
भारतीय संस्कृति के विशाल आकाश में दीपावली का पर्व उस चन्द्रमा की भाँति है, जो अमावस्या की रात्रि में भी अपने प्रकाश से समस्त जग को आलोकित कर देता है। यह केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि आत्मा की ज्योति जागृत करने का अवसर है। दीपावली का शाब्दिक अर्थ ही है — दीपों की आवली , अर्थात् वह समय जब अंधकार मिटाकर जीवन में प्रकाश स्थापित किया जाता है।
वेदों में ‘दीप’ केवल लौ का प्रतीक नहीं, बल्कि ज्ञान, सत्य और आत्मबोध का प्रतीक है। ऋग्वेद (9.73.9) में कहा गया है —
“तमसो मा ज्योतिर्गमय।”
अर्थात् — “हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।”
यह मंत्र दीपावली के मूल दर्शन को व्यक्त करता है। दीपक जलाना बाह्य कर्म है, किंतु उसका भाव है — भीतर का दीप प्रज्वलित करना। जब मनुष्य अपने भीतर के तम को मिटाकर आत्मज्ञान का दीप जलाता है, तभी सच्ची दीपावली होती है।
वेदों और पुराणों में दीपोत्सव का संकेत
अथर्ववेद (19.47.1) में कहा गया है —
“दीपो ज्योति: परं ब्रह्म, दीपो जनार्दन: स्मृतः।”
— दीपक स्वयं ब्रह्म का प्रतीक है; वह ईश्वर का दैवी स्वरूप है।
इस श्लोक में दीपक को ‘परमात्मा’ का रूप माना गया है। जिस प्रकार दीपक अपना अस्तित्व जलाकर दूसरों को प्रकाश देता है, उसी प्रकार ज्ञानी पुरुष अपने जीवन का दीप लोककल्याण के लिए जलाते हैं।
पुराणों में दीपावली को अनेक रूपों में स्मरण किया गया है। पद्मपुराण में कहा गया है कि इस दिन भगवान विष्णु ने वामन रूप में असुरराज बलि को पाताल में स्थान देकर धरती पर संतुलन स्थापित किया। इसीलिए दीपावली के बाद एवं बलि प्रतिपदा एवं गोवर्धन पूजा मनाई जाती है।
स्कन्दपुराण के ‘दीपोत्सव महात्म्य’ अध्याय में उल्लेख है —
“कार्तिकस्य अमावास्यायां यः प्रदीपनकर्मकृत्। स यान्ति परमां सिद्धिं प्रज्वाल्य दीपकं गृहे॥”
अर्थात् — जो व्यक्ति कार्तिक अमावस्या की रात्रि में दीपक प्रज्वलित करता है, वह परम सिद्धि को प्राप्त होता है।
इस श्लोक से स्पष्ट है कि दीपदान केवल पूजा का अंग नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और परम पुरुषार्थ की साधना है।
रामायण और सांस्कृतिक स्मृति
वाल्मीकि रामायण में यह वर्णित है कि जब प्रभु श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे, तब नगरवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया। वह रात्रि कार्तिक अमावस्या की थी। तभी से अयोध्या में दीपोत्सव का यह परंपरागत उत्सव चला आ रहा है।
भगवान राम का आगमन केवल विजय का नहीं, धर्म और मर्यादा की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। अयोध्या की दीपावली आज भी हमें यह सिखाती है कि जीवन के हर अंधकार में सत्य, संयम और करुणा का दीपक जलाना ही सच्ची विजय है।
लक्ष्मी-पूजन का वैदिक रहस्य
दीपावली का मुख्य दिवस लक्ष्मी-पूजन का पर्व है। देवी लक्ष्मी केवल धन की अधिष्ठात्री नहीं, बल्कि ‘संपन्नता’, ‘सदाचार’ और ‘शुभता’ की प्रतीक हैं। श्रीसूक्त में कहा गया है —
“श्रीर्मा देवीर्जुषता दुरितानि परा सुवः।”
— “माँ लक्ष्मी हमारे पापों को दूर कर हमें शुभ मार्ग पर चलाएँ।”
इस दिन प्रदोषकाल में देवी लक्ष्मी, भगवान कुबेर और गणपति का पूजन किया जाता है। इस समय को ‘स्थिर लग्न’ कहा गया है, जो स्थायित्व और समृद्धि का सूचक है।
