बोकारो में दुर्गा पूजा का रंग, धार्मिक सद्भाव की मिसाल बने मुस्लिम कारीगर

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Anjaan Jee :
Editor in Chief & Publisher

बोकारो, 22 सितंबर 2025 – इस्पात नगरी बोकारो और चास में दुर्गा पूजा का उत्साह चरम पर है। महालया और कलश-स्थापन के साथ ही शहर का वातावरण भक्तिमय हो गया है। इस साल भी दुर्गा पूजा की तैयारियाँ ज़ोरों पर हैं, और सबसे खास बात यह है कि सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हुए मुस्लिम कारीगर पूजा पंडालों के निर्माण में दिन-रात लगे हुए हैं।

प्रमुख पंडाल और उनके स्वरूप

बोकारो में हर साल की तरह इस बार भी भव्य पंडाल बनाए जा रहे हैं, जो देश-विदेश के प्रसिद्ध मंदिरों की झलक पेश करेंगे।

  • सेक्टर-2: श्री श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति 41 वर्षों से यहाँ दुर्गा पूजा का आयोजन कर रही है। इस बार यहाँ गुजरात के प्रसिद्ध नीलकंठ धाम मंदिर के रूप में एक भव्य पंडाल बन रहा है, जिसे जामताड़ा के मोहम्मद आलम अपने 22 साथियों के साथ बना रहे हैं। पंडाल की चौड़ाई 120 फीट और ऊँचाई 80 फीट होगी, जिसकी लागत लगभग ₹14 लाख है।
  • सेक्टर-9 वैशाली मोड़: श्री श्री मां अंबे दुर्गा पूजा समिति द्वारा यहाँ गुजरात के स्वामीनारायण मंदिर के स्वरूप का पंडाल बनाया जा रहा है। 110 फीट ऊँचे और 150 फीट चौड़े इस पंडाल पर करीब ₹18 लाख का खर्च आ रहा है। बंगाल के कारीगर यहाँ दिन-रात काम कर रहे हैं।
  • सेक्टर-9ए (आलोक मैदान): यहाँ इटावा, उत्तर प्रदेश के जय गुरुदेव मंदिर की प्रतिकृति वाला पंडाल बन रहा है, जिसकी लागत लगभग ₹14 लाख है।
  • सेक्टर-12: श्री श्री सार्वजनिक पुराना दुर्गा पूजा समिति यहाँ गुजरात के कष्टभंजन मंदिर के प्रारूप का पंडाल बना रही है, जिसकी लागत लगभग ₹5.5 लाख है। बंगाल के कारीगर रज़ाक अंसारी और उनके साथी इसे 100 फीट चौड़ा और 75 फीट ऊँचा बना रहे हैं।

बोकारो के तुपकाडीह स्टेशन रोड पर स्थित दुर्गा मंदिर नवरात्रि के दौरान एक विशेष आस्था स्थल बन जाता है। यहाँ की अनूठी परंपरा है कि नवरात्रि के हर दिन माँ दुर्गा के एक नए स्वरूप की प्रतिमा का पट खोला जाता है, जिससे भक्तों को नौ दिनों तक अलग-अलग दर्शन का अवसर मिलता है। इसी वजह से यह मंदिर पूरे ज़िले में ‘दुर्गा धाम’ के नाम से प्रसिद्ध है।

इस मंदिर में नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्मांडा, पाँचवें दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की प्रतिमाओं के पट भक्तों के दर्शन के लिए खोले जाते हैं।

इस मंदिर में माँ दुर्गा के साथ-साथ देवी लक्ष्मी, सरस्वती और भगवान गणेश व कार्तिक की संगमरमर की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं। साल भर यहाँ भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्र में यहाँ भव्य मेला और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।

इस मंदिर की नींव 1983 में स्वर्गीय साधु प्रसाद महतो, कैलाश महतो, चंद्रिका दुबे, कीनू महतो और हजारी महतो जैसे स्थानीय लोगों की पहल पर रखी गई थी। पहले यहाँ बलि पूजा की परंपरा थी, लेकिन 2003 में पुरोहित परमेश्वर मिश्र के कहने पर ग्रामीणों ने मिलकर वैष्णवी पद्धति से पूजा करना शुरू किया और संगमरमर की भव्य प्रतिमाएँ स्थापित कीं।

नवरात्रि की शुरुआत और धार्मिक महत्व

सोमवार को नवरात्रि के पहले दिन, माँ दुर्गा के पहले स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा की गई। ऐसी मान्यता है कि उनकी पूजा करने से भक्तों को नौ देवियों की कृपा मिलती है और धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के दूसरे दिन, माँ दुर्गा के द्वितीय स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाएगी।

बोकारो में दुर्गा पूजा का आयोजन न केवल एक धार्मिक त्योहार है, बल्कि यह सांप्रदायिक एकता और भाईचारे का भी प्रतीक बन चुका है।