिजिटल इंडिया बना रहे हैं, लेकिन क्या इन सबके बीच हमारी संवेदनाएं भी विकसित हो रही हैं? हम कितने आगे बढ़ रहे हैं, यह तो दिखता है, लेकिन हम कितना मानवता के स्तर पर आगे बढ़े हैं, यह सवाल उठता है।
रिया की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि तकनीकी प्रगति के साथ-साथ हमें मानवता के मूल्यों को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।
जिम्मेदारी किसकी है?
रिया के माता-पिता, उसके शिक्षक, स्कूल प्रबंधन, शिक्षा नीति निर्माता — सभी के सिर पर यह जिम्मेदारी है। लेकिन सबसे बड़ी जिम्मेदारी हमारी है, समाज की, जो चुपचाप इन घटनाओं को देखता रहता है।
हममें से हर एक को यह सवाल पूछना चाहिए: “क्या हम अपने बच्चों के लिए एक सुरक्षित, समान और संवेदनशील भविष्य बना रहे हैं?”
अंतिम शब्द
रिया अब नहीं है, लेकिन उसकी आवाज़ हर माता-पिता, हर बच्चे, और हर शिक्षक के दिल में गूंज रही है। उसकी मौत सिर्फ एक त्रासदी नहीं है, बल्कि एक चेतावनी है।
हम सबको उठकर यह सवाल पूछना चाहिए: “क्या अगली रिया आपके घर की भी हो सकती है?”
अब समय है कि हम सिर्फ शोक नहीं मनाएं, बल्कि कार्रवाई करें। शिक्षा को एक अधिकार बनाएं, न कि एक व्यवसाय। हर बच्चे के सपनों को उड़ान भरने का मौका दें।
रिया की मौत बेकार न जाए। उसकी कहानी को एक प्रेरणा बनाएं, ताकि कोई भी बच्चा इस तरह के दुखद अनुभव से न गुजरे।