वेदों के अनुसार, लक्ष्मी केवल धन में नहीं, बल्कि ज्ञान, करुणा और संतोष में निवास करती हैं। अतः इस दिन का वास्तविक उद्देश्य बाह्य ऐश्वर्य नहीं, बल्कि आंतरिक संतुलन और संतोष का आलोक है।
आध्यात्मिक उद्देश्य और अंतर्मुखी प्रकाश
दीपावली के पाँच दिवस — धनतेरस, नरक चतुर्दशी, लक्ष्मी-पूजन, गोवर्धन-पूजन और भाई-दूज — जीवन की पाँच अवस्थाओं का प्रतीक हैं।
- धनतेरस शरीर और स्वास्थ्य का प्रतीक है — जहाँ ‘धन’ का अर्थ केवल मुद्रा नहीं, बल्कि ‘धन्य जीवन’ है।
- नरक चतुर्दशी अज्ञान और दुष्कर्मों के नरक से मुक्ति का संकेत देती है।
- मुख्य दीपावली आत्म-प्रकाश का उत्सव है।
- गोवर्धन पूजा प्रकृति-पूजन और पर्यावरण संतुलन का प्रतीक है।
- भाई दूज प्रेम और रक्षा-बंधन की पुनर्पुष्टि है।
भगवद्गीता (10.11) में श्रीकृष्ण कहते हैं —
“तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः। नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता॥”
— “मैं अपने भक्तों के हृदय में स्थित होकर, ज्ञान के दीप से उनके अज्ञान रूपी अंधकार का नाश करता हूँ।”
यही दीपावली का वास्तविक उद्देश्य है — अपने भीतर वह दिव्य दीप जलाना जिससे जीवन में ज्ञान, प्रेम और करुणा का प्रकाश फैले।
तिथि और मुहूर्त

धनतेरस के शुभ मुहूर्त: त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 18 अक्टूबर को अपराह्न 12:20 बजे के बाद 19 अक्टूबर को अपराह्न 01:53 बजे तक।
- लाभ-उन्नति चौघड़िया मुहूर्त : 18 अक्टूबर
- अपराह्न 01:00 बजे से अपराह्न 03:53 बजे तक.
- अपराह्न 05:19 बजे से अपराह्न 06:53 बजे तक.
- अपराह्न 08:27 बजे से अपराह्न 11:34 बजे तक.
- लाभ-उन्नति चौघड़िया मुहूर्त : 19 अक्टूबर
- पूर्वाह्न 08:42 बजे से अपराह्न 11:34 बजे तक.
- अपराह्न 01:00 बजे से अपराह्न 01:53 बजे तक.
- प्रदोष काल: 18 अक्टूबर को अपराह्न 4:30 बजे से अपराह्न 6:06 बजे तक.
क्या खरीदें? सोना और चांदी, बर्तन और घर के उपकरण, वाहन या प्रॉपर्टी.

लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त: अमावास्या तिथि का प्रारंभ 20 अक्टूबर को अपराह्न 03:46 बजे के बाद 21अक्टूबर को अपराह्न 05:56 बजे तक।
दीपोत्सव रात्रि प्रहर का त्यौहार होने के कारण यह 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
प्रदोष काल : 18 अक्टूबर को अपराह्न 4:30 बजे से अपराह्न 6:06 बजे तक.
स्थिर लग्न (वृषभ) : अपराह्न 06:53 बजे से अपराह्न 08:40 बजे तक. (सायं काल)
स्थिर लग्न (सिंह) : पूर्वाह्न 01:13 बजे से पूर्वाह्न 03:28 बजे तक. (रात्रि काल)
प्रकाश बनो, केवल दीप न जलाओ
दीपावली हमें केवल घर सजाने की प्रेरणा नहीं देती, बल्कि आत्मा को प्रकाशित करने की शिक्षा देती है। बाह्य दीपक तभी सार्थक है, जब भीतर का दीप प्रज्वलित हो।
जैसा कि छांदोग्य उपनिषद् (8.3.4) में कहा गया है —
“य आत्मदीपः, आत्मप्रकाशः, स एव मुक्तः।”
— “जो अपने भीतर के दीप से प्रकाशित होता है, वही वास्तव में मुक्त है।”
आइये इस दीपावली पर संकल्प लें — कि “हम केवल दीप नहीं जलाएँगे, बल्कि अपने भीतर के अंधकार को मिटाकर
– आचार्य संतोष
(ज्योतिष विशारद एवं वास्तु आचार्य)
(वेदांत साधक एवं भारतीय संस्कृति के प्रचारक)
वास्तु शुद्धि और जन्म कुंडली जागरण के लिए
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