पहलगाम आतंकी हमला: हिंदुओं की पहचान कर हत्याएं जिहादी आतंकवाद का स्पष्ट प्रमाण

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राँची, 25 अप्रैल, 2025: वरिष्ठ विश्लेषक राजेश मोहन सहाय ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले को एक सोची-समझी जिहादी कार्रवाई करार दिया है, जिसमें हिंदुओं को निशाना बनाकर उनकी हत्याएं की गईं। उन्होंने इस घटना को 75 वर्षों से चली आ रही “शब्द चयन की बुनियादी गलती” का परिणाम बताया, जहां मृतकों को मात्र पर्यटक या चरमपंथियों का शिकार बताकर घटना की गंभीरता को कम करने का प्रयास किया जाता है।

श्री सहाय ने अपने वक्तव्य में कहा कि पहलगाम में मारे गए 26 निर्दोष लोग केवल हिंदू थे। हमलावरों ने उनकी जाति, प्रांत या भाषा नहीं पूछी, बल्कि उन्हें कलमा पढ़ने के लिए कहा गया और जो ऐसा नहीं कर सके, उन्हें बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। यह एक स्थापित जिहादी तरीका है और इसे घोषित जिहाद के रूप में देखा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में हुए इस आतंकी हमले, जिसमें 26 लोगों की जान गई और कई घायल हुए, ने देश को अंदर तक झकझोर दिया है। खुफिया जानकारी के अनुसार, इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है, जबकि लश्कर-ए-तैयबा के फ्रंट ग्रुप द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने भी इसकी जिम्मेदारी का दावा किया है, जो एक और पाकिस्तानी जिहादी आतंकी संगठन है। यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि इन संगठनों के निशाने पर गैर-मुसलमान, विशेषकर हिंदू रहते हैं।

श्री सहाय ने उन लोगों को भी आड़े हाथों लिया जो इस हमले को पिछली घटनाओं की अगली कड़ी के रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा कि मोहम्मद बिन कासिम से लेकर अब तक भारत पर अनगिनत आक्रमण हुए हैं, जिनमें महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी, बाबर, तैमूर लंग और अलाउद्दीन खिलजी जैसे कट्टर जिहादियों के हमले प्रमुख हैं। 712 ईस्वी में पहले मुस्लिम आक्रमण के बाद से 1337 वर्ष बीत चुके हैं और इस दौरान सांस्कृतिक भारत कई हिस्सों में बंट चुका है। इसके बावजूद, शेष भारत और यहां का बहुसंख्यक हिंदू समाज यह समझने को तैयार नहीं है कि ये जिहादी घटनाएं बार-बार क्यों हो रही हैं और मजहब के नाम पर अलग देश लेने के बाद भी क्यों नहीं रुक रही हैं।

उन्होंने जोर देकर कहा कि ये हमलावर सिरफिरे नहीं हैं और उनकी हिंसा का एक स्पष्ट उद्देश्य है। “आतंकवादी का कोई मजहब या धर्म नहीं होता” जैसे भ्रम को दूर करते हुए श्री सहाय ने कहा कि जिहादी आतंकवाद के संदर्भ में इस सत्य को ठीक से समझकर ही भारत पर हो रहे राजनीतिक, आध्यात्मिक और अन्य हिंसात्मक आक्रमणों, जैसे लव जिहाद, लैंड जिहाद, धर्म परिवर्तन और हिंदू धार्मिक शोभा यात्राओं पर पथराव को समझा जा सकता है।

उन्होंने हिंदू धर्म की प्रकृति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह किसी मतवाद या विश्वास को धर्म का आधार नहीं मानता, इसलिए यह अन्य संगठित धर्मों की तरह सामाजिक-राजनीतिक और हिंसक रूप से संगठित नहीं है, जो अपनी और दूसरों की गिनती करते हुए धर्म की चिंता करते हैं। इसी कारण हिंदू धर्म असुरक्षित होता जा रहा है। इसकी नींव किसी मत-विश्वास पर नहीं, बल्कि सृष्टि मात्र के साथ संबंध पर आधारित है, जबकि अन्य धर्म अपने आसपास बाड़े बनाते हैं और जो उनके भीतर हैं वे ‘अपने’ और बाकी ‘गैर’ माने जाते हैं। हिंदू धर्म ऐसे बाड़े नहीं बनाता और किसी को गैर नहीं मानता, जिससे वह अकेला और असुरक्षित रह जाता है और आक्रामक धर्मों के प्रहार के सामने असहाय हो जाता है, जैसा कि कश्मीरी हिंदुओं के साथ हुआ।

श्री सहाय ने वर्तमान पहलगाम हमले को भी इसी कड़ी में जोड़ते हुए कहा कि हिंदुओं को चुन-चुन कर नाम पूछ कर मारा गया, क्योंकि यह ‘दार-उल-हर्ब’ है और इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार मुसलमानों द्वारा जिहाद की घोषणा करना न्यायसंगत है। वे न केवल जिहाद की घोषणा कर सकते हैं, बल्कि उसकी सफलता के लिए विदेशी मुस्लिम शक्ति की मदद भी ले सकते हैं। उन्होंने पहलगाम और मुर्शिदाबाद की हालिया घटनाओं को इसी परिप्रेक्ष्य में देखने का आग्रह किया।

उन्होंने खेद व्यक्त किया कि इसके बावजूद, देश के नीति निर्धारक, बहुसंख्यक समाज और बुद्धिजीवियों का एक वर्ग अभी भी यह मान रहा है कि कश्मीर में कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत जिंदा है, जबकि पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर के हालिया बयान जल्द ही फलित होने की संभावना है। उन्होंने कश्मीर में पत्थरबाजी बंद होने और पर्यटकों की संख्या बढ़ने जैसे तर्कों को आत्ममुग्धता करार दिया और कहा कि मीडिया में कश्मीर बंद की तस्वीरें सच्चाई को छिपा रही हैं। किसी को 26 बर्बर हत्याओं से सहानुभूति नहीं है, चिंता केवल पर्यटन व्यवसाय की है।

श्री सहाय ने यह भी कहा कि अगर पर्यटन चौपट भी हो जाए तो कश्मीर से जिहाद शायद ही बंद हो। पिछले 10 वर्षों में कश्मीर को पर्यटन से लगभग 80 हजार करोड़ की आमदनी हुई है, जबकि केंद्र सरकार ने इस अवधि में 6 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इसके बदले में भारत को क्या मिल रहा है? जिहाद। भाजपा को कश्मीर घाटी की 47 विधानसभा सीटों में से महज 17 पर उम्मीदवारी मिल रही है। यह स्पष्ट है कि कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत सब धोखा है, और असल उद्देश्य केवल जिहाद है। इसीलिए कल किसी को उन लोगों पर दया नहीं आई जो कलमा नहीं पढ़ सके। दया तो 90 के दशक में लाखों कश्मीरी हिंदुओं पर भी नहीं आई थी। गंगा-जमुनी की बात करने वाले भारतीय समाज को यह कब समझ आएगा कि वह जिहाद का सामना कर रहा है और उसे इससे लड़ना ही होगा? इंसानियत और कश्मीरियत के छलावे से निकलकर धरातल की सच्चाई को समझना और धर्म युद्ध लड़ना ही एकमात्र विकल्प है।

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