संजय कुमार बिनीत : राजनीतिक विश्लेषक
हाल ही में हुए दिल्ली और हैदराबाद विश्वविद्यालयों के छात्र संघ चुनावों के नतीजे, कांग्रेस नेता राहुल गांधी के उस दावे के विपरीत हैं, जिसमें उन्होंने ‘जेन-जी’ (Gen-Z) पीढ़ी को संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए साथ आने का आह्वान किया था। इन चुनावों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की जीत और कांग्रेस की छात्र इकाई, एनएसयूआई (NSUI), का निराशाजनक प्रदर्शन इस बात का संकेत देता है कि युवा पीढ़ी का झुकाव राष्ट्रवादी विचारधारा की ओर है।
राहुल गांधी ने ‘जेन-जी’ से ‘वोट चोरी’ रोकने और लोकतंत्र बचाने की अपील की थी। लेकिन इसके तुरंत बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनावों में युवाओं ने अपना रुख साफ कर दिया। वहीं, हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एनएसयूआई को नोटा (NOTA) से भी कम वोट मिले, जबकि राज्य में कांग्रेस की सरकार है। यह हार राहुल गांधी और कांग्रेस दोनों के लिए एक स्पष्ट संदेश है।
पिछले एक साल में, एबीवीपी ने कई प्रमुख विश्वविद्यालयों में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की है, जिनमें हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी, पटना विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और दिल्ली विश्वविद्यालय शामिल हैं। हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एबीवीपी की जीत खास मानी जा रही है, क्योंकि पिछले छह सालों से यहाँ वामपंथी और एनएसयूआई का दबदबा था।
हाल ही में नेपाल में ‘जेन-जी’ आंदोलन के कारण सरकार गिरने के बाद, राहुल गांधी का भारत में भी ‘जेन-जी’ से इस तरह का आह्वान करना भाजपा के निशाने पर आ गया। झारखंड के भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने उन पर हमला करते हुए कहा कि ‘जेन-जी’ पुरानी पीढ़ी के नेताओं को क्यों बर्दाश्त करेगी और यह पीढ़ी भ्रष्टाचार के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर नेपाल इस्लामिक राष्ट्र बनने से बचा तो भारत क्यों हिंदू राष्ट्र नहीं बन सकता। इसी तरह, योगी सरकार के मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने भी राहुल गांधी पर युवाओं को भड़काने का आरोप लगाया।
एबीवीपी का कहना है कि उनकी लगातार जीत छात्रों के राष्ट्रवाद के समर्थन और ‘विभाजनकारी राजनीति’ को नकारने की निशानी है। दिल्ली और हैदराबाद के चुनाव परिणाम यह स्पष्ट करते हैं कि ‘जेन-जी’ पीढ़ी राहुल गांधी के आह्वान से प्रभावित होने के बजाय, वर्तमान सरकार की नीतियों और राष्ट्रवादी विचारधारा से संतुष्ट दिख रही है। यह परिणाम कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता है, जिसे अपने युवा आधार को फिर से जोड़ने के लिए नई रणनीति पर विचार करना होगा।
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