राँची, 21 अगस्त 2025 – राज्य में हुए कथित शराब घोटाले की जाँच और उससे जुड़ी न्यायिक प्रक्रियाएँ अब गंभीर सवालों के घेरे में आ गई हैं। जिस तरह से इस मामले में गिरफ्तार किए गए आरोपियों को एक-एक कर जमानत मिल रही है, उससे यह आशंका पुख्ता होती जा रही है कि यह पूरा घटनाक्रम सिर्फ दिखावा था, जिसका उद्देश्य जनता की आँखों में धूल झोंकना, बड़े षड्यंत्रकारियों को बचाना और शायद भयादोहन के माध्यम से मोटी रकम वसूलना था।
शुरुआती दौर में जाँच एजेंसी ने जिस तत्परता से एक बड़े अधिकारी को गिरफ्तार किया था, वह अब पूरी तरह गायब हो चुकी है। यह बात समझ से परे है कि भ्रष्टाचार के इतने गंभीर मामले में तीन महीने के भीतर भी चार्जशीट दाखिल क्यों नहीं की गई। जाँच एजेंसियों की यह निष्क्रियता आम जनमानस को संदेह के घेरे में डाल रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस देरी के पीछे एक सोची-समझी रणनीति काम कर रही थी, जिसका एकमात्र परिणाम आरोपियों को जमानत मिलना था।
भ्रष्टाचार के मामलों में, खासकर जब प्रभावशाली व्यक्तियों या अधिकारियों से पूछताछ होती है, तो उनके बयानों को सबूत के तौर पर हू-ब-हू रिकॉर्ड करना एक मानक प्रक्रिया है। लेकिन, जानकारी के अनुसार, इस मामले में ऐसा नहीं किया गया। ऐसा लगता है कि पूछताछ की रिकॉर्डिंग न रखकर जाँच अधिकारियों को यह सुविधा दी गई कि वे अपनी मर्जी के अनुसार बयान दर्ज कर सकें, जिससे वे जिसे चाहें उसे फँसा सकें और जिसे चाहें उसे बचा सकें। यह एक ऐसा ‘गोरखधंधा’ है, जो जाँच की निष्पक्षता पर सीधा सवाल उठाता है।
सवाल यह भी उठता है कि क्या यह सब मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री की सहमति से हुआ है? यह मान लेना मुश्किल है कि इतना बड़ा खेल, जिसमें करोड़ों की डील का आरोप है, बिना शीर्ष नेतृत्व की जानकारी और सहमति के संभव हो सकता है। यदि ऐसा नहीं है, तो दोषी अधिकारियों पर तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए, वरना देर-सबेर जाँच की आँच उच्च पदों तक भी पहुँच सकती है।
यह कोई पहली बार नहीं है जब इस तथाकथित शराब नीति की खामियों और बड़े घोटाले के प्रति सचेत किया गया है। लेकिन, पूर्व में दिए गए चेतावनियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह निष्क्रियता इस बात को और पुष्ट करती है कि यह घोटाला मात्र एक घटना नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साजिश थी, जिसमें शीर्ष स्तर पर भी भागीदारी की आशंका है।
यह पूरा खेल छत्तीसगढ़ शराब सिंडिकेट से जुड़े झारखंड और रायपुर से लेकर दिल्ली तक के बड़े माफियाओं को बचाने के लिए रचा गया प्रतीत होता है। आरोप है कि कुछ बड़े अधिकारियों ने मोटी डील कर जान-बूझकर समय पर चार्जशीट दाखिल नहीं होने दी, क्योंकि उन्हें पता था कि इसका परिणाम केवल जमानत होगा।
चूंकि मुख्यमंत्री स्वयं एसीबी के प्रभारी मंत्री भी हैं, इसलिए उन्हें यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बचना चाहिए कि उन्हें जानकारी नहीं थी या अधिकारियों ने उन्हें अंधेरे में रखा। उन्हें तत्काल इस मामले का संज्ञान लेना चाहिए और यह पता लगाना चाहिए कि बड़े आरोपियों को जमानत दिलाने के लिए किस-किस ने डील की है और इस साजिश के पीछे कौन लोग हैं। ऐसे लोगों को चिन्हित कर उन पर कठोर कार्रवाई का आदेश बिना विलंब देना चाहिए।
यह दिखावे की जाँच बंद कर पूरे मामले की सीबीआई जाँच करवाना ही एकमात्र समाधान है, ताकि वास्तविक दोषियों को पकड़ा जा सके और जाँच के नाम पर ‘पकड़ो, डील करो, और छोड़ दो’ के इस षड्यंत्र का पर्दाफाश हो सके।
Rajesh Mohan Sahay
News Editor, Ranchi