बिहार चुनाव 2025: जाति समीकरण और विकास की राजनीति

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– डॉ. पीयूष राजा, स्तंभकार एवं शिक्षक

नवंबर 2025 में होने वाला बिहार विधानसभा चुनाव राज्य की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ बनने जा रहा है। 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में मतदान होगा, जबकि 14 नवंबर को परिणाम घोषित किए जाएंगे। 243 सीटों पर होने वाले इस चुनाव में 7.42 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।

जाति आधारित जनगणना 2022 के बाद यह पहला बड़ा चुनाव है, जिसने पूरे राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया है। 2 अक्टूबर 2023 को जारी रिपोर्ट के अनुसार, बिहार की 13.07 करोड़ आबादी में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) 36%, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) 27.13%, अनुसूचित जाति (SC) 19.65%, अनुसूचित जनजाति (ST) 1.68% और सवर्ण वर्ग 15.52% है। यानी कुल 84% आबादी सामाजिक रूप से वंचित वर्गों की है — यही इस चुनाव का निर्णायक वोट बैंक है।

यादव (14.27%) और मुस्लिम (17.70%) मतदाता मिलकर 31% वोट बैंक बनाते हैं, जो राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की मुख्य ताकत है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में यह गठबंधन युवाओं और रोजगार के मुद्दे पर फोकस कर रहा है। वहीं, कुर्मी (2.87%) और कोइरी (4.27%) समुदाय जद (यू) का आधार हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन जातियों को अपने साथ बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सवर्ण मतदाताओं — ब्राह्मण (3.65%), राजपूत (3.45%), भूमिहार (2.86%) और कायस्थ (0.60%) — पर निर्भर है। भाजपा का फोकस शहरी और पासमांदा मुस्लिम वोटरों पर भी है। दलितों में पासवान (5.3%) समुदाय चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) का प्रमुख आधार है।

एनडीए बनाम महागठबंधन का समीकरण
एनडीए में भाजपा और जद (यू) को 101-101 सीटें, जबकि लोजपा (आरवी) को 29 सीटें मिली हैं। वहीं महागठबंधन में राजद, कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं। राजद का नेतृत्व तेजस्वी यादव कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस युवा पलायन और बेरोजगारी के मुद्दे को उठा रही है। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है और खुद को “विकल्प की राजनीति” के रूप में पेश कर रही है।

महागठबंधन में बढ़ता तनाव
सीट बंटवारे को लेकर महागठबंधन में खींचतान तेज है। वारसलीगंज, वैशाली, लालगंज, कहलगांव, सिकंदरा और नरकटियागंज जैसी कई सीटों पर राजद और कांग्रेस आमने-सामने हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने असंतोष जताते हुए चुनाव से खुद को अलग कर लिया है। विश्लेषकों का कहना है कि यह आपसी मतभेद एनडीए को सीधा फायदा पहुंचा सकता है।

जनता के मुद्दे और राजनीतिक रणनीति
बेरोजगारी, पलायन और विकास इस चुनाव के मुख्य मुद्दे हैं। एनडीए ने महिलाओं के लिए प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण, छात्रों को ब्याजमुक्त ऋण, पेंशन और औद्योगिक प्रोत्साहन योजनाओं की घोषणा की है। वहीं महागठबंधन अति पिछड़ा न्याय संकल्प के तहत आरक्षण बढ़ाने, ठेके में भागीदारी और कानूनी सुरक्षा की मांग को लेकर जनता के बीच जा रहा है।

जाति जनगणना ने बिहार की सामाजिक असमानता को उजागर किया है। अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों में गरीबी दर 42% से अधिक है। ओबीसी में यादव समुदाय अपेक्षाकृत संपन्न है (30.49% गरीबी दर), जबकि कुशवाहा और तेली समुदायों में गरीबी क्रमशः 47% और 57% तक है। मुसहर समुदाय में यह दर 64% तक पहुंच जाती है।

कौन बनेगा बिहार का फैसला करने वाला वर्ग?
इस चुनाव में ओबीसी और ईबीसी का 63% वोट बैंक निर्णायक होगा। यादव-मुस्लिम गठबंधन राजद की रीढ़ है, कुर्मी-कोइरी वोट जद (यू) की ताकत, जबकि दलित वर्ग लोजपा (आरवी) के साथ है। सवर्ण वोट अब भी भाजपा का पारंपरिक आधार बने हुए हैं।

नतीजा तय करेगा बिहार का भविष्य
2025 का यह चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि शासन, रोजगार और सामाजिक न्याय पर जनता का जनमत संग्रह होगा। बिहार का मतदाता आज जाति और विकास के बीच संतुलन साधने की स्थिति में है।
14 नवंबर को यह तय होगा कि बिहार निरंतरता चुनता है या बदलाव।

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