हर वर्ष ज्येष्ठ माह के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि पर देवर्षि नारद जी की जयंती मनाई जाती है. शास्त्रों की माने तो नारद जी ने बहुत कठोर तपस्या की जिसके बाद उन्हें देवलोक में ब्रम्हऋषि का पद मिल सका. नारद जी को वरदान है कि वो कभी किसी भी समय तीनों लोकों में भ्रमण कर सकते हैं. नारद जी को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र कहा जाता है. ब्रह्माण्ड के संदेशवाहक के रूप में भी उन्हें जाना जाता है.
नारद जी को उनकी विष्णु भक्ति के लिए जाना जाता है. मान्यता है कि नारद जयंती के दिन अगर पूरे मन से देवर्षि नारद जी की पूजा अर्चना की जाए तो भक्त को ज्ञान की प्राप्ति तो मिलती ही है. इस साल भी बहुत धूमधाम से नारद जी की जयंती मनाई जाएगी. पौराणिक कथाओं की मानें तो अपने पूर्व जन्म में नारद जी ‘उपबर्हण’ नाम के एक गंधर्व हुआ करते थे जिन्हें अपने रूप पर अति घमंड था. एक बार की बात है जब स्वर्ग में अप्सराएं व गंधर्व गीत और नृत्य में लीन थे और ब्रह्मा जी की उपासना अपनी कलाओं से कर रहे थे. इसी समय उपबर्हण स्त्रियों के साथ वहां आ गए, उपासना के समय ही वो रासलीला करने में लीन हो गए. यह देखकर ब्रह्मा जी क्रोध से भर गए और उपबर्हण को श्राप दिया कि उनका जन्म ‘शूद्र योनि’ में होगा.
ब्रह्मा जी के श्राप का फल ये हुआ कि ‘उपबर्हण’ ‘शूद्रा दासी’ के घर जन्मे. इस जन्म में वो हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहा करते थे. कथा है कि एक दिन एक वृक्ष के नीचे ध्यान में बैठकर वो तप कर रहे थे कि एकाएक भगवान की एक झलक उन्हें दिखाई दी लेकिन यह झलक तुरंत अदृश्य भी हो गई. ईश्वर के प्रति वो और अधिक आस्थावान हो गए. एक दिन आकाशवाणी की गई कि- हे बालक, अब तुम मेरे दर्शन इस जन्म में नहीं कर पाओगे पर अगले जन्म में तुम्हें मेरा पार्षद नियुक्त किया जाएगा. फिर क्या था ‘उपबर्हण’ अपने इस दूसरे जन्म में भगवान विष्णु के घोर तप में लीन हो गए जिसके कारण तीसरे जन्म में उपबर्हण का ब्रम्हा जी के मानस पुत्र के रूप में नारद जी के रूप में अवतरण हुआ.
ज्योतिषी संतोषाचार्य
ज्योतिष विशारद एवं वास्तु आचार्य
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