योगाचार्य महेश पाल
आज के आधुनिक युग में जहाँ एक ओर हम तकनीकी विकास की नई ऊँचाइयों को छू रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हमारी जीवनशैली और खान-पान की आदतें हमारे स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई हैं। योगाचार्य महेश पाल के अनुसार, असंतुलित आहार के कारण बच्चों और युवाओं में बढ़ती शारीरिक और मानसिक समस्याएँ अब केवल व्यक्तिगत चिंता का विषय नहीं रही हैं, बल्कि ये समाज, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के लिए भी एक बड़ा खतरा बन चुकी हैं।
आधुनिकता की आड़ में स्वास्थ्य से समझौता
भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही सात्विक और संतुलित भोजन पर जोर दिया गया है। हमारे प्राचीन ग्रंथ और वेद भी बताते हैं कि अधिक तीखा, मसालेदार या प्रोसेस्ड भोजन शरीर को हानि पहुँचाता है। दुर्भाग्यवश, पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में आकर हमारी भोजन की आदतें पूरी तरह बदल गई हैं। टेलीविजन और सोशल मीडिया पर दिखने वाले आकर्षक विज्ञापन बच्चों और युवाओं को फ़ास्ट फ़ूड और जंक फ़ूड की ओर आकर्षित कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती है कि भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फ़ूड की खपत सालाना 14% से अधिक बढ़ रही है।
इस तरह के खान-पान का सीधा परिणाम हमारे स्वास्थ्य पर दिख रहा है। उच्च रक्तचाप, अस्थमा, मधुमेह और हृदय रोग जैसी गैर-संक्रामक बीमारियाँ (Non-Communicable Diseases) तेज़ी से फैल रही हैं। भारत में होने वाली कुल मौतों में से 55.7% मौतें इन्हीं बीमारियों के कारण होती हैं, जिनमें से 30% मौतें अकेले हृदय रोगों की वजह से होती हैं। इसके अलावा, सब्जियों और फलों में कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग भी हमारी सेहत पर बुरा असर डाल रहा है।

समस्या का समाधान: मोटे अनाज और योग
इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा। योगाचार्य महेश पाल के अनुसार, इन बीमारियों से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है मोटे अनाजों (Millets) का सेवन। भारत में हज़ारों सालों से मोटे अनाजों की खेती होती रही है। आज इन्हें ‘सुपरफ़ूड’ के रूप में वैश्विक पहचान मिल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शुरू की गई ‘श्री अन्न योजना’ और संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2023 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ घोषित करना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
इसके साथ ही, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए योग को जीवन का अभिन्न अंग बनाना बेहद ज़रूरी है। योग न केवल शारीरिक रोगों से बचाता है, बल्कि मानसिक तनाव को कम कर हमें स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीने में मदद करता है।
सरकार, समाज और व्यक्ति की सामूहिक जिम्मेदारी
इस चुनौती का समाधान किसी एक व्यक्ति या संस्था की जिम्मेदारी नहीं है। यह एक सामूहिक प्रयास है जिसमें सरकार, समाज और हर व्यक्ति को मिलकर काम करना होगा।
- सरकार: खाद्य सुरक्षा के कड़े मानक लागू किए जाएँ, पैकेज्ड खाद्य पदार्थों पर स्पष्ट लेबलिंग अनिवार्य हो, और पोषण योजनाओं के लिए पर्याप्त बजट आवंटित किया जाए।
- समाज: स्कूलों के पाठ्यक्रम में पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा को शामिल किया जाए, और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता फैलाई जाए।
- व्यक्ति: हमें खुद जागरूक होकर स्वस्थ भोजन विकल्पों को अपनाना होगा और किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करना होगा।
जब हम सब मिलकर जागरूकता, शिक्षा और स्वस्थ आदतों को अपने जीवन में अपनाएँगे, तभी हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर पाएँगे। यह समय है कि हम ‘आधुनिक’ होने की परिभाषा को बदलें और एक स्वस्थ जीवनशैली को अपनी पहचान बनाएँ